अमरावतीमहाराष्ट्र

राज्य के 33 लाख परीट बंधुओं को कब मिलेगा न्याय

10 रूपए के कपडे प्रेस पर कैसे चलेगा घर संसार

धामणगांव रेलवे/ दि. 30– 10 रूपए में कपडे धोना, 5 रूपए में कपडे की प्रेस करना ऐसे अनेक साल से पारंपरिक व्यवसाय करनेवाले राज्य का 33 लाख परीट समाज आज भी अनेक सुविधाओं से कोसों दूर हैं. इस धोबी समाज को न्याय मिलने की मांग अब होने लगी है. समाज घटक के 12 बलूतेदारों में से परीट, धोबी समाज मेहनती के रूप में पहचाना जाता है. पूर्ण वर्ष घर-घर कपडे इकट्ठा कर धोना और प्रेस करना इस समाज का व्यवसाय हैं. गांव में कोई भी रोजगार न रहने स शहर में इस समाज के युवकों ने आश्रय लिया. लेकिन जिस शहर में कोई खोका अथवा प्रेस करने की छोटी दुकान लगाई वहां तक का यह दुकान कॉलोनी के अथवा नगर परिषद, मनपा द्बारा निकालकर फेंक दी रहने का अनुभव परीट समाज के युवकों का है.

* अन्य राज्यों में सुविधा, महाराष्ट्र में कुछ नहीं
देश के 33 राज्यों में से 17 राज्यों में विशेषत: उत्तरप्रदेश, बिहार राज्य में परीट व धोबी समाज को अनुसूचित जाति, जनजाति की सुविधा मिलती है. जिस राज्य में आरक्षण है. वहां यह समाज प्रगति पथ पर है. महाराष्ट्र में 1960 के पूर्व सीपी एंड बेरार में यह समाज अनुसूचित जाति में शामिल था. आजादी के बाद इस समाज का नाम सूची में शामिल नहीं किया गया. विशेषत: राज्य शासन में 26 सितंबर 2008 के अध्यादेश में धोबी, परीट शब्द को अन्य पिछडावर्गीय स्थिति में प्रमाणित किया. लेकिन इसी सूची में क्रमांक 166 में वरठी की बजाए ‘वर्थी’ शब्द का प्रयोग किया गया. यह शब्द राज्य के 33 लाख परीट बंधुओं की जान से खेल रहा है. करीबन 17 राज्यों में अपने समाज को सुविधा रहते महाराष्ट्र सरकार कब न्याय देगी, ऐसा प्रश्न समाज बंधु उपस्थित कर रहे हैं.

* गाडगे बाबा के विचारों से जुडा यह समाज
परीट समाज को पौराणिक काल से धोबी, परीट, वरठी, वठ्ठी संबोधित किया जाता है. ग्रामीण क्षेत्र में इस समाज को वरठी अथवा वठ्ठी के रूप में पहचाना जाता है. शाला के दाखिले सहित शासकीय नौकरी पर रहे प्रत्येक समाज बंधुओं के दाखिले पर वरठी अथवा वठ्ठी ऐसा उल्लेख है. अब जाति के प्रमाणपत्र नहीं, जाति वैधता प्रमाणपत्र मिलेगा कहां से, ऐसा प्रश्न निर्माण हो गया है. संत गाडगेबाबा के विचारों से जुडे इस समाज को न्याय देने के लिए अब सत्तारूढ तथा विपक्ष द्बारा प्रयास किए जाने की आवश्यकता हैं, ऐसा समाज के लोगों का कहना है.

* रिपोर्ट खा रही धूल
राज्य शासन ने वर्ष 2008 में आंडे समिति की निर्मिति की. केंद्र शासन को रिपोर्ट भेजी. लेकिन यह रिपोर्ट अब तक धूल खां रही है. पिछले अनेक पीढियों से परीट समाज सुविधा से वंचित है. शासन कभी इस समाज की तरफ सकारात्मक दृष्टि से नहीं देखता. आगामी समय में आंदोलन किए बगैर पर्याय नहीं रहेगा.
प्रवीण शेंद्रे,
अध्यक्ष, परीट धोबी समाज,
अमरावती

 

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