क्या होगा प्रलंबित दो दर्जन सिंचाई प्रकल्पों का
विशेषज्ञों की अलग- अलग राय

* सुप्रीम कोर्ट का झुडपी जंगल पर फैसला
* सिंचाई के तज्ञ डूबे चिंता में
अमरावती/ दि. 23- देश की सबसे बडी अदालत ने गुरूवार को झुडपी जंगल के बारे में जंगल ही होने का निर्णय दिए जाने से जानकार दो प्रकार की राय व्यक्त कर रहे हैं. स्वयं मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने इस बारे में कोर्ट के निर्णय का स्वागत करते हुए विदर्भ के विकास का मार्ग प्रशस्त होने की बात कही हैं. वहीं कुछ जानकार एकदम विपरीत राय रख रहे हैं. कोर्ट के फैसले के आलोक में जानकारों ने कहा कि सिंचाई प्रकल्प और प्रलंबित होने का खतरा है. प्रशासकीय मंजूरी के बाद भी अब तक काम न शुरू होनेवाले 26 प्रकल्प स्थायी रूप से रद्द होने की आशंका व्यक्त की जा रही है. विदर्भ उद्योग धंधों, सिंचाई व अन्य विषयों में पहले ही काफी पीछे हैं. झुडपी जंगल अब वन क्षेत्र घोषित होने से अधिक अन्याय की आशंका जानकारों ने व्यक्त की है.
* डॉ. संजय खडक्कार का कहना
विदर्भ विकास बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य रहे डॉ. संजय खडक्कार ने कहा कि 86 हजार हेक्टेयर झुडपी जंगल वन क्षेत्र घोषित होने से पूर्व विदर्भ के 6 जिलों के विकास में बाधाएं आने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता. पहले ही राज्य में विदर्भ सबसे पिछडा क्षेत्र हैं. विकास कामों को गति देते हुए सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का मान रखते हुए राज्य शासन को मार्ग निकालना होगा. पर्यायी व्यवस्था करनी पडेगी.
*निवृत्त चीफ इंजीनियर की राय
जल संपदा विभाग के सेवानिवृत्त मुख्य अभियंता धर्मराज रेवतकर ने कहा कि झुडपी जंगल का बहाना सामने कर आज तक सिंचाई परियोजनाएं लटकाए रखी जाती थी. अब कोर्ट के आदेश का फायदा लेते हुए प्रशासकीय मान्यता प्राप्त परियोजनाओं को प्राथमिकता से धन देकर पूर्ण किया जाना चाहिए.
* विदर्भ पर अधिक अन्याय होगा
महाविदर्भ जनजागरण के संयोजक नितिन रोंघे ने कहा कि विदर्भ में जंगल बताकर आज तक अनेक विकास परियोजनाएं पश्चिम महाराष्ट्र में स्थापित हुई है. आगे भी परिपूरक वनीकरण के लिए विदर्भ े झुडपी जंगल की जमीन बताकर महाराष्ट्र का विकास किया जायेगा. 1996 के बाद जमीन वितरण में कठोर पडताल के न्यायालय के आदेश है. अब सरकारी सिंचाई प्रकल्प या अन्य लोग उद्यम पूर्ण होने में बाधा आने की आशंका रोंघे ने व्यक्त की. उन्होने कहा कि विदर्भ में जमीन के उपयोग में कोर्ट का निर्णय एक बडा रोडा साबित हो सकता है. पर्यायी जमीन उपलब्ध न होने अथवा फैली हुई होने से अनेक परियोजनाएं रद्द करनी पड सकती है.