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जन्म प्रमाणपत्रों को लेकर ‘इतना सन्नाटा क्यों हैं भाई?’

सत्ता पक्ष व विपक्ष के सभी नेताओं ने साध रखी है चुप्पी

* भाजपा नेता सोमैया व कलेक्टर कटियार के बीच चल रही ‘नूरा कुश्ती’
* सरकार और प्रशासन ही दिख रहे पक्ष व विपक्ष की भूमिका में
* प्रशासनिक मनमानी से आम जनता नाहक फंस रही दिक्कत में
* अब तक जिले में एक भी बांग्लादेशी व रोहिंग्या नहीं मिला
अमरावती/दि.20 – विगत कुछ समय से अमरावती जिला विलंबित जन्म प्रमाणपत्रों के मामले को लेकर लगातार चर्चा में चल रहा है. खासकर जब से भाजपा नेता व पूर्व सांसद किरीट सोमैया ने यह आरोप लगाया है कि, अमरावती जिले के कुछ तहसील क्षेत्रों में अवैध तरीके से रह रहे बांंग्लादेशियों व रोहिंग्याओं ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जन्म प्रमाणपत्र बनाए हैं, तब से इस मामले में अच्छा-खासा तूल पकडा हुआ है. जिसके तहत जहां इसके पहले कुछ मामलों की जांच करते हुए अमरावती व अंजनगांव सुर्जी तहसील क्षेत्र में फर्जी जन्म प्रमाणपत्रों को लेकर कुछ लोगों के खिलाफ अपराधिक मामले भी दर्ज किए गए. वहीं अब राज्य सरकार के निर्देश पर नायब तहसीलदार स्तर के अधिकारी द्वारा जारी विलंबित जन्म प्रमाणपत्रों को खारिज करने का निर्णय लिया गया है. जिसके चलते अमरावती जिले की 4 तहसीलों में नायब तहसीलदारों द्वारा जारी 5611 विलंबित जन्म प्रमाणपत्रों को एक झटके के साथ खारिज कर दिया गया. क्योंकि विलंबित जन्म प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार नायब तहसीलदारों को नहीं, बल्कि तहसीलदारों का था और तहसीलदारों ने खुद पर काम का बोझ अधिक रहने की वजह को आगे करते हुए अपने इस काम का जिम्मा अपने अधिन रहनेवाले नायब तहसीलदारों को सौंपा था. परंतु अब इसका खामियाजा बिना वजह ही उन चार तहसीलों के 5611 आम नागरिकों को उठाना पड रहा है. लेकिन सबसे बडी हैरत की बात यह है कि, खुद को हमेशा ही जनता की सेवा के लिए सदैव तत्पर बतानेवाले किसी भी जनप्रतिनिधि अथवा राजनीतिक दल के पदाधिकारी द्वारा इस मुद्दे को लेकर कोई आवाज नहीं उठाई जा रही है तथा उन 5611 लोगों के जन्म प्रमाणपत्र अचानक ही खारिज कर दिए जाने के मुद्दे पर सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष तक पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है. वहीं भाजपा नेता किरीट सोमैया व जिलाधीश सौरभ कटियार के बीच एकतरह से जुबानी जंग या नूराकुश्ती वाली स्थिति बनी हुई है. साथ ही इस जरिए खुद सरकार और प्रशासन ही एक-दूसरे के खिलाफ पक्ष व विपक्ष वाली भूमिका निभा रहे है. खास बात यह भी है कि, भाजपा नेता किरीट सोमैया द्वारा लगाए गए आरोप के मुताबिक अब तक अमरावती शहर सहित जिले में एक भी बांग्लादेशी व रोहिंग्या नागरिक नहीं पाया गया है.
बता दें कि, राज्य सरकार ने जन्म-मृत्यु पंजीयन प्रमाणपत्र अधिनियम में संशोधन करते हुए विलंबित जन्म प्रमाणपत्र देने का अधिकार उपविभागीय दंडाधिकारी तथा तहसील दंडाधिकारी यानी तहसीलदार स्तर के अधिकारियों को दिया था और यह संशोधित अधिनियम 1 नवंबर 2023 से अमल में लाना शुरु किया गया. हालांकि इससे पहले भी अपने विभिन्न कामों की जरुरत की लिहाज से बडे बुजुर्गों द्वारा अदालत अथवा अन्य सक्षम प्राधिकरण के समक्ष हफलनामा पेश करते हुए अपने विलंबित जन्म प्रमाणपत्र प्राप्त किए जाते थे. वहीं अब नई व्यवस्था के तहत ऐसे प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकारी खुद सरकार ने तहसीलदारों को दे दिया. परंतु इस नई व्यवस्था के अस्तित्व में आने के करीब एक-सवा साल बाद भाजपा नेता किरीट सोमैया ने अचानक ही यह कहते हुए सनसनी मचा दी कि, इस व्यवस्था के तहत महाराष्ट्र के विभिन्न जिलो व तहसीलो में अवैध रुप से रहनेवाले बांग्लादेशियों व रोहिंग्याओं ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर अपने विलंबित जन्म प्रमाणपत्र बनावाए हैं. इसके चलते पूरे राज्य में अच्छा-खासा हडकंप मच गया. उस समय किरीट सोमैया के निशाने पर नाशिक जिले की मालेगांव तहसील सहित अमरावती जिले की अंजनगांव तहसील और अकोला जिला थे. जिसके चलते संबंधित क्षेत्रों के तहसील कार्यालयों की ओर से जारी जन्म प्रमाणपत्रों की जांच-पडताल भी करनी शुरु की गई. जिसमें से कुछ जन्म प्रमाणपत्रों हेतु पेश किए गए आवेदनों के साथ प्रस्तुत दस्तावेजों में कुछ हद तक त्रुटियां भी पाई गई. जिसकी वजह से ऐसे आवेदकों के खिलाफ सीधे पुलिस थाने में फौजदारी मामले भी दर्ज कराए गए. लेकिन हैरत और कमाल की बात यह रही कि इस तमाम उठापटक के बावजूद संबंधित तहसील क्षेत्रों में एक भी व्यक्ति बांग्लादेशी या रोहिंग्या नहीं पाया गया. जिसके बाद भाजपा नेता किरीट सोमैया ने एक नया शिगुफा छोडते हुए कहा कि, सरकार ने नायब तहसीलदारों को विलंबित जन्म प्रमाणपत्र जारी करने का अधिकार ही नहीं दिया था और कई स्थानों पर नायब तहसीलदारों द्वारा जन्म प्रमाणपत्र जारी किए गए. अत: ऐसे जन्म प्रमाणपत्रों को अवैध मानकर खारिज किया गया. जिसके बाद राज्य सरकार के राजस्व एवं वन मंत्रालय ने इसी शिकायत के आधार पर राज्य में नायब तहसीलदारों द्वारा जारी विलंबित जन्म प्रमाणपत्रों को खारिज करने का आदेश भी जारी कर दिया गया. इसके चलते अमरावती जिले की 4 तहसीलों में नायब तहसीलदारों द्वारा जारी 5611 विलंबित जन्म प्रमाणपत्र एक झटके के साथ खारिज हो गए. जिनमें सभी समाजों से वास्ता रखनेवाले लोगों का समावेश है. परंतु इतनी बडी संख्या में आम नागरिकों के जन्म प्रमाणपत्र खारिज कर दिए जाने की कार्रवाई होने के बावजूद किसी भी जनप्रतिनिधि अथवा राजनीतिक दल के किसी पदाधिकारी के मुंह से चूं तक नहीं निकली. जिसे लेकर हैरत जताई जा सकती है.
उधर दूसरी ओर इसी एक मुद्दे को लेकर भाजपा नेता किरीट सोमैया अब तक करीब 8 या 10 बार अमरावती शहर सहित जिले का दौरा कर चुके है और उन्होंने अपने हर दौरे के समय अमरावती के जिलाधीश सौरभ कटियार पर कर्तव्य में कोताही करनेवाले अपने अधिनस्थ राजस्व अधिकारियों व कर्मचारियों को बचाने का आरोप लगाया. साथ ही फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जारी जन्म प्रमाणपत्रों के मामले में जिलाधीश कटियार का रवैया असहयोगात्मक रहने की बात भी कही. जबकि जिलाधीश सौरभ कटियार का इस मुद्दे को लेकर कहना रहा कि, उन्होंने मामले की जांच हेतु एसडीओ स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की है और समिति की रिपोर्ट के आधार पर आवश्यक कार्रवाई भी की जा रही है. साथ ही सरकार की ओर से जारी निर्देशों के अनुरुप आवश्यक कदम भी उठाए जा रहे है. अत: सोमैया के आरोपो में कोई दम नहीं है. खास बात यह भी है कि, अमरावती के दौरे पर पहुंचने के बाद किरीट सोमैया जिलाधीश कार्यालय के पास स्थित ग्रामीण पुलिस अधीक्षक कार्यालय में बैठक करते हैं और उस बैठक में निवासी उपजिलाधीश अनिल भटकर को भी बुलाया जाता है. लेकिन इस मुद्दे को लेकर सीधी चर्चा करने के लिए किरीट सोमैया वहीं बगल में स्थित जिलाधीश कार्यालय जाकर कलेक्टर कटियार से मिलने की जहमत नहीं उठाते. बल्कि एसपी कार्यालय में हुई बैठक के बाद मीडिया के साथ बातचीत के दौरान जिलाधीश पर कर्तव्य में कोताही और असहयोगात्मक रवैए को लेकर आरोप लगाते है. ऐसे में इसे जुबानी जंग या नूराकुश्ती ही कहा जा सकता है.
* क्या ‘उन’ लोगों की वोटिंग भी अवैध थी?
विशेष उल्लेखनीय है कि, जिले में 5611 आम नागरिकों के जन्म प्रमाणपत्रों को एक झटके के साथ खारिज कर दिया गया. यह विलंबित जन्म प्रमाणपत्र तहसील कार्यालयों द्वारा 1 नवंबर 2023 से लेकर अभी हाल-फिलहाल यानी जनवरी-फरवरी 2025 तक जारी किए गए. इन जन्म प्रमाणपत्रों के आधार पर कई लोगों ने अपने आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट सहित अन्य जरुरी दस्तावेज भी बनवाए होंगे और ऐसे दस्तावेजों के आधार पर लोकसभा व विधानसभा के चुनाव में मतदान करने के साथ ही स्कूल व कॉलेज में एडमिशन, आयटी रिटर्न फाईल तथा विदेश यात्रा के लिए भी उन दस्तावेजों का प्रयोग किया होगा. लेकिन अब चूंकि उन 5611 लोगों के जन्म प्रमाणपत्र ही अवैध करार देते हुए खारिज कर दिए गए है. तो सीधा मतलब है कि, ऐसे लोगों द्वारा लोकसभा व विधानसभा के चुनाव में किया गया मतदान भी अवैध करार दिया जाना चाहिए और उनके द्वारा ऐसे दस्तावेजों का प्रयोग कर स्कूल व कॉलेज में ली गई एडमिशन और आयटी रिटर्न की फाईल को भी खारिज किया जाना चाहिए. जबकि हकिकत यह है कि, ऐसे लोगों की इसमें कोई गलती नहीं थी. क्योंकि, उन्होंने तहसीलदार के नाम पर विलंबित जन्म प्रमाणपत्र हेतु आवेदन पेश किया था और तहसीलदारों ने खुद पर रहनेवाले काम के बोझ और अपनी सुविधा को देखते हुए इस काम का जिम्मा अपने अधिनस्थ नायब तहसीलदारों को दिया था. जिससे आम जनता का कोई लेना-देना नहीं है. ऐसे में सरकार एवं प्रशासन ने नायब तहसीलदारों द्वारा जारी जन्म प्रमाणपत्रों को एक झटके के साथ रद्द करने की बजाए ऐसे प्रमाणपत्रों व उनके दस्तावेजों की अपने स्तर पर जांच-पडताल करनी चाहिए थी. क्योंकि आखिर नायब तहसीलदार भी सरकार की प्रशासनिक व्यवस्था का हिस्सा है. लेकिन इसके बावजूद आम जनता के सिर पर अचानक फूटी इस मुसीबत को लेकर सरकार एवं विपक्ष से जुडे राजनेताओं द्वारा एक शब्द भी नहीं कहा जा रहा है. जिसे लेकर हैरत ही जताई जा सकती है.

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