अमरावतीमहाराष्ट्र

किसे मिलेगी सीट और कौन होगा प्रत्याशी?

महायुति व महाविकास आघाडी में उम्मीदवारी हेतु जबर्दस्त भीड

अमरावती/दि.18– राज्य की सत्ताधारी महायुति तथा विपक्षी गठबंधन महाविकास आघाडी में अब तक सीटों के बंटवारे का मसला हल नहीं हुआ है. जबकि इन दोनों राजनीतिक गठबंधनों में उम्मीदवारी के लिए दावेदारों की अच्छी खासी भीड है. वहीं दूसरी ओर तीसरी आघाडी का विदर्भ में कोई विशेष बोलबाला दिखाई नहीं दे रहा और कुछ गिने-चुने निर्वाचन क्षेत्रों में ही मनसे का ‘इंजिन’ चलने व दौडने की तैयारी कर रहा है. विगत विधानसभा चुनाव का लेखा-जोखा देखने पर पता चलता है कि, पिछली बार अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में कांगे्रस व भाजपा के प्रत्याशी ही खडे थे और इस बार भी लगभग वहीं स्थिति दिखाई देने के पूरे आसार है. ऐसे में अब सभी की निगाहे इस ओर लगी हुई है कि, दोनों प्रमुख गठबंधनों के किस दल के हिस्से में कौन सी सीट आती है और किस निर्वाचन क्षेत्र से किसे-किसे प्रत्याशी बनाया जाता है.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक अमरावती जिले के 8 निर्वाचन क्षेत्रों में से धामणगांव रेल्वे, तिवसा, अचलपुर व मेलघाट इन चार विधानसभा निर्वाचन प्रक्रिया में भाजपा के प्रत्याशी कमल चुनाव चिन्ह पर खडे रहेंगे. वहीं अमरावती, धामणगांव रेल्वे, तिवसा, दर्यापुर, अचलपुर व मेलघाट, निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी पंजा चुनाव चिन्ह के साथ मैदान में रहेंगे. इसके अलावा अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से मनसे तथा अचलपुर निर्वाचन क्षेत्र से तिसरी आघाडी के उम्मीदवार मैदान में रहेंगे. जबकि महायुति के तहत अजीत पवार गुट वाली राकांपा द्वारा अमरावती व मोर्शी तथा शिंदे गुट वाली शिवसेना द्वारा दर्यापुर, बडनेरा व मेलघाट क्षेत्र से अपने प्रत्याशी खडे किये जाएंगे. उधर महाविकास आघाडी में उद्धव सेना ने बडनेरा, दर्यापुर व धामणगांव रेल्वे तथा शरद पवार गुट वाली राकांपा ने मोर्शी व बडनेरा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लडने की तैयारी की है. साथ ही साथ वंचित बहुजन आघाडी द्वारा जिले के आठों विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लडने की घोषणा की गई है. ऐसे में अब किस निर्वाचन क्षेत्र से प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा किसे अपना प्रत्याशी बनाया जाता है और चुनावी रेस में प्रमुख दावेदार कौन-कौन हो सकते है, इस ओर सभी का ध्यान लगा हुआ है.

* 5 वर्ष की तैयारी पर फिर सकता है पानी
वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव की तुलना में अब राजनीतिक स्थितियां काफी हद तक उलट-पुलट गई है, क्योंकि शिवसेना व राकांपा में हुई दोफाड के बाद दोनों ही दल दो अलग-अलग हिस्से में बंट गये है. जिसके बाद दोनों दलों का एक हिस्सा सत्तापक्ष में व दूसरा हिस्सा विपक्ष में शामिल हो गया. ऐसे में दोनों ही दलों के स्थानीय पदाधिकारी भी दो हिस्सों में बंटकर अब एक दूसरे के खिलाफ खडे नजर आ रहे है. वहीं पिछली बार जो लोग एक-दूसरे के खिलाफ थे, वे अब एक दूसरे के साथ गले में हाथ डाले खडे दिखाई दे रहे है. लेकिन इसी चक्का में चुनाव लडने की इच्छा रखने वाले कई लोगों के राजनीतिक समीकरण गडबडाने लगे है. क्योंकि उनका निर्वाचन क्षेत्र किसी सहयोगी घटक दल के हिस्सें में जाने की संभावना बनती दिखाई दे रही है. जिसके चलते विगत 5 वर्षों से चुनाव लडने की तैयारी कर रहे कई इच्छुकों को इस बार भी मायूस रहना पड सकता है. विशेष तौर पर कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में तो महायुति में शामिल रहने वाली भाजपा के कई पदाधिकारियों का राजनीतिक करियर ही खत्म हो सकता है. साथ ही साथ वरिष्ठों द्वारा लिये गये निर्णय के चलते सहयोगी दलों के लिए कुछ निर्वाचन क्षेत्रोें को छोडना भाजपा के लिए भी नुकसानदायक साबित हो सकता है.

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