विदर्भ के दौरे पर क्यों नहीं आ रहे मनोज जरांगे पाटिल?
शीतसत्र में भी मराठा आंदोलन को लेकर नहीं दिखी थी कोई हलचल
* अमरावती व नागपुर में अब तक नहीं हुई जरांगे की एक भी सभा
अमरावती/दि.9 – मराठा आरक्षण आंदोलन का सबसे सशक्त चेहरा बन चुके मनोज जरांगे पाटिल इस समय महाराष्ट्र के राज्यव्यापी दौरे पर निकले. जिसके तहत वे पश्चिम व उत्तर महाराष्ट्र के अलग-अलग शहरों का दौर कर रहे है. साथ ही इससे पहले भी मनोज जरांगे पाटिल ने मराठवाडा सहित मध्य महाराष्ट्र व पश्चिम महाराष्ट्र के कुछ इलाकों का दौरा किया था. परंतु हैरत अंगेज बात यह है कि, मराठा आरक्षण की मांग को लेकर मराठा मुक मोर्चा व मराठा क्रांति मोर्चा जैसे आंदोलनों के समय सक्रिय सहभाग दर्शाने वाले विदर्भ क्षेत्र विशेषकर अमरावती व नागपुर जैसे संभागीय मुख्यालय वाले शहरों का मनोज जरांगे पाटिल द्वारा अब तक एक बार भी दौरा नहीं किया गया है. साथ ही साथ सबसे उल्लेखनीय बात यह भी है कि, मराठा आरक्षण की मांग को लेकर राज्य सरकार को हर समय घेरने वाले तथा मुंबई मंत्रालय पर मोर्चा ले जाने के लिए सदैव तत्पर रहने वाले मनोज जरांगे पाटिल ने विगत दिसंबर माह के दौरान नागपुर में आयोजित राज्य विधानमंडल के शीतसत्र के समय भी नागपुर विधान भवन पर किसी भी तरह के मोर्चे या घेराव जैसे आंदोलन वाली गतिविधि नहीं की थी. यूं तो कहने के लिए मनोज जरांगे पाटिल की विदर्भ क्षेत्र के खामगांव (बुलढाणा), अंतरगांव (अकोला) एवं यवतमाल में एक-एक जनसभा हुई है. परंतु उन्होंने आज तक पश्चिम विदर्भ के संभागीय मुख्यालय रहने वाले अमरावती तथा भाजपा व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मजबूत गढ रहने वाले नागपुर का रुख ही नहीं किया. जिसे लेकर काफी हद तक हैरत भी जताई जा रही है.
बता दें कि, जालना के अंतरवाली सराटी गांव से मराठा आरक्षण हेतु आंदोलन व अनशन की शुरुआत करने वाले मनोज जरांगे पाटिल इस समय राज्य सहित समूचे देश में बेहद चर्चित व्यक्ति है तथा अपने एक इशारे पर राज्य सहित राज्य की सरकार को हिलाने का दल भी रखते है. इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि, जब मनोज जरांगे पाटिल ने मुंबई मोर्चा की घोषणा की और वे जालना से मुंबई जाने हेतु रवाना हुए, तो उनके मुंबई पहुंचने से पहले ही राज्य सरकार ने उनकी सभी मांगों को मान्य करते हुए मराठा आरक्षण के बारे में अधिसूचना जारी कर दी थी. साथ ही जब मनोज जरांगे पाटिल द्वारा जालना के अंतरवाली सराटी गांव में मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आमरण अनशन किया जा रहा था, तो राज्य के कई मंत्रियों व विधायकों सहित आधे से अधिक सरकारी अमला भी मुंबई छोडकर अंतरवाली सराटी में मौजूद था. इस आंदोलन को मिली सफलता के चलते मनोज जरांगे पाटिल देखते ही देखते मराठा समाज का सबसे बडा व बेहद चर्चित चेहरा बन गये. यही वजह है कि, वे अपने दौरे के तहत राज्य के जिस भी शहर में पहुंच रहे है. वहां पर उनका मराठा समाज बंधुओं द्वारा बेहद गर्मजोशी के साथ स्वागत किया जा रहा है. क्योंकि विदर्भ क्षेत्र में भी मराठा-कुणबी व कुणबी-मराठा समाज की अच्छी खासी संख्या है और मराठा आरक्षण की मांग को लेकर विदर्भ क्षेत्र में भी लाखों की संख्या वाले मोर्चे निकाले गये थे. ऐसे में विगत लंबे समय से यह उम्मीद की जा रही है कि, अपने राज्यव्यापी दौरे के तहत मनोज जरांगे पाटिल द्वारा विदर्भ क्षेत्र का भी दौरा किया जाएगा. परंतु मनोज जरांगे पाटिल ने अब तक एक बार भी विदर्भ की राजधानी कहे जाते नागपुर व विदर्भ की उपराजधानी रहने वाले अमरावती का दौरा नहीं किया है. यद्यपि मनोज जरांगे पाटिल ने इससे पहले मराठवाडा व विदर्भ की सीमा से सटे विदर्भ के कुछ सीमावर्ती क्षेत्रों में जनसभाएं की है. परंतु जब तक उनका नागपुर या अमरावती में दौरा नहीं होता, तब तक उनका विदर्भ क्षेत्र में दौरा अधूरा ही माना जा सकता है.
* कौन है मनोज जरांगे, क्या रहा आंदोलन का इतिहास?
बता दें कि, 42 साल के मनोज जरांगे पाटिल मूल रूप से महाराष्ट्र के बीड जिले के रहने वाले हैं. तकरीबन 20 साल पहले सूखे से त्रस्त होकर उनके पिता जालना के अंकुश नगर की मोहिते बस्ती में आकर बस गए थे. 4 बेटों में सबसे छोटे मनोज जरांगे आज मराठा समाज का बड़ा नेता बन चुके हैं. साल 2010 में जरांगे 12वीं क्लास में थे, तभी उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी थी. फिर वे आंदोलन से जुड़ गए. उन्होंने अपनी आजीविका चलाने के लिए एक होटल में भी काम किया. बीते 12 साल में जरांगे ने 30 से ज्यादा बार आरक्षण आंदोलन किया है. मनोज जरांगे ने मराठा आरक्षण आंदोलन की मुहिम 2011 से शुरू की. 2023 में अब तक उन्होंने 30 से ज्यादा बार आरक्षण के लिए आंदोलन किया.
शुरू में मनोज जरांगे कांग्रेस के एक कार्यकर्ता थे. राजनीति में भी हाथ आजमाते हुए उन्होंने जालना जिले के युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे. लेकिन विचारधारा के मतभेद के चलते जल्दी ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया. बाद में मराठा समुदाय के सशक्तीकरण के लिए पार्टी से अलग होकर ’शिवबा संगठन’ नाम की खुद की संस्था बना ली. मनोज जरांगे के परिवार की आर्थिक स्थिति कुछ खास नहीं थी. उनके परिवार में माता-पिता, पत्नी, तीन भाई और चार बच्चे हैं. जब संगठन चलाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे, तब उन्होंने अपनी 2 एकड़ जमीन बेच दी थी. मनोज के नेतृत्व में साल 2021 में जालना के पिंपलगांव में तीन महीने तक आरक्षण के लिए धरना दिया था. 2016 से 2018 तक जालना में मराठा आरक्षण आंदोलन का नेतृत्व भी मनोज जरांगे ने ही किया था. लेकिन उस समय उनके ज्यादातर प्रदर्शनों की गूंज जालना जिले से बाहर नहीं जा पाई. परंतु गत वर्ष अक्तूबर-नवंबर माह में उनके द्वारा की गई भूख हडताल ने पूरे महाराष्ट्र में हलचल मचा दी थी. क्योंकि उनके अनशन स्थल पर पुलिस द्वारा किये गये लाठीचार्ज के बाद पूरे राज्य में हिंसक प्रदर्शनों का दौर शुरु हो गया था. वहीं अब मनोज जरांगे को मराठा आरक्षण आंदोलन का बड़ा चेहरा माना जाता है तथा उनके नाम की गूंज मराठवाड़ा क्षेत्र सहित समूचे राज्य एवं देश में है.