आत्मज्ञान होने पर कण-कण में प्रभु की अनुभूति होती है
अमरावती/दि.20-सिंधु नगर स्थित पूज्य शिवधारा आश्रम में चल रहा शिवधारा झूलेलाल चालिहा के पांचवें दिन के सत्संग में संत श्री डॉ संतोष देव जी महाराज ने फरमाया, के भक्ति की सिद्धि होती है जब आत्मज्ञान की अनुभूतियों होने लगती है. तभी कण-कण में प्रभु का वास है. क्योंकि जब ब्रह्म ज्ञान हो जाए तब तक भी कण-कण में अनुभूति नहीं होती और हमारे सनातन धर्म की यही सुंदरता है. भक्ति बढ़ाते बढ़ाते जब मैं अलग, मेरा शरीर अलग हूं, अवस्था प्राप्त होती है, तब ब्रह्म ज्ञान की माध्यम से आत्मज्ञान की अनुभूति होती है और यह सब संभव तब होगा जब साधना के साथ-साथ सेवा परोपकार एवं अपने गुरुदेव की कृपा बरसती है.
उदाहरण पहला जब गुरु गोविंद सिंह जी महाराज को शिकायत मिली के युद्ध में अपने दल के सैनिकों के साथ-साथ दुश्मन दल के जख्मी सैनिकों को भी भाई कन्हैया जल पिला रहे हैं, तब गुरु जी ने उनको बुलाकर उनसे पूछा तब भाई कन्हैया ने कहा हे गुरुदेव में जिसको भी देखता हूं उसमें आपकी मूरत नजर आती है, फिर क्या आप पानी मांगे, में ना दूं. तब गुरु गोविंद सिंह जी महाराज ने ध्यान लगाकर देख के यह सच में इसकी ऐसी अवस्था हो चुकी है। तब गुरु गोविंद सिंह महाराज जी ने उनको आशीर्वाद दिया और भाई गुरदास नाम रखा. दूसरा उदाहरण शम्स तबरेज जो मुल्तान में हुए हैं, उनके शरीर की पूरी चमडी उतारी गई, फिर भी उनको कोई पीड़ा ना हुई थी. तीसरा उदाहरण 1008 सद्गुरु स्वामी शिवभजन जी महाराज का जब पैर का ऑपरेशन हुआ था, तब भी वह कह रहे थेः जैसे हर 5 साल के बाद अपने घर बंगले की मरमत करने आवश्यक हो जाती है, वैसे ही हम डॉक्टर के पास अपने शरीर रूपी बंगले की मरामत कराने के लिए आए हैं, शरीर का पांव भले ही कट चुका है, लेकिन हमें इसकी कोई पीड़ा नहीं हो रही है. सो आत्मज्ञान प्राप्त हेतु निरंतर साधना बढ़ाते रहना चाहिए, सेवा कार्य में खुद को लगाना चाहिए और गुरु कृपा से ही सिद्धि मिलने वाली है, इसलिए गुरु को रीझाने वाले कार्य करते रहने चाहिए.
* जरूरतमंदों को किराणा वितरित
हर महीने की 20 तारीख के नियम अनुसार जरूरतमंदों में अनाज, किराणा, दवाइयां, सब्जियां वितरित हुईं.
* गुरु पूर्णिमा के दिन जितना संभव हो पीले रंग की चीजों का इस्तेमाल पूजा और दान में इस्तेमाल करें, जैसे पीले फूल, पीला चंदन का तिलक, पीला वस्त्र,केले का दान, हल्दी, चना दाल, मिठाई में बूंदी, लड्डू आदि.