कलेजे के टूकडे को सलाख पर फेंक देने की ऐसी भी क्या मजबूरी
अनैतिक संबंधों से जन्मे बच्चे डाल दिए जाते है कचरे के ढेर में
अमरावती/दि.21– कई बार कुडे-कचरे के ढेर पर जीवित अथवा मृत अवस्था में नवजात बच्चे पडे हुए पाए जाते है. जाहीर सी बात है इन बच्चों को जन्म देने वाले उनके माता-पिता ही इस तरह से कुडे के ढेर पर लाकर फेंक देते है, ताकि ऐसे बच्चों को पीछा छुडाया जा सके. अमूमन ऐसे बच्चों का जन्म अनैतिक संबंधों के चलते हुआ होता है अथवा पैदायशी किसी तरह की कोई शारीरिक समस्या रहने वाले बच्चों को अवांच्छित मानकर उनके माता-पिता किसी भी जगह पर लावारिस छोड जाते है. कई बार ऐसे नवजात बच्चे जीवित रहते है और यदि समय रहते उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं गया, तो ऐसे बच्चों को सडकों पर आवारा घुमने वाले कुत्तों द्बारा नोचकर खा लिया जाता है. जिसकी वजह से कचरा कुंडियों के ढेर पर पडे बच्चों की मौत हो जाती है. यह अपने आप में बेहद हृदयविदारक मामला है.
बता दें कि, आए दिन किसी सार्वजनिक स्थल, स्वच्छता गृह या शौचालय जैसी जगह सहित सडक किनारे अथवा बाग बगीचे के कोने में नवजात बच्चे जिंदा अथवा मृत पाए जाते है, जिन्हें देखकर सबसे पहला सवाल यहीं उपस्थित होता है कि, आखिर इन बच्चों को जन्म देने वालों की ऐसी भी क्या मजबूरी होगी कि, उन्होंने अपने पेट से जन्मे अपने बच्चे को इस तरह निर्दयता के साथ ख्ाुलेआम फेंक दिया. इस संदर्भ में सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले लोगों का मानना है कि, कई बार किसी युवक-युवती के बीच आपसी प्रेम संबंध रहने के चलते शारीरिक संबंध बन जाते है. जिसकी वजह से युवती गर्भवती हो जाती है और अपने प्रेम संबंधों के चलते बच्चे को जन्म देती है. परंतु कई बार आगे चलकर प्रेम संबंध में रहने वाले युवक द्बारा विवाह करने से इनकार कर दिया जाता है, या फिर दोनों परिवारों के बीच किसी भी वजह के चलते प्रेम संबंध का विरोध होता है. ऐसी स्थिति में संबंधित बच्चे से पीछा छूडाने के लिए उसे कहीं पर भी ले जाकर फेंक दिया जाता है. वहीं कई ऐसे मामले भी होते है. जिनमें किसी दम्पति को बेटी नहीं चाहिए होती है, या फिर उनका नवजात बच्चा पैदायशी तौर पर किसी शारीरिक समस्या का शिकार होता है. ऐसी स्थिति में भी दम्पतियों द्बारा ऐसे बच्चों से पीछा छूडाने के लिए उन्हें कहीं पर भी लावारिस छोड दिया जाता है.
* 8 माह में एक भी घटना नहीं
जिले के ग्रामीण क्षेत्र में 31 पुलिस थाने है. परंतु जनवरी से सितंबर माह के दौरान जिले में कहीं पर भी नवजात अर्भक अथवा शिशु मिलने की कोई जानकारी नहीं है. सौभाग्य से बीते 8 माह में अमरावती शहर सहित जिले में किसी नवजात बच्चे को लावारिस फेंक दिए जाने से संबंधित कोई घटना घटित नहीं हुई.
* ऐसे नवजातों का आगे क्या होता है?
जीवित अवस्था में मिलने वाले नवजात बच्चे को बाल संरक्षण व कल्याण समिति के जरिए पालन-पोषण हेतु किसी अनाथालय में दे दिया जाता है और इस बच्चे के असली माता-पिता की तलाश करने का प्रयास किया जाता है और यदि संबंधित बच्चे के असली माता-पिता नहीं मिलते है, तो ऐसे बच्चों की जानकारी सार्वजनिक तौर पर प्रकाशित करते हुए ऐसे बच्चों की दत्तक प्रक्रिया को पूर्ण करने का प्रयास किया जाता है और ‘तारा पोर्टल’ पर ऐसे बच्चे की जानकारी दी जाती है. पश्चात किसी योग्य दम्पति द्बारा आवेदन किए जाने पर उन्हें आवश्यक प्रक्रिया पूर्ण करते हुए बच्चा दत्तक दिया जाता है.
* यदि किसी अभिभावक द्बारा अपने नवजात बच्चे का किसी कचरे के ढेर पर फेंका जाता है और यदि सार्वजनिक स्थान पर फेंके गए जीवित बच्चे की मौत हो जाती है अथवा नवजात बच्चे के शव को गुचचुप तरीके से किसी भी जरिए अंतिम संस्कार कर नष्ट करने का प्रयास किया जाता है, तो ऐसे लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत फौजदारी मामला दर्ज किया जाता है. यदि किसी भी सार्वजनिक स्थान पर कोई नवजात बच्चा जीवित अथवा मृत अवस्था में पडा दिखाई देता है, या कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक स्थल पर जीवित अथवा मृत नवजात बच्चे को फेंकता दिखाई देता है, तो उनकी जानकारी तुरंत ही नजदीकी पुलिस थाने को दी जानी चाहिए.
– अविनाश बारगल,
जिला पुलिस अधीक्षक,
अमरावती ग्रामीण पुलिस.
* यह है प्रमुख वजह
– अनैतिक संबंधों के चलते
अनैतिक संबंधों के चलते पैदा होने वाले बच्चों को संबंधित युवती अथवा युवक द्बारा फेंक दिया जाता है, ताकि उनके प्रेम संबंधों का किसी को पता ना चले. साथ ही अनैतिक संबंध उजागर ना हो.
– लडकी होने या बच्चा दिव्यांग रहने के चलते
यद्यपि गर्भलिंग परीक्षण के जरिए गर्भस्त शिशु लडका है या लडकी यह पता करना कानूनी तौर पर अपराध है. लेकिन कई बार लडकी ही होना चाहिए वाली मानसिकता रखने वाले परिवारों द्बारा घर की गर्भवती महिला का प्रसूतिपूर्व गर्भलिंग परीक्षण करवा लेते है और यदि पहले ही पता चल जाए कि, गर्भ में पैदा होने वाला बच्चा लडकी है, तो उससे छूटकारा पाने के कई उपाय किए जाते है. जिसके तहत गर्भ में कन्या भ्रूण रहने पर संबंधित महिला का गर्भपात करवा दिया जाता है. या फिर प्रसूति पश्चात लडकी पैदा होने पर उसे अवांच्छित मानकर किसी कुडे-कर्कट के ढेर पर ले जाकर फेंक दिया जाता है. इसके साथ ही यदि नवजात शिशु किसी भी तरह के शारीरिक अथवा मानसिक व्यंग का शिकार है, तो भी ऐसे बच्चो को संबंधित अभिभावकों द्बारा कुडे-कर्कट के ढेर पर ले जाकर फेंक देने की मानसिकता रखी जाती है.