किसी भी मानसिक रोगी को कब दिया जाता है ‘शॉक’
अमरावती/दि.27– एक आम धारणा है कि, मनोरुग्णालय में भर्ती होने वाले प्रत्येक मनोरोगी को इलाज करने हेतु इलेक्ट्रीक शॉक दिया जाता है. जबकि ऐसा नहीं है और मानसिक बीमारी से त्रस्त रहने वाले हर मरीज को इलेक्ट्रीक शॉक नहीं दिया जाता, बल्कि सबसे पहले मरीज की मानसिक बीमारी का निदान करते हुए उसे दवाई और गोली दी जाती है एवं मरीज की स्थिति को देखते हुए उसकी दवा-गोली का डोज तय किया जाता है. इसके बाद यदि हायडोज देकर भी किसी मरीज की स्थिति में कोई सुधार नहीं होता है, तो करीब 6 सप्ताह के इलाज पश्चात उस मरीज पर ईसीटी यानि इलेक्ट्रोकन्व्हल्सिव्ह थेरेपी का प्रयोग करते हुए उसका इलाज किया जाता है.
* 100 में से केवल 4 मरीजों पर होता है ईसीटी का प्रयोग
इन दिनों मानसिक बीमारी से ग्रस्त रहने वाले मरीजों का इलाज करने हेतु उन्हें शॉक देने का प्रमाण काफी कम हो गया है. इन दिनों 100 मानसिक रोगियों में से औसतन 4 मरीजों पर ही ईसीटी का प्रयोग किया जाता है. ऐसा मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है.
* मानसिक बीमारी के लक्षण
किसी भी तरह की मानसिक बीमारी में संबंधित व्यक्ति के मन में लगातार नाकारात्मक विचार चलते रहते है. साथ ही डर लगना, ध्यान केंद्रीत नहीं होना और अकेलापन महसूस होना जैसे लक्षण भी रहते है.
* किसे दिया जाता है शॉक
मानसिक स्वास्थ्य बिगडा रहने वाले व्यक्ति में यदि हाईडोज औषधोपचार के बाद भी कोई सुधार नहीं हो रहा है, तो ऐसे मरीज पर इलेक्ट्रोकन्व्हल्सिव्ह थेरेपी यानि ईसीटी का प्रयोग किया जाता है. इसके अलावा कई वर्षों से मानसिक बीमारी के लिए दवाई-गोली का सेवन कर रहे व्यक्ति द्बारा यदि अचानक ही दवाईयों का सेवन बंद कर दिया जाता है और इस वजह से उसका मानसिक संतुलन बिगडता है, तो उस पर इलेक्ट्रोकन्व्हल्सिव्ह थेरेपी का प्रयोग करते हुए उसे शॉक दिए जाते है.
* समय रहते इलाज जरुरी
मानसिक संतुलन बिगडने पर इसका समय रहते इलाज करना जरुरी है. कुछ मरीज समूपदेशन के जरिए मानसिक तनाव से बाहर आ जाते है. वहीं कुछ मरीजों की मानसिक बीमारी औषधोपचार से ठीक होती है.
* दवाई-गोली से भी ठीक होता है मरीज
मानसिक स्वास्थ्य असंतुलित रहने वाले मरीज का निदान करने के बाद उसे कौन सी दवाई कितने प्रमाण में देनी है, यह डॉक्टर द्बारा तय किया जाता है. साधारणत: दवाई-गोली और इंजेक्शन के जरिए ही ज्यादातर मरीज ठीक हो जाते है.
* मानसिक स्वास्थ्य असंतुलित रहने वाले मरीजों को इंजेक्शन तथा दवाई-गोली देते हुए ठीक करने का प्रयास किया जाता है. परंतु यदि दवाईयों का हाइडोज देने के बाद भी किसी मरीज में कोई सुधार नहीं होता है, तो ऐसे मरीजों पर इलेक्ट्रोकन्व्हल्सिव्ह थेरेपी का प्रयोग करने का निर्णय लिया जाता है. अमूमन 100 में से 4 या 5 मरीजों पर ईसीटी का प्रयोग करने की जरुरत पडती है.
– डॉ. पुरुषोत्तम कुकडे,
मानसोपचार विशेषज्ञ