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इस जमीन पर 40 वर्षों से रहने वाले अचानक कहां जाएं?

हटाने से पहले किसी अन्य स्थान पर पुनर्वसन करने की मांग

* आलियाबाद में मेडिकल कॉलेज की जमीन पर रहने वालों ने बयां किया दर्द
अमरावती/दि.6- समिपस्थ कोंडेश्वर मार्ग पर सर्वे क्रमांक 9/1 में मौजे आलियाबाद के परिसर में विगत लंबे समय से ईटभट्टियां चल रही है और यहां पर रहने वाले लोग लगभग 40 वर्षों से भी अधिक समय से यहीं पर रहते हुए इन ईट भट्टों के जरिए अपना व लगभग 400 से 500 लोगों का पेट भर रहे है. लेकिन अब इन लोगों को यहां से हटाने की कोशिश की जा रही है. क्योंकि 52 एकड से भी अधिक क्षेत्रफल वाले इस स्थान पर अब अमरावती का सरकारी मेडिकल कॉलेज बनने वाला है. ऐसे में इस सरकारी जमीन पर रहने वाले अतिक्रमणधारकों को नोटिस भेजकर केवल 7 दिन के भीतर अपना अतिक्रमण हटाने हेतु कहा गया है. जिसके चलते मौजे आलियाबाद में कई दशकों के आबाद रहने वाले लोगों में अच्छा खासा हडकंप व्याप्त है और वे प्रशासन से जानना चाह रहे है कि, आखिर वे अपना व्यवसाय और अपने मजदूरों का घर-परिवार लेकर कहां जाये. साथ ही इन अतिक्रमणधारक ईट भट्टा संचालकों ने अपने सहित अपने मजदूरों के परिवारों के पुनर्वसन की मांग भी उठाई है.
आलियाबाद परिसर में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर ईटभट्टी चलाने वाले लोगों के अनुसार वर्ष 1981 से यहां पर 9 लोगों द्वारा ईट के भट्टे चलाए जा रहे है. जिनमें से ज्यादातर कुंभार समाज के लोग है, जो ईटभट्टी चलाकर ही अपना गुजर-बसर कर रहे है. आसपास के क्षेत्र में भी लगभग 50 से अधिक ईटभट्टे चलते है. मगर प्रशासन व्दारा अचानक ही सर्वे नंबर 9/1 मौजे अलियाबाद में मेडिकल कॉलेज बनाने का फैसला लिया गया. जिसके चलते आलियाबाद में ईटभट्टे चलाने वाले लोगों को यह जमीन खाली कर देने की नोटीस अमरावती के तहसीलदार कार्यालय द्वारा दी गई. यह नोटीस मिलने से स्तब्ध हुए आलियाबाद के ईटभट्टा संचालकों का कहना रहा कि, पाला, छत्री तालाब परिसर व हाईवे के समीप ऐसे कई स्थानों पर ई-क्लास जमीने हैं, जहां पर भव्य मेडिकल कॉलेज बन सकता है. साथ ही इन लोगों का यह भी कहना रहा कि, उन्हें भी अमरावती में सरकारी मेडिकल कॉलेज बनने का अभिमान है और वे इस सरकारी मेडिकल कॉलेज का विरोध भी नहीं कर रहे. लेकिन यदि आलियाबाद में ही सरकारी मेडिकल कॉलेज बनाया जाता है, तो ऐसा करने से पहले उनका किसी नजदीकी क्षेत्र में पुनर्वसन किया जाए, ताकि वे अपना सामान उस स्थान पर ले जा सके.
इसके साथ ही ईटभट्टा संचालकों का यह भी कहना रहा कि, वे यद्यपि विगत कई वर्षों से अतिक्रमण कर यहां पर रह रहे है. लेकिन उन पर सभी तरह के बिल व कर लागू है. वे नियमित तौर पर बिजली, पानी एवं राजस्व संबंधित बिलों का भुगतान करते है. साथ ही अपने कब्जे में रहने वाली जगह का किराया भी अदा करते है, तो वे अतिक्रमणकारी कैसे हो गए. इसके साथ ही कुंभार समाज को सरकार की तरफ से रॉयल्टी माफ रहने के बावजूद भी वे सभी तरह के कर व बिलों के साथ रॉयल्टी भी भरते है. इसी तरह ईटभट्टी धारकों व्दारा प्रशासन पर आरोप लगाते हुए कहा गया कि पहले उन्हें रॉयल्टी के तौर पर केवल 2100 रुपये ही भरने पडते थे. लेकिन अब उन्हें 24 हजार 500 रुपये अदा करने पडते है. इसके बावजूद उन्हें अतिक्रमणधारक बताया जा रहा है और उन्हें जबरन विस्थापित किये जाने का प्रयास किया जा रहा है, जो पूरी तरह से गलत एवं अन्यायकारक है. इसके साथ ही इन 9 ईटभट्टा संचालकों का यह भी कहना रहा कि, यदि प्रशासन उन्हें यहां से हटाना चाहता है, तो पहले उनका पुनर्वसन किया जाए, फिर जगह खाली कराई जाए, क्योंकि यह केवल 9 लोगों का मामला नहीं है, बल्कि हर ईटभट्टे पर काम करने वाले सैकडों मजदूरों व उनके परिवारों के उदरनिर्वाह से जुडा मसला है. जिसकी प्रशासन द्वारा अनदेखी नहीं की जा सकती.


* 1981 से इसी जगह पर हम रहते हैं
परिसर में 9 ईट भट्टी है. जिसमें से 5 लोग कुंभार समाज के है. 1981 से हम यहीं पर रहकर कमाते खाते है. कुंभार समाज को रॉयल्टी माफ रहने के बावजूद भी हम डबल रॉयल्टी भरते है. पहले हमारा पुनर्वसन करें फिर जगह खाली कराये
– सुभाष तुलाराम मोरवार,
(ईटभट्टी संचालक)


* अब अचानक सबकुछ लेकर कहां जायें?
हम पिढी दर पीढी कुंभार समाज का कार्य करते है. इस स्थान पर लगभग 40 वर्षो से रहते है. परिवार में 6 लोग है. यहां रहकर ईट बना कर अपना उदर निर्वाह करते है. मेडिकल कॉलेज बनना खुशी की बात है, इसका हमें अभिमान है. मगर अचानक जगह खाली करने को कहा जा रहा है, तो हम कहां जाए? पहले हमारा पुनर्वसन किया जाए.
– दगडचंद सदाशिव मोरवाल,
(ईटभट्टी संचालक)


* 25-30 परिवारों का होता उदर-निर्वाह
परिसर में लगभग 9 ईटभट्टी है. इन सभी में से हर एक में लगभग 25-30 परिवार रहते है. पुरे परिसर में कुल 500 से अधिक लोग रहते है. अगर अचानक हटना पडा, तो इन मजदुरों पर भूकमरी आ जाएगी. पहले पुनर्वसन करे ताकि किसी निश्चित स्थान पर हम अपना सामान ले जा सके.
– महादेव वारलुजी गोंडाने,
(ईट भट्टी संचालक)


* केंद्र सरकार की टीम ने जमीन को नकारा था
इसके पूर्व सेंटर गर्वमेंट की टीम ने इस जगह का निरिक्षण किया था. मगर इसे किसी कारणों से टीन ने इस जगह के लिए इंकार कर दिया था. मगर अचानक ही इस स्थान को दोबारा चयन करना यह समझ से अलग है. हमारे पास कोई दुसरी जमीन या स्थान नहीं है कि इतना सारा समान हम अलग ले जाकर रखे. इस क्षेत्र के अन्य स्थानों पर भी ई-क्लास जगह खाली पडी है. सरकार चाहे तो वहां मेडिकल कॉलेज बना सकती है. हमे अन्य स्थान पर ले जाने से पहले लीज पट्टे पर अन्य स्थान पर जगह दे कर पुनर्वसन करें.
– नसर खान महेमुद खां,
(ईटभट्टी संचालक)

* रास्ते पर आने की नौबत
कई सालों से इस स्थान पर हमारे बाप-दादा ईट भट्टी का काम करते आ रहे है. अगर सरकार हमें यहां से हटा देगी तो हमारे पास कोई अन्य जगह नहीं होने के कारण हम रास्ते पर आने की नौबत दिखाई दे रही है. हमने जो मजदुरों को एडवांस दिया है, वह डुब जाएगा. क्योंकि काम पर रखने के पहले मजदुरों को हजारों रुपया एडवांस देना पडता है. सरकार गरीब के पेट पर लात मार रही है.
– गिरीश मोरवाल,
(ईटभट्टी संचालक)

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