अमरावती

आदिवासी इलाकों में क्यों थम नहीं रहा मौत का सिलसिला

उच्च न्यायालय ने सरकार से किया सवाल

मेलघाट कुपोषण को लेकर अदालत में दायर जनहित याचिका
मुंबई- / दि. 18 मुंबई उच्च न्यायालय ने बुधवार को आदिवासी क्षेत्रों में हो रही मौतों को लेकर चिंता जताते हुए सरकार से सवाल पूछा कि, आखिर ऐसे इलाखों में हो रही मौतों का सिलसिला आखिर थम क्यों नहीं रहा है. उच्च न्यायालय ने यह बात मेलघाट से राज्य के अन्य आदिवासी क्षेत्रों में कुपोषण व स्वास्थ्य सेवाओं और डॉक्टरों की कमी के चलते होने वाली मौतों के मुद्दों को लेकर दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान ऐसा पूछा.
इस मामले को लेकर डॉ. राजेंद्र बर्मा व सामाजिक कार्यकर्ता बी. एस. साने सहित अन्य लोगों ने जनहित याचिका दायर की है. उच्च न्यायालय ने कहा कि, वर्ष 2006 में आदिवासी क्षेत्रों की स्थिति को लेकर 13 निर्देश जारी किये थे. 16 साल बाद भी इन पर अमल होता नहीं दिखाई दे रहा हैं. प्रसंगवश उच्च न्यायालय ने पालघर के मोखाडा क्षेत्र में समय पर अस्पताल में न पहुंच पाने के कारण अपने जुडवा बच्चों को गवाने वाली गर्भवती महिला को लेकर मीडिया में प्रकाशित खबर का जिक्र करते हुए कही.
मुख्य न्यायमूर्ति दिपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एम. एस. कर्णिक की खंडपीठ के समक्ष याचिकाकर्ता की ओैर से दलीलें पेश कर रहे वकील जुगलकिशोर गिल्डा ने कहा कि, आदिवासी इलाकों में जितने डॉक्टरों को तैनात किया जाता है, उसमें से 50 प्रतिशत डॉक्टर ड्युटी पर आते ही नहीं है. मेलघाट और धारणी में 400 से अधिक बच्चे कुपोषित पाये गए है. इस बीच उन्हाेंंने मेलघाट क्षेत्र के दो गांव में दूषित पानी के चलते बच्चों की हुई मौत की जानकारी भी खंडपीठ के समक्ष रखी. इससे पूर्व सामाजिक कार्यकर्ता बी. एस. साने ने खंडपीठ केा बताया कि, राज्य के विभिन्न विभागों के बीच समन्वय न होने के कारण आदिवासी इलाकों में बच्चों की मौते हो रही है. आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों के डॉक्टर नहीं है. इसके कारण नंदुरबार व अन्य क्षेत्रोें में बच्चों की मौत हो रही है. गर्भवती महिलाओं के आहार के लिए एक योजना के तहत 33 रुपए दिये जाते है. यह राशि पर्याप्त नहीं है. सामाजिक कार्यकर्ता साने ने कहा कि, मेलघाट व आदिवासी क्षेत्रों की स्थिति को सुधारने के लिए कुल 13 रिपोर्ट सौंपी जा चुकी है. इसमें आईपीएस अधिकारी छेरिंग दोरजे की रिपोर्ट काफी प्रभावित है. यदि इस रिपोर्ट पर सही ढंग से अमल किया जाता है तो हालात सुधारे जा सकते है. इस दौरान उन्होंने कहा है कि, इस मामले के समाधान के लिए एक ठोस नीति की जरुरत है. उन्होंने कहा कि, अधिकारी आदिवासी क्षेत्र का दौरा नहीं करते.
इन दलिलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने ड्युटी पर नहीं आने वाले 50 फीसदी डॉक्टरों की सूची मांगी है. उच्च न्यायालय ने कहा कि, जब तक हमारे सामने डॉक्टरों से जुडी जानकारी नहीं आयेगी तब तक इस मामले में जांच व अनुशासनात्मक कार्रवाई का आदेश नहीं दे सकते. खंडपीठ ने कहा कि, राज्य में महाधिवक्ता ने हमें जानकारी दी थी कि, दोरजे की रिपोर्ट के आधार पर अल्पकालिन व दीर्घकालिन कदम उठाए गए है. यह कदम कौनसे है, इसकी जानकारी दी जाए. खंडपीठ ने कहा कि, फिलहाल हमें बताया जाए कि, तत्काल आदिवासी क्षेत्रों के लिए कौनसा आदेश जरुरी है. हम उसको लेकर आदेश जारी करेंगे. इस मामले में अब खंडपीठ ने 12 सितंबर को सुनवाई लेने के आदेश दिये है.

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