इस नूरा कुश्ती से किसका फायदा, किसका नुकसान?
अमरावती के बाशिंदे पिछले सप्ताह से शब्दों की नूरा कुश्ती देख रहे थे. मंगलवार को उन्हें इस कुश्ती का फाइनल देखने की बडी उत्सुकता थी. मगर उनके हाथ निराशा लगी. दोनों पहलवानों ने अपनी -अपनी तलवारें म्यान कर दी. राजनीति के धुरंधर पट्ठे बच्चू कडू और बाजीगर कहलाते रवि राणा ने ताजा विवाद का पटाक्षेप करने की घोषणा की. बच्चू कडू ने अमरावती के नेहरु मैदान में पहले तो खम ठोकी फिर राणा की क्षमा याचना को स्वीकार किया. राणा मुंबई में थे. उन्होंने वहां बच्चू के प्रति बोले गये आरोप के शब्द वापस ले लिये. इस पूरी कवायद में किसका फायदा और किसका नुकसान हुआ? यह सोचने पर अमरावती का हर जागरुक बंदा विवश हुआ है. क्योंकि इन दोनों सियासतदां की नूरा कुश्ती के बीच ही अमरावती के लोगों ने एक भीषण और करुण हादसे को सहन किया. प्रभात चौक की इमारत ढह गई. मानवीय गलती रही. 5 लोगों को जान से हाथ धोना पडा. इसके बावजूद अमरावती के 2 जिम्मेदार जनप्रतिनिधि मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के दालन में आपसी वाकयुद्ध पर समझौते में मशरुफ थेे. कडू ने अपने ऐलान के अनुसार मंगलवार की सभा सम्मेलन ली. वहां कार्यकर्ताओं को पुचकारने वाली बातें कहीं. राजनीतिक सुविधा की दृष्टि से घोषणाएं की. राणा भी कमोबेश ऐसी ही बातों और घटनाओं में व्यस्त थे.
देखा जाये तो महाराष्ट्र का पूरे देश में गौरवशाली राजनीतिक इतिहास रहा है. यहां सत्ता के लिए उठापठक देश के बडे सूबो उत्तरप्रदेश, बिहार और अन्य प्रांतों की तुलना में कम ही देखने मिली. भाजपा के सत्ता में आने के बाद उसकी सत्ता पर रहने की लालसा ने यहां उथल-पुथल मचा रखी है. ढाई साल तक उद्धव और पवार की सत्ता रही. भाजपा ने शिंदे को मुहरा बनाकर अपनी सत्ता कायम की है. ऐसी परिस्थिति में भाजपा को आज भी इस बात का बडा ऐहसास है कि, आम जनता उसकी सत्ता बदल की उठापठक को पचा नहीं पायी है. भाजपा को मुश्किल लग रहा है. ऐसे में फडणवीस के खासमखास कहे जाते रवि राणा द्बारा बच्चू कडू पर सीधे 50 खोके का आरोप लगाना और उपजी परिस्थितियों के बाद मामले का पटाक्षेप करना. इन सबके बाद एक बात सोचने वाली है कि, किसका फायदा हुआ है. किसका नुकसान हुआ है. अल्पविराम, पूर्णविराम की बातें हवा मेें हैं. अब फडणवीस से लेकर कडू और राणा कह रहे हैं कि, विकास के लिए वे एकत्र थे, हैं और रहेंगे.
मगर क्या सचमुच इन तीनों को अमरावती तथा संभाग का विकास चाहिए. यदि विकास चाहिए होता, तो 4 दिन पहले वे जो आरोप एक-दूसरे पर लगा रहे थे. वह नहीं लगाते. 50 खोके का रवि राणा ने सीधा आरोप लगाना उपरान्त सरकार मुश्किल में पडते देख आधी रात को सीएम और डीसीएम द्बारा दोनों को बुलाकर, पुचकार कर अथवा शायद डांट डपटकर मामले को निपटाना. मना लिया गया कहना. प्रश्न तो अब भी जहां के वहीं खडे हैं. 50 खोके का आरोप कथित लेन-देन, जेबे काटकर किराणा बांटने की बात, बच्चू के गांव पहुंचकर दत्तक लेने की बात. या गुवाहाटी में बच्चू ही नहीं अन्य द्बारा खोके लेने की बातें यह सब प्रश्न अनुत्तरित है?
इस सबके बीच महत्वपूर्ण प्रश्न अमरावती जिले के विकास को लेकर है. जिले का विकास हुआ क्या? क्या हो रहा है? हमारे यहां 3 सांसद, 2 मंत्री और प्राय: सभी दलों के विधायक होने के बाद भी जिले का क्या और कितना विकास हुआ यह किसी से छिपा नहीं है. इच्छा अथवा महत्वाकांक्षा होती तो जब देश के सर्वोच्च पद पर प्रतिभाताई पाटील विराजमान थी तभी अमरावती का सही विकास हो जाता. केवल जरुरत थी सभी को एक होकर राष्ट्रपति भवन जाने की. फिर भी प्रतिभाताई ने अमरावती अपनी ससुराल और घर माना. अमरावती को मॉडल रेल्वे स्टेशन सहित अनेक सौगातें दी.
यूं तो राजनीति में नेताओं में आपसी अदावत आम बात है. लेकिन अमरावती में फिलहाल यशोमति-सुलभाताई, राणा-बच्चू, राणा-पोटे, नवनीत-यशोमति, खोडके-सुनील देशमुख जैसी अदावत वाली जोडियां सर्वविदित है. ऐसे में क्या विकास का लक्ष्य पाया जा सकेगा? यदि विकास चाहिए, तो आपसी रंजिश को कुछ समय भुलाकर विकास का ब्ल्यू प्रिंट बनाना होगा. हमारा जिला अनोखा कहा जा सकता है. अन्य जिले विकास प्रकल्पों के लिए तरसते हैं. हमारे यहां विकास के बडे-बडे प्रकल्प आये. फिर चले गये. ऐसा देश के और किसी जिले में शायद ही हुआ हो. अमरावती इसीलिए इस मायने में भी अनूठी कहीं जा सकती है. बहुत पहले की बात न करें, हाल के वर्षों-दशक की बात करें, तो भातकुली टेक्स्टाइल पार्क परियोजना आकर चली गई. मिसाइल कारखाना यहां बसते-बसते रह गया. उसकी केवल 4 दीवारी बनी थी. ऐसे ही हवाई अड्डे को लेकर पिछले 10 वर्षों से हवाई बातें हो रही है. मेडिकल कॉलेज की 2 मंत्री और 3 विधायक घोषणा कर चुके है. किंतु अभी तक शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय कागजों पर भी उतरा नहीं है.
दूसरी ओर बच्चू कडू अभी भी अंतडी बाहर निकालने की बात कर रहे हैं. राणा भी फडणवीस थोडी भी छूट दे दे तो ऐसे ही बोल वचन बच्चू के विषय में कहेंगे. भविष्य में करेंगे भी, यह तय है. राणा ने आरोपों को लेकर माफी मांग ली. बच्चू ने अपने जेब काटकर किराणा बांटने के आरोपों को पीछे नहीं लिया है. जिससे सोमवार और मंगलवार के घटनाक्रम के बाद सवाल यहीं उठता है कि, दोनों में से फायदा और नुकसान किसका हुआ. सोमवार को राणा ने तो मंगलवार को बच्चू ने ‘विषय संपला’ कह दिया. अपने दोनों युवा और जिनसे जिले की जनता उम्मीदें लगाए बैठी है, उन दोनों की काफी उर्जा पखवाडे भर झगडा झंझट में चली गई. इसलिए जानकार मान रहे हैं कि, अमरावती जैसे पिछडे संभाग मुख्यालय की क्षति अवश्य हुई है. क्या आप इस बात से सहमत नहीं?