अमरावती

करोडों के लावारिश वाहनों का क्या करे?

पुलिस थाने में भंगारखाना

* ट्रक, कार, मोटरसािइकल वाहनों का समावेश
अमरावती/ दि.14- अपराधिक घटनाओं में उपयोग किये गए, दुर्घटनाग्रस्त वाहन पुलिस व्दारा बरामद किये जाते है. ऐेसे हजारों वाहन पुलिस थाने के प्रांगण में पडे हुए है. इन वाहनों के स्पेअर स्पार्ट्स चोरी जाते है. अच्छे नए वाहन कई वर्ष तक लापरवाही पूर्व पडे रहने के कारण भंगार में बेचने लायक हो गए है. परंतु उन लावारिश व भंगार वाहनों की निलामी की प्रक्रिया काफी पेचिदा होने के कारण वे करोडों रुपयों के लावारिश वाहनों का करे तो क्या करे ऐसा प्रश्न पुलिस के सामने निर्माण हुआ है.
वाहन जमा होते जा रहे है, जिसके कारण पुलिस थाने के प्रांगण में वाहन रखने की जगा तक नहीं बची. पुलिस आयुक्तालय के कई पुलिस थानों मेें भंगार वाहनों की लंबी कतार दिखाई देती है. पुलिस की कार्रवाई में मिले वाहन जगह पर खडे-खडे खराब हो रहे है, ऐसे वाहनों में से कुछ स्पेअर स्पार्ट्स भी निकाल लिये जाते है, ऐसी शिकायत भी कई बार मिली है. मगर वाहनों की स्थिति इतनी ज्यादा खराब हो चुकी होती हेै कि, उनके स्पेअर स्पार्ट्स का उपयोग करना संभव नहीं है. फिर भी ऐसे कबाड वाहन पुलिस थाना प्रांगण में बडी संख्या में खडे है. ऐसे कबाड वाहनों का हिसाब लगाना भी कठिन हो चुका है. शहर के दसों पुलिस थाने की भी यही स्थिति है. शहर व जिले में अवैध तरीके से शराब की तस्करी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर उनके वाहन बरामद किये जाते है. कई बार ऐसे वाहन धारकों के पास वाहनों के दस्तावेज न होने के कारण संबिधित व्यक्ति वाहन भी नहीं छुडा पाते.

पुलिस को वाहन बरामद करने का अधिकार नहीं
अपराध में उपयोग किये गए या सडक दुर्घटना के वाहन को पुलिस कब्जे में लेते है. वह वाहन पुलिस थाने के प्रांगण में रखा जाता है. वाहन मालिक को सुपूर्द नाम पर वाहन छूडाने का अधिकार है, मगर इसके लिए आगे कोई नहीं आता. क्योंकि ऐसा करने के लिए पूरी न्यायालयीन प्रक्रिया पूर्ण करना पडता है.

इन वाहनों का करेंगे क्या?
न्यायालय से सुपूर्द नामे पर छुडाया नहीं ऐसे वाहन पुलिस थाने में जमा कर वे हकीकत में किस वर्ष के, किस अपराध के है यह दर्ज किया जाता है. जिस वाहन का मालिक सामने ही नहीं आता ऐसे वाहनों की निलामी के लिए न्यायालय से अनुमति लेना पडता है.अदालत से निलामी की अनुमति मिलने के बाद ही वे वाहन निलाम कर भंगार में बेचे जाते है.

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