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हर बार जागने के लिए मौतें ही जरूरी क्यों?

आखिर कब ऐहतियाती प्रबंध करना सीखेगा प्रशासन?

* लोगों के प्रति अधिकारियों की जवाबदेही कब होगी तय?
अमरावती /दि 31अक्सर यह होता है कि, किसी भी तरह के हादसे या दुर्घटना के घटित होने के बाद भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति को टालने हेतु प्रशासन द्वारा बडे जोर-शोर से और युध्दस्तर पर काम शुरू किये जाते है. जो कि हकीकत मेें किसी दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं होता. यही वजह है कि, न तो ऐसी घटनाएं रूकती हैं और न उन घटनाओं की पुनरावृत्ति. ऐसे में प्रशासनिक अनदेखी व लापरवाही की वजह से घटित होनेवाली घटनाओं के चलते कई बार बेवजह ही कुछ लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पडता है. ऐसी घटनाओं को लेकर कुछ दिनों तक होहल्ला मचता है और फिर लोगबाग सबकुछ भुलाकर अगली कोई घटना घटित होने तक शांत हो जाते हैं. जिसके चलते पहले घटित हुई घटनाओं में जानो-माल का जो नुकसान हुआ, उसके प्रति किसी की कोई जवाबदेही ही तय नहीं हो पाती. ऐसे में सवाल उठाया जा सकता है कि, आखिर जनता के गाढे-पसीने की कमाई पर पलनेवाले और लगभग ऐश करनेवाले प्रशासनिक अधिकारियों को जनता के प्रति जवाबदेह होने के लिए और अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह से सजग होकर काम करने के लिए और कितनी मौतों व और कितनी दुर्घटनाओं का इंतजार है.
ज्यादा दिन नहीं बीते, जब ऐन नवरात्र से पहले गांधी चौक से अंबादेवी की ओर जानेवाली सडक के किनारे एक दो मंजिला इमारत अचानक ही भर-भराकर ढह गई थी. उस समय वक्त रहते इमारत में रहनेवाले लोगों को बाहर निकाल लिया गया था, जिसकी वजह से कोई जनहानि नहीं हुई. यदि वही घटना कुछ दिनों बाद ऐन नवरात्र के समय घटित भी होती, तब वहां जानो-माल का कितना नुकसान होता और घटनास्थल पर किस तरह का दृश्य दिखाई देता, इसकी महज कल्पना की जा सकती है. उस घटना को स्थानीय प्रशासन ने सबक के तौर पर लेना चाहिए था. लेकिन शायद इस घटना में किसी की जान नहीं गई. ऐसे में न तो उस घटना को लेकर ज्यादा होहल्ला मचा और न ही प्रशासन ने इसे गंभीरता से लिया. जिसके चलते मनपा क्षेत्र में रहनेवाली दर्जनों खस्ताहाल और जर्जर इमारतें अपनी-अपनी जगह पर बदस्तूर खडी रही, जिनमें प्रभात चौक से जवाहर रोड की ओर जानेवाले सडक के किनारे स्थित राजेंद्र लॉज की करीब 100 वर्ष पुरानी इमारत का भी समावेश था, जो कल रविवार 30 अक्तूबर की दोपहर उस समय अचानक ढह गई, जब सबसे निचली मंजिल पर स्थित राजदीप एम्पोरियम नामक दुकान में कुछ काम चल रहा था और इमारत के ढह जाने की वजह से इस दुकान में काम कर रहे पांच लोग मलबे के नीचे दब गये और वहीं पर उनकी दर्दनाक मौत भी हो गई. गनीमत मनाई जा सकती है कि, यह हादसा किसी कामकाजी दिन की बजाय रविवार को घटित हुआ और दीपावली के बाद घटित हुआ. अन्यथा गांधी चौक की तरह ही यहां प्रभात चौक पर भी जानोमाल का क्या नुकसान हुआ होता और यहां पर किस तरह का भयावह दृश्य दिखाई दिया होता, इसकी भी महज कल्पना की जा सकती है.
सबसे बडा सवाल यह है कि, जिन अंदेशों का हम यहां जिक्र कर रहे हैं, क्या उन अंदेशों की कल्पना स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को कभी नहीं होती. क्या शहर में तमाम तरह की व्यवस्था को चाक-चौबंद रखने के लिए भारी-भरकम वेतन पर नियुक्त यह अधिकारी अपने आंख, नाक व कान बंद कर के काम करते हैं, जो उन्हें कुछ भी दिखाई या सुनाई नहीं देता.
गत रोज राजेंद्र लॉज की जो बिल्डींग भर-भराकर गिरी है, वह किसी समय तीन मंजिला इमारत हुआ करती थी. जिसकी पहली और दूसरी मंजील का अधिकांश हिस्सा कुछ अरसा पहले ही ढह गया था और पहली मंजिल का जो हिस्सा बचा हुआ था, उसे बासे-बल्ली लगाकर टिकाये रखा गया था, जो किसी भी वक्त ढह सकता था. यह बात सडक पर खडे रहकर इस इमारत को देखनेवाले किसी भी व्यक्ति के समझ में आ सकती थी, लेकिन यही बात यहां से चंद फर्लांग दूर स्थित मनपा मुख्यालय में बैठनेवाले अधिकारियों को कभी समझ में नहीं आयी और वे बिल्डींग मालिक के साथ ‘नोटीस-नोटीस’ खेलने में ही मशगुल रह गये. संभवत: ‘नोटीस-नोटीस’ का यही खेल गांधी चौकवाली इमारत के मामले में भी खेला गया हो और शायद यह खेल शहर की उन 149 खस्ताहाल व जर्जर इमारतों के साथ भी खेला जा रहा है. जिसमें से करीब 35 इमारतें सर्वाधिक खतरनाक श्रेणी में पहुंच चुकी हैं और इन इमारतों के किसी भी वक्त ढह जाने का खतरा बना हुआ है.
ऐसी इमारतों के नाम मनपा प्रशासन द्वारा प्रतिवर्ष नाली व नालोें की साफ-सफाई जैसे मान्सून पूर्व कामों की तरह नोटीस जारी करते हुए अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर ली जाती है और फिर अगली बारिश तक शायद मनपा अधिकारियों को भी याद नहीं रहता कि, शहर में खस्ताहाल व जर्जर इमारतें भी हैं. लेकिन गांधी चौक और प्रभात चौक की दो इमारतों ने मनपा अधिकारियों की असलियत उजागर कर दी है. परंतु इस चक्कर में पांच घरों के चिराग बुझ गये और इन पांच मौतों के लिए सीधे तौर पर स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को जिम्मेदार कहा जा सकता है. यदि स्थानीय प्रशासन ने अपने कर्तव्यों में कोताही न की होती और पूरी इमानदारी के साथ जनता के प्रति अपनी जवाबदारी दिखाई होती, तो आज शहर के पांच घरों में मातम न पसरा होता. ऐसे में अपेक्षा की जानी चाहिए कि, इस तरह की घटनाओं के लिए अधिकारियों की जवाबदेही तय हो और दोषी पाये जानेवाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई भी निश्चित की जाये, ताकि अधिकारियों में आम जनता को लेकर जिस तरह की उदासिनता का भाव होता है, उस पर अंकुश लगाया जा सकता है. साथ ही साथ हर एक जिंदगी की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सकता है. क्योंकि किसी की भी जिंदगी इतनी सस्ती तो निश्चित ही नहीं होती है कि, वह प्रशासनिक अनास्था, अनदेखी, लालच या रिश्वतखोरी जैसी वजहों के चलते शहर में खडी जर्जर इमारतों के मलबे में दबकर दम तोड दे.

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