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जिले से कौन बन सकता है मंत्री और पालकमंत्री

क्या कहते है राजनीतिक समीकरण और पार्टियों की नितियां

अमरावती/दि.26- महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव पूरे हो गए. 23 नवंबर को वोटो की गिनती हुई और अमरावती जिले का अब तक का राजनीतिक इतिहास इस चुनाव में उलट-पुलट होता हुआ दिखाई दिया. जहां एक ओर कांग्रेस पूरी तरह साफ हो गई वहीं भाजपा जिले में सिरमौर बनकर उभरी. भाजपा ने पांच सीटें जीती और एनडीए में शामिल दो पार्टियों ने एक-एक सीटें इस तरह 8 में से 7 सीटें जीत कर भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति का जिले की राजनीति पर निर्विवाद वर्चस्व दिखाई दिया. इन नतीजों में रवि राणा लगातार चौथी बार चुनाव जीते और बच्चू कडू तथा यशोमती ठाकुर जैसे नेताओं को हार का सामना करना पडा.
नतीजे आने के बाद भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना उबाठा और युवा स्वभिमान पार्टी के विजयी उम्मीदवार इन दिनों मुंबई में है. अब हलचल नई सरकार, नये मुख्यमंत्री और नये मंत्री मंडल को लेकर दिखाई देने लगी है. इन्ही सब के बीच अब जिले में चर्चा है कि कौन मंत्री बनेगा और पालकमंत्री किसे बनाया जाएगा. हालांकि अभी अधिकृत तौर पर कोई घोषणा नहीं हुई है, लेकिन नई सरकार में राजनीतिक हलको से मिल रही खबरों के अनुसार लगभग 5 विधायकों पर एक मंत्री बनाया जा सकता है. यदि कुछ महत्वपूर्ण विभागों की अदला बदली करनी है तो यह संख्या थोडी बहुत बदल सकती है. जिसमें एकाद मंत्री कम ज्यादा हो सकता है.
जिले में मंत्री पद की अलग-अलग संभावनाएं है.
प्रताप अडसड
किसी समय विदर्भ में भारतीय जनता पार्टी का सबसे बडा चेहरा माने जाते अरुण अडसड के सुपुत्र और धामणगांव विधानसभा क्षेत्र से दूसरी बार विधायक बने प्रताप अडसड मंत्री पद की रेस में सबसे आगे दिखाई देते हैं. भाजपा ने जिले में पांच सीटें जीती है. इसके अलावा भाजपा चाहेंगी की, पिछले दस वर्षो से जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में उसकी (भाजपा) सुख चुकी राजनीतिक फसल फिर लह-लहायें. प्रताप अडसड को छोडकर बाकि बचे हुए राजेश वानखडे, प्रवीण तायडे, उमेश यावलकर और केवलराम काले भाजपा की टिकट पर पहली बार चुनकर आए हैं. भाजपा यह भी चाहेंगी कि जिले का पालकमंत्री पद भी उसी के पास रहें.
चुनाव जीतकर मुंबई पहुंचे अमरावती जिले के सभी भाजपाई विधायक जब देवेन्द्र फडणवीस के सागर बंगले पर कल जमा हुए तो प्रताप अडसड के नाम की चर्चा जोरो पर थी. प्रताप अडसड का एक प्लस पाईंट यह भी है कि वे विनम्र, सभी गुटों को चलने वाले और अच्छी प्रशासनीक पकड के माहिर माने जाते हैं. यदि भाजपा पिछले सरकार की तरह अन्य जिलों के नेताओं को पालकमंत्री पद नहीं देती है तो प्रताप अडसड एकमात्र चेहरा दिखाई देते है. जो मंत्री और पालकमंत्री दोनों बन सकते हैं.
रवि राणा
भाजपा के नेतृत्व वाली महायुति में युवा स्वाभिमान पार्टी को एक सीट दी गई थी. इस एकमात्र सीट पर रवि राणा लंबे अंतराल से चुनाव जीते. न केवल चुनाव जीते बल्कि यह उनकी लगातार चौथी जीत है. रवि राणा देवेन्द्र फडणवीस के करीबी माने जाते है. इस हिसाब से राणा के मंत्री बनने की जिले में सबसे ज्यादा चर्चा है.लेकिन राजनीतिक हिसाब किताब की बात करें तो इसके लिए राज्य में चुनकर आए हुए चारो अपक्षों का रवि राणा को साथ लेना होगा. क्योंकि चार के पीछे एक मंत्री पद का फार्मूला यहां भी लागू हो सकता है और यदि देवेन्द्र फडणवीस के नजदीकी के रुप में रवि राणा का नंबर लगता है तो सारे राजनीतिक हिसाब किताब परे रखे जा सकते हैं. देवेन्द्र फडणवीस के राजनीतिक दुश्मनों के रुप में बच्चू कडू और यशोमती ठाकुर को देखा जाता था. इन्हें हराने में भी रवि की भूमिका रही है. लेकिन भाजपा यह कतई भी नहीं चाहेंगी की पांच विधायक वाले जिले में एक विधायक वाली पार्टी का नेता उनका पालकमंत्री बने. यह भी याद रखना होगा कि पिछले ढाई साल की सरकार में रवि राणा ने कई बार मंत्री बनने की तैयारी कर ली थी. परंतु रवि राणा के राजनीतिक गॉड फादर देवेन्द्र फडणवीस ने अंत तक राणा को मंत्री नहीं बनाया था. यह पूरी संभावना है कि रवि राणा राज्यमंत्री बनाए जा सकते है. परंतु रवि को पालकमंत्री बनने के लिए लंबा जुगाड लगाना होगा. यदि राणा का पाना यहां सभी के नट कसता है तो पालकमंत्री पद पर उनका भी नंबर लग सकता है.
सुलभाताई खोडके
इस बार दूसरी दफा राष्ट्रवादी कांग्रेस से और एक बार कांग्रेस से इस तरह तीन बार विधायक बन चुकी सुलभाताई खोडके राष्ट्रवादी कांग्रेस के कोटे से मंत्री पद की रेस में है. सुलभाताई के पति संजय खोडके राजनीति में अजित पवार के ब्लाईंड फॉलोअर माने जाते है. संजय खोडके के लिए अजित पवार का शब्द अंतिम है. यदि राष्ट्रवादी कांग्रेस के कोटे से राजनीतिक हिसाब किताब लगाया जाए तो विदर्भ में घडी ने पांच सीटें जीती है. सुलभाताई तीन बार विधायक बन चुकी है और महिला प्रतिनिधित्व के रुप में उन्हें राज्यमंत्री बनाया जा सकता है. विदर्भ में अजित पवार का इतना अच्छा स्ट्राईक रेट इसके पहले कभी नहीं रहा. लेकिन पांच विधायकों वाली भाजपा, जिले में सुलभाताई को पालकमंत्री शायद ही बनने देंगी. यह भी उल्लेखनीय है कि संजय खोडके राजनीतिक के अति महत्वकांक्षी नहीं है. खोडके दम्पत्ति शांत, संयमी और लॉयलिस्ट पॉलिटिक्स करते है. इस हिसाब से सुलभाताई का मंत्री बनना पूरी तरह अजित पवार के रुख पर है. एक जानकारी यह भी है कि संजय खोडके को विधानपरिषद पर लिया जा सकता है. यदि अजित पवार के दिमाग में संजय खोडके को विधानपरिषद में लेना होगा तो सुलभाताई का मंत्री पद प्रलंबित भी रखा जा सकता है.
उमेश यावलकर
यह नाम आपकों चौका सकता है. परंतु भाजपा जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों में गई है, पार्टी हमेशा चौकाने वाले फैसले कर रही है. डॉ. अनिल बोंडे को राज्यसभा में शामिल किए जाने का फैसला याद करें जब विदर्भ से एक ओबीसी गुमनाम चेहरा भाजपा ने सीधे राज्यसभा भेजा था. अब यदि भाजपा विदर्भ से किसी ओबीसी चेहरे अथवा माली समाज को प्रतिनिधित्व देना चाहे तो इसी एक मुद्दे पर उमेश यावलकर को मंत्रीमंडल में शामिल किया जा सकता है. लेकिन इसकी राजनीतिक संभावनाएं बहुत कम है. एक चर्चा यह भी है कि डॉ. अनिल बोंडे, जो भाजपा के जिलाध्यक्ष भी है कि कडी मेहनत से ही जिले में पांच भाजपा विधायक बने.यदि बोंडे अंदर बट्टे फिल्डींग लगाते है तो यावलकर का नंबर लग सकता है.

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