* व्यापारियों व्दारा गारंटी दाम से कम भाव में खरीदी
अमरावती/दि.4– इस बार मानसून देरी से आने के कारण खरीफ सत्र संकट में आ गया है. इस कारण कपास का उत्पादन कम हुआ है. दशहरे से कपास खरीदी की शुरुआत हुई है. भारतीय कपास महामंडल और राज्य पणन महासंघ व्दारा खरीदी केंद्र शुरु न किए जाने से व्यापारी गारंटी दाम से कम मूल्य में खरीदी कर रहे हैं. दिवाली के बाद भी सीसीआई की तरफ से शासकीय कपास खरीदी के शुरुआत होने की संभावना है.
विदर्भ की मंडियों में कपास को औसतन 6500 से 7 हजार रुपए प्रतिक्विंटल भाव मिल रहे है. इस बार खरीफ सत्र में केंद्र सरकार ने 7 हजार 20 रुपए गारंटी भाव घोषित किए है. वर्तमान में सभी तरफ कपास कटाई के काम शुरु है. दशहरे के मूहूर्त पर अनेक स्थानों पर कपास खरीदी की शुरु हुई है. लेकिन व्यापारी गारंटी से कम दाम में कपास खरीदी कर रहे है. इसका किसानों को नुकसान हो रहा है. सीसीआई के सबएजेंट के रुप में पणन महासंघ हर वर्ष कपास खरीदी करता है. पणन महासंघ की तरफ से राज्य में 50 केंद्रों पर कपास खरीदी होती है. जलगांव, नागपुर, वणी, यवतमाल, अमरावती, अकोला, खामगांव, परभणी, नांदेड, परली और छत्रपति संभाजीनगर ऐसे 11 जोन में दो चरणों में कपास खरीदी की शुरुआत पणन की तरफ से की जाएगी.
इस कारण कपास उत्पादक किसानों को कुछ मात्रा में राहत मिल सकेगी. देश में कपास के भाव पर दबाव बढा है. इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए शासन ने खरीदी संबंध में हस्तक्षेप कर किसानों को आधार दिया है. हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश में सीसीआई ने खरीदी शुरु की है. 7020 रुपए प्रति क्विंटल भाव अथवा गारंटी भाव किसानों को वहां दिए जा रहे है. फिलहाल देश में सीसीआई के 53 खरीदी केंद्र शुरु है. पश्चित विदर्भ में कपास के भाव गारंटी दाम से कम है. दूसरी तरफ कपास प्रक्रिया उद्योग की अवस्था ठीक नहीं है. जिनिंग-प्रेसिंग कारखाना संचालक आर्थिक संकट का सामना कर रहे है. ऐसी अवस्था में कपास उत्पाक किसानोें को आधार देने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने बाजार में हस्तक्षेप कर खरीदी शुरु की है. पिछले सत्र में भी किसानों को राहत नहीं मिली थी. गत वर्ष अक्तूबर से मार्च इस छह माह में कपास के भाव 8500 से 9500 रुपए के दौरान थे. अप्रैल से भाव कम होते गए. पिछले सत्र में अनेक किसानों ने अच्छे भाव की अपेक्षा से कपास रखा था. उसके पूर्व के वर्ष में कपास को अंतिम चरण में अच्छे भाव मिले थे. लेकिन गत वर्ष किसानों को निराशा हुई थी. इस वर्ष भी कपास दबाव में ही है.