* अंजनगांव में अनूठे अंतिम संस्कार की चल रही चर्चा
अंजनगांव सूर्जी/दि.9– अमूमन लोगबाग बेटे की चाहत जरूर रखते है, ताकि आगे चलकर बेटा उनके बुढापे का सहारा बने और मृत्यु पश्चात उनकी चिता को अग्नि देने के साथ ही परिवार की विरासत को संभालते हुए आगे बढाये. किंतु अब बदलते समय के साथ यह सोच भी धीरे-धीरे बदलने लगी है और बेटियां भी हर क्षेत्र में अपने आप को बेटों से बेहतर साबित कर रही है. वहीं अब जिन परिवारों में कोई बेटा नहीं है, वहां पर बेटियां ही अपने माता या पिता की मृत्यु होने पर उनकी अर्थी को कंधा देने और चिता को मुखाग्नि देने के लिए आगे आ रही है. ऐसा ही एक मामला विगत दिनों अंजनगांव सूर्जी में सामने आया, जब स्थानीय प्रतिष्ठित नागरिक अरूण तुलसीराम टांक का विगत 6 जून को लंबी बीमारी पश्चात निधन हो गया और मंगलवार 7 जून को उनके पार्थिव पर अंतिम संस्कार किये गये. जिसकी अंजनगांव सूर्जी शहर व तहसील में अब तक चर्चा चल रही है, क्योंकि अरूण टांक की दोनों बेटियों प्रिया व वैशाली ने अपने पिता की अर्थी को कंधा देने के साथ-साथ पिता की चिता को मुखाग्नि भी दी.
इस संदर्भ में मिली जानकारी के मुताबिक अंजनगांव सूर्जी शहर निवासी टांक परिवार को बेहद उच्चशिक्षित व नामांकित माना जाता है और प्रगतिशिल विचारों का धनी रहनेवाले इस परिवार द्वारा हमेशा ही सामाजिक बदलावों को स्वीकार करने पर जोर दिया जाता रहा है. इसी परिवार के अरूण टांक महावितरण कंपनी में काम किया करते थे और 16 वर्ष पहले एक दुर्घटना में घायल होकर वे अपंगत्व का शिकार हो गये. अरूण टांक को संतान के तौर पर दो बेटिया है. जिसमें से बडी बेटी प्रिया सचिन अब्रुक अंजनगांव नगर परिषद में कार्यरत है. वहीं छोटी बेटी वैशाली मंगेश चौधरी महावितरण में पदस्थ है. दोनों बेटियों और दामादों ने अरूण टांक की अंतिम सांस तक बडी सेवा की और जब 6 जून को अरूण टांक ने अपनी अंतिम सांस ली, तो मृत्यु के पश्चात होनेवाले सभी विधान केवल बेटा ही कर सकता है, इस बात का मन में कोई मलाल न रखते हुए दोनों बेटियों और दामादों ने अरूण टांक की अर्थी को कंधा दिया. साथ ही श्मशान भूमि में जाकर दोनों बेटियों ने हिंदू रिती-रिवाज के अनुसार अपने पिता की चिता को मुखाग्नि दी. इस समय श्मशान भूमि में उपस्थित कई रिश्तेदारों और परिचितों ने इस आदर्श दृश्य को अपनी आंखों से देखा और दोनों बेटियों की तारीफ भी की. यहां यह विशेष उल्लेखनीय है कि, अरूण टांक की मृत्यु के उपरांत उनकी दोनों बेटियां प्रिया व वैशाली ने अपने घर में सबसे बडे रहनेवाले राजेंद्र टांक के समक्ष अपने पिता का अंतिम संस्कार खुद अपने हाथोें करने की इच्छा जताई थी. जिसे स्वीकार करते हुए राजेंद्र टांक ने उन्हें इसकी अनुमति देकर समाज के सामने एक आदर्श पेश किया. ऐसे में प्रगतिशिल विचारों का रास्ता पकडकर किये गये इस अंतिम संस्कार की इस समय अंजनगांव सूर्जी तहसील सहित पूरे जिले में अच्छी-खासी चर्चा चल रही है.