अमरावती सीट पर इतने दावेदार क्यों ! कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन
संभाग में आकर गये पीएम जैसे नेता, फिर भी नहीं हुई तस्वीर स्पष्ट
* आरक्षित सीट पर बाहरियों का दावा कैस
अमरावती / दि. 12- अब इस सप्ताह तो आम चुनाव की घोषणा होने की प्रबल संभावना है. अमरावती का वोटर भी चुनाव कार्यक्रम की बाट जोह रहा है. कई लोग चुनाव कार्यक्रम को देखकर छुट्टियों का बाहर जाने का कार्यक्रम बनानेवाले हैं. किंतु अमरावती की अनुसूचित जाति के व्यक्ति हेतु आरक्षित सीट पर कन्फ्यूजन ही कन्फ्ूयजन हो रखा है. चुनाव तारीख तो फिर भी तय हो जायेगी, घोषित हो जायेगी. बडा सवाल यह है कि आरक्षित सीट पर इतने दावेदार क्यों आ रहे हैं ? संभ्रम और बढा रहे हैं. इस मामले में फिलहाल तो समझ से परे स्थिति है.
अब तक क्या हुआ ?
इन्हीं 10-15 दिनों की बात करें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सरकार में नंबर 2 कहलाते गृह मंत्री अमित शाह और कई बडे नेता पश्चिम विदर्भ में आकर गये. उनके समर्थकों की भाषा में कहे तो चुनावी बिगुल फूंक गये. बावजूद इसके अमरावती से लेकर संभाग की सभी चार सीटों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हुई है. यह भी तय नहीं है कि कहां से कौन से दल का प्रत्याशी चुनाव लडेगा. देश में सत्तारूढ और विश्व की सबसे बडे पार्टी होने का दावा करनेवाली भाजपा ने भी अब तक पत्ते नहीं खोले हैं.
* उम्मीदवार नये-नये
अमरावती संसदीय क्षेत्र गत तीन चुनाव से एस सी आरक्षित है. दो बार शिवसेना के आनंदराव अडसूल यहां से दिल्ली पहुुंचे. पिछली बार नवनीत राणा ने अडसूल का विजय रथ रोका. अब की बार शायद आरक्षण व्यवस्था का अंतिम हैं. इसलिए अमरावती में नये-नये दावेदार घोषणा कर रहे हैं. 6 माह से वह लोग अमरावती में अचानक एक्टीव हो गये. जिनका यहां से कोई संबंध नहीं रहा. केवल यह सीट आरक्षित रहने के कारण वे लोग यहां दावा कर रहे हैं.
* संसदीय क्षेत्र की वोट स्थिति
अमरावती ऐसा संसदीय क्षेत्र है जहां सभी धर्म, जाति के वोटर्स अच्छी खासी संख्या में हैं. लगभग 20 प्रतिशत दलित, लगभग 20 प्रतिशत मुुस्लिम, इतने ही मराठा और बाकी वोटर्स में माली, तेली, हिन्दी भाषी और छोटे-छोटे समाज के वोटर्स हैं. सभी समाज के वोटर्स अच्छी खासी संख्या है. किसकी बी टीम रहेंगे क्या ? स्थानीय निवासी न रहने और केवल चुनाव के लिए यहां संपर्क बढाने वाले चूंकि आरक्षित सीट है. इसलिए दावा ठोकते दिखाई पड रहे हैं. इसके कारण संभ्रम हैं. कन्फ्यूज्ड हैं. कौन किसको वोट देगा, इसका दावा नहीं किया जा सकता.
* राणा के ईर्द गिर्द टिका चुनाव
भाजपा ने भले ही पत्ते नहीं खोले हैं. जाति प्रमाणपत्र का विषय कोर्ट में लंबित है. निर्णय कभी भी आ सकता है. फैसला पक्ष या विपक्ष, किसी में भी हो आज तो अमरावती का चुनाव वर्तमान सांसद नवनीत राणा पर केंद्रीत है. वहीं दो वर्ष पहले कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने बलवंत वानखडे के नाम की उम्मीदवार के रूप में घोषणा कर दी थी. जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है. दावेदारों के नाम बढते जा रहे हैं. जिन्होंने वानखडे के नाम का प्रेजेंटेशन किया था वह बैकफुट पर चले गये हैं. उध्दव ठाकरे पहले ही अमरावती का दावा छोड चुके हैं.
* प्रहार भी संभ्रमावस्था में
प्रहार संगठन के सर्वेसर्वा, विधायक बच्चू कडू के विधान आए दिन संभ्रम बढानेवाले ही रहें हैं. कभी वे मन से और शरीर से शिंदे के पक्ष में दिखाई देते हैं तो कभी सरासर खिलाफ. डीसीएम फडणवीस को लेकर भी कडू की पोजिशन डांवाडोल रही है. नवनीत राणा का कडू और उनका दल समर्थन करेगा या विरोध अभी तय नहीं है.
* वोटर्स से खिलवाड
अमरावती के मतदाताओं के साथ खिलवाड होने की भावना सोशल मीडिया पर व्यक्त हो रही है. समाज माध्यमों पर किसी व्यक्ति के लोकसभा उम्मीदवार के रूप में आगे आने की चर्चा के साथ ही कमेंट्स में तत्काल पूछा जाता है कि यह कौन है ? फलां कौन है ? ऐसी अवस्था बनी है. इसलिए अमरावती के वोटर्स को इस बार सोच विचार कर वोट देना होगा. उसे समझना होगा कि कौन वोट कटवा उम्मीदवार है ? समझना होगा कि स्थानीय और बाहरी व्यक्ति कौन है ? समझना होगा कि 5 वर्ष ईमानदारी से कौन उसके बीच में रहनेवाला है. कौन पढा लिखा है ? वरना 15 वर्षो से अमरावती की जनता अधर में है. 2024 से 2029 तक फिर अधर में ही रहेगी.
* क्या मिला इतने वर्षो में
अमरावती में गत डेढ दशक में कोई बडा स्थायी प्रकल्प साकार नहीं हुआ है. रेलवे वैगन मरम्मत कारखाना अब जाकर साकार हुआ है. इसे प्रतिभाताई पाटिल ने देश की महामहिम के रूप में मंजूर करवाया था. अन्यथा 20 वर्षो से बेलोरा विमानतल भी एक्टीव नहीं कर पाए हैं. 5 वर्षो मेंं चिखलदरा का चर्चित स्कायवॉक भी तैयार नहीं करवा सके हैं. सरकारी वैद्यकीय महाविद्यालय जीएमसी प्रदेश के एक दर्जन से अधिक जिलों को मिली हैं. इसका श्रेय डीसीएम फडणवीस को हैं. वे ही प्रदेश में एमबीएस के प्रवेश स्थान बढाने के हिमायती रहे हैं. अमरावती में कोई ठोस विकास कार्य नहीं हुए हैं. इस बात का कन्फ्यूजन किसी को नहीं है. बाकी चुनावी परिदृश्य को लेकर अभी कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है.