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सामाजिक न्याय को न्याय मिला या नहीं, यह जांच का विषय

संपादक अनिल अग्रवाल का प्रतिपादन

* ‘सामाजिक न्याय विभाग की नई दिशा’ विषय पर पत्रकारों की कार्यशाला में कथन
* डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक न्याय भवन में आयोजन
अमरावती/दि.29 – भारतीय संविधान का निर्माण करते समय हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान में एक भी स्थान पर न्यायिक न्याय का उल्लेख नहीं किया है, बल्कि हर बार सामाजिक न्याय पर विशेष जोर दिया गया है. सामाजिक न्याय की कल्पना भारत में कोई 70-72 वर्ष पुरानी नहीं है, बल्कि इस शब्द का उल्लेख कौटील्य काल के समय से मिलता है. यानि हमारी पुरातन सामाजिक व्यवस्था में भी सामाजिक न्याय का अस्तित्व था. ऐसे में भारतीय संविधान की 72 वीं वर्षपूर्ति के अवसर पर अब यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि, सामाजिक न्याय इस शब्द व संकल्पना को सही अर्थों में न्याय मिला अथवा नहीं, इसकी समीक्षा की जाए. इस आशय का प्रतिपादन दै. अमरावती मंडल व दै. मातृभूमि के संपादक अनिल अग्रवाल द्बारा किया गया.
स्थानीय सामाजिक न्याय विभाग की तरफ से संविधान दिन के उपलक्ष्य में एवं डॉ. बाबासाहब आंबेडकर महापरिनिर्वाण दिन की कालावधि में मनाए जा रहे समता पर्व के तहत आज डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर सामाजिक न्याय भवन में आज दोपहर 12 बजे आयोजित ‘सामाजिक न्याय विभाग की नई दिशा’ विषय पर आयोजित पत्रकारों की कार्यशाला को संबोधित करते हुए संपादक अनिल अग्रवाल ने उपरोक्त प्रतिपादन किया.
सामाजिक न्याय विभाग द्बारा आयोजित इस कार्यशाला की अध्यक्षता समाज कल्याण विभाग के प्रादेशिक उपायुक्त सुनील वारे ने की. साथ ही इस कार्यशाला में प्रमुख मार्गदर्शक के रूप में दै. अमरावती मंडल व दै. मातृभूमि के प्रबंध संपादक अनिल अग्रवाल, श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष गोपाल हरणे, जिला सूचना अधिकारी हर्षवर्धन पवार, समाज कल्याण विभाग की सहायक आयुक्त माया केदार, जिला जाति प्रमाणपत्र जांच समिति की उपायुक्त जया राउत, जिला परिषद के जिला समाज कल्याण अधिकारी राजेन्द्र जाधवर, समाज कार्य महाविद्यालय के प्राध्यापक डॉ. राजकुमार दासरवाड उपस्थित थे.
इस समय अपने संबोधन में संपादक अनिल अग्रवाल ने सामाजिक न्याय विभाग व पत्रकारों को निकट लाने हेतु आयोजित इस कार्यक्रम की प्रशंसा करने के साथ ही यह भी कहा कि, सरकारी महकमो और प्रसार माध्यमों में संवाद सूत्रता होनी चाहिए, किंतु माध्यमों के प्रतिनिधियों ने यह भी याद रखना चाहिए कि, अखबारों की भूमिका हमेशा विपक्ष की होती है और यदि कहीं पर भी कोई गलत बात या गडबडी दिखाई देती है, तो उसे जनता के समक्ष उजागर करना हमारा कर्तव्य है. कई बार इसकी वजह से हमें सरकारी महकमों और सरकारी अधिकारियों के रोष व नाराजगी का सामना करना पडता है. लेकिन हम सरकार एवं सरकारी महकमों के प्रति नहीं, बल्कि आम जनता के प्रति उत्तरदायी होते है. इस बात को कतई भुलाया नहीं जाना चाहिए. संपादक अनिल अग्रवाल के मुताबिक अखबारों का सीधे आम नागरिकों से संबंध आता है. आज भी आम नागरिक पुलिस स्टेशन अथवा न्यायालय में बाद में जाएंगे, वह सीधे पत्रकारों के पास पहले आते है.
देश में मीडिया को लेकर बदलते हालात के संदर्भ में उन्होंने कहा कि, पहले केवल रेडियो ही था. पश्चात अखबार बढते गए. वर्तमान में देश में 140 करोड पत्रकार और फोटोग्राफर है. वहीं अब सोशल मीडिया का दौर आ गया है. परंतु देश में सोशल मीडिया का काफी दुरूपयोग हो रहा है. भारत देश में ढाई करोड युट्यूब चैनल है. सोशल मीडिया की विश्वसनीयता नहीं है. भारतीय लोकतंत्र में सोशल मीडिया पर सेन्सर शिप लगाई जानी चाहिए. इससे दुरूपयोग पर रोक लगेगी. अनिल अग्रवाल ने अंत में यह भी कहा कि केंद्र की मोदी सरकार द्बारा समान नागरिक कानून लाने के प्रयास क्रांतिकारी हो सकते है. वह उसका व्यक्तिगत तौर पर समर्थन करते है. उन्होंने कार्यशाला में जोर देकर यह भी कहा कि पीढी कितनी भी बदले, लेकिन प्रिंट मीडिया कभी खत्म नहीं हो सकता.
इस कार्यशाला में श्रमिक पत्रकार संघ के अध्यक्ष गोपाल हरणे ने अपने संबोधन में कहा कि भारतीय संविधान और डॉ. बाबासाहब आंबेडकर कभी अलग नहीं हो सकते. संविधान हमारा प्राण है. उन्होंने सामाजिक न्याय विभाग की विभिन्न योजनाओं तथा जाति प्रमाणपत्र बाबत जानकारी दी. इसी तरह जिला सूचना अधिकारी हर्षवर्धन पवार, जिला जाति प्रमाणपत्र जांच समिति की उपायुक्त जया राउत, जिला परिषद के जिला समाज कल्याण अधिकारी राजेन्द्र जाधव, समाज कार्य महाविद्यालय के प्रा. डॉ. राजकुमार दासरवाड ने भी अपने समयोचित विचार व्यक्त किए.
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रादेशिक उपायुक्त सुनील वारे ने कहा कि सामाजिक न्याय विभाग व पत्रकारों का रिश्ता निकट का है. विविध योजना चलाते हुए यह विभाग 37 लाख लाभार्थियों को अपनी सेवा दे रहा है. सामाजिक न्याय विभाग संविधान के मुताबिक ही कार्यरत है और सामाजिक समता निर्माण कर रहा है. संविधान की आत्मा आर्टीकल 32 है. इसके मुताबिक उन्हें अधिकार मिलते है. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक उद्देशिका यह भारतीय संविधान घटना का एक भाग ही है. समता निर्माण करने के लिए देश पूरी ताकत से काम कर रहा है. काम की गति बढाने के लिए अखबार जैसे माध्यम की आवश्यकता है. कोरोना काल में वृत्तपत्रों पर संकट आया था. सोशल मीडिया के कारण अखबारों का काफी नुकसान हुआ. फिर भी प्रिंट मीडिया कायम है. सोशल मीडिया प्रभावी माध्यम रहा फिर भी प्रिंट मीडिया बंद नहीं हो सकता.
इस कार्यशाला की शुरूआत अतिथियों के हाथों क्रांतिसूर्य ज्योतिबा फुले, भारत रत्न डॉ. बाबासाहब आंबेडकर और राजश्री शाहू महाराज की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर व दीप प्रज्वलन के साथ हुई. पश्चात सामाजिक न्याय विभाग की तरफ से प्रमुख अतिथियों का स्वागत किया गया. प्रास्ताविक सामाजिक न्याय विभाग की सहायक आयुक्त माया केदार ने किया. उन्होंने अपने संबोधन में समता पर्व की विस्तृत जानकारी दी और कार्यशाला का उद्ेदश्य विषद किया. कार्यक्रम में सामाजिक न्याय विभाग के अधिकारी, कर्मचारी,पत्रकार तथा विद्यार्थी बडी संख्या में उपस्थित थे.

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