आपसी रिश्तों के साथ ही हिंदु-मुस्लिम एकता का संदेश देगी मेरी फिल्म
अमरावती के बाल कलाकार यश गिरोलकर का कथन
* 13 मई को रिलीज हो रही है यश की फिल्म ‘सुल्तान शंभू सुभेदार’
* नि:स्वार्थ प्रेम व मानवीय संवेदनाओें को पिरोते हुए लिखी गई है फिल्म की कहानी
अमरावती/दि.10– इन दिनों जहां हर कोई केवल अपने आप में सिमटा हुआ है और किसी के पास किसी और के दु:ख-दर्द को सोचने-समझने के लिए वक्त नहीं है, जिसके चलते परिवार अब काफी हद तक बिखराव की समस्या से जूझ रहे है. साथ ही इन दिनों छोटी-छोटी बातों को लेकर जातिय व धार्मिक तनाववाली स्थिति बन जाती है. ऐसे में हम मानवीय संवेदनाओं के साथ-साथ हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देनेवाली एक फिल्म लेकर महाराष्ट्र के दर्शकों के सामने है और हमारी फिल्म ‘सुल्तान शंभू सुभेदार’ आगामी 13 मई को समूचे महाराष्ट्र राज्य के सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है, जिसकी मुख्य भूमिका मैंने निभाई है और मैं सभी दर्शकों से प्यार व आशिर्वाद मिलने की उम्मीद रखता हूं. इस आशय का प्रतिपादन मराठी फिल्म इंडस्ट्री में पैर जमाने के लिए पूरी तरह से तैयार स्थानीय बाल कलाकार यश गिरोलकर द्वारा किया गया.
आगामी 13 मई को प्रदर्शित होने जा रही अपनी फिल्म ‘सुल्तान शंभू सुभेदार’ के संदर्भ में दैनिक अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत करते हुए यश गिरोलकर ने कहा कि, अमरावती शहर निवासी ख्यातनाम फिल्म निर्माता, निदेशक व कलाकार एड. प्रशांत भेलांडे द्वारा एक सत्य घटना पर आधारित कहानी लिखी गई थी, जो उन्होंने फिल्म बनाने के लिहाज से मेरे पिता कैलाश गिरोलकर को सुनाई. नि:स्वार्थ प्रेम, समर्पण व त्याग सहित मानवीय संवेदनाओं को पिरोकर लिखी गई इस कहानी को सुनकर कैलाश गिरोलकर काफी प्रभावित हुए और उन्होंने इस पर फिल्म बनाने की तैयारी दर्शाई. जिसमें मुख्य किरदार सुल्तान के लिए करीब आठ-दस बाल कलाकारों के बाकायदा ऑडिशन लिये गये और अपने पिता द्वारा निर्मित की जानेवाली फिल्म में खुद उनका चयन सुल्तान की भूमिका के लिए ऑडिशन के आधार पर ही किया गया. क्योंकि उनके द्वारा दिये गये ऑडिशन से कहानी के लेखक एड. प्रशांत भेलांडे काफी प्रभावित हुए थे.
* पूरी तरह से अमरावती में शूट हुई है फिल्म
इस बातचीत में यश गिरोलकर ने बताया कि, यह फिल्म पूरी तरह से विदर्भ की मिट्टी और यहां की संस्कृति के साथ जुडी हुई है. जिसमें मराठी फिल्म इंडस्ट्रीज के दिग्गज कलाकारों के साथ-साथ स्थानीय कलाकारों को भी अभिनय का मौका दिया गया है और इसके बीच वैदर्भिय बोलों से सजे हुए है. साथ ही इस फिल्म की पूरी शूटींग अमरावती शहर के चपरासीपुरा, महादेवखोरी, सेंट जेवियर्स स्कुल, पंजाबराव देशमुख लॉ कॉलेज, यशोदा नगर स्थित आसरा माता मंदिर व मालटेकडी स्थित दरगाह परिसर में की गई. यहां तक कि फिल्म का कुछ हिस्सा खुद उनके अपने घर में ही शूट किया गया. ऐसे में यह फिल्म पूरी तरह से अमरावती में निर्मित फिल्म है. लेकिन इसमें कहीं पर भी गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं किया गया है और उच्चतम तकनीक व साधनों के जरिये फिल्म की शूटींग व निर्माण पर ध्यान दिया गया. ऐसे में यह फिल्म दर्शकों के पसंद की कसौटी पर पूरी तरह से खरी उतरेगी.
* बचपन से ही रहा एक्टिंग व फिल्मों का शौक
इस बातचीत के दौरान यश गिरोलकर ने बताया कि, उसे बचपन से ही एक्टिंग करने का और फिल्मे देखने का शौक रहा है और जब वह केवल तीन वर्ष की आयु का था, तब उसने पहली बार अपनी शाला में डान्स व एक्टिंग की थी. इसके बाद कक्षा 3 री में रहते समय भी ‘गरीब झाड’ नामक नाटक में अभिनय किया था. जिसके लिए उन्हें बाल नाट्य कलाकार के लिए राज्यस्तर पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ था. वही इसके उपरांत उन्होंने ‘जादू चा शंख’ और ‘भट्टी’ नामक दो नाटकों में प्रभावी भूमिका निभाई. जिसमें से ‘भट्टी’ को राज्य स्तर पर बेहतरीन ड्रामा का पुरस्कार मिला.
* घर की फिल्म रहने के बावजूद दिग्गज कलाकारों के सामने हुई झिझक
इस समय इस बातचीत में यश गिरोलकर ने कहा कि, यद्यपि इस फिल्म का निर्माण खुद उनके पिता द्वारा किया गया है. लेकिन फिल्म के सेट पर सभी कलाकारों के साथ एक समान व्यवहार होता था और उन्हे कोई विशेष ट्रिटमेंट नहीं मिलता था, बल्कि अपने सामने मराठी फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज कलाकारों को देखकर उन्हें थोडी झिझक भी होती थी. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपने पैशन के चलते मन लगाकर काम किया. इस बातचीत में यश गिरोलकर ने यह भी कहा कि, फिल्म में कई ऐसे दृश्य है, जिन्हें देखकर दर्शकों की आंखों से आंसू छलकेंगे और इन दृश्यों की शूटींग करते समय फिल्म के सेट पर भी सभी की आंखे नम हो गई थी. इसके साथ ही इस फिल्म में एक बेहद इमोनशनल गाना है, जो आंखों को जरूर नम करेगा. वही एक रोमांटिक गाना भी है, जो युवा वर्ग को खासा पसंद आयेगा. इसके अलावा फिल्म की कहानी के लिहाज से महत्वपूर्ण मोड रहनेवाला ‘वंदे मातरम्’ गीत फिल्म की कहानी को आगे बढाने के साथ-साथ देशभक्ति की भावना भी पैदा करता है.
* बेहद इमोनशनल मेलोड्रामा है फिल्म
आगामी 13 मई को राज्य के सभी सिनेमाघरों के साथ-साथ अमरावती के प्रभात टॉकीज में रिलीज होने जा रही अपनी फिल्म ‘सुल्तान शंभू सुभेदार’ को मौजूदा दौर के तनावपूर्ण माहौल के बीच हवा के ठंडे झोके और किसी मरहम की तरह बताते हुए फिल्म के मुख्य कलाकार गिरोलकर ने बताया कि, यह कहानी सुल्तान नामक एक छोटे बच्चे की है. जिसे तीन वर्ष की आयु में बच्चा चुरानेवाले गिरोह द्वारा चुरा लिया जाता है, लेकिन शंभु सुभेदार नामक रिक्षा चालक उसे अपनी जान पर खेलकर चोरों के चंगुल से छूडा लाता है. परंतू इतना छोटा बच्चा अपने घर व मां-बाप के बारे में कुछ नहीं बता पाता. ऐसे में शंभु सुभेदार उसे अपने बच्चे की तरह पालता है. इस दौरान अविवाहित रहनेवाले शंभु सुभेदार के जीवन में भी कई उतार-चढाव आते है और उसे कई मुश्किलों का सामना करना पडता है. देखते ही देखते कुछ साल का समय बीत जाता है और एक दिन अचानक पता चलता है कि, सुल्तान की दोनों किडनियां खराब हो गई है. तब शंभु सुभेदार उसे अपनी एक किडनी देने हेतु तैयार होता है और ऑपरेशन सफल रहता है. यह कहानी समाचारों के जरिये टीवी पर प्रसारित होती है. जिसे सुल्तान के पिता अब्दुल सहित उसके घर के लोग देखते है और सुल्तान को पहचानकर शंभु सुभेदार के घर आते है. जहां पर बच्चा वापिस लौटाने की मांग की जाती है. जिसके लिए शंभु सुभेदार को डराया-धमकाया भी जाता है और अंतत: यह मामला अदालत के सामने पहुंचता है. अदालत द्वारा इस मामले में क्या फैसला सुनाया जाता है, नि:स्वार्थ प्रेम और परिवार में से किसकी जीत होती है, सुल्तान पर शंभु सुभेदार या अब्दुल में से किसका हक अदालत द्वारा मान्य किया जाता है, इन सभी सवालों का जवाब आगामी 13 मई को प्रदर्शित होने जा रही मराठी फिल्म ‘सुल्तान शंभू सुभेदार’ के जरिये दर्शकों को मिलेगा.
* सभी ने की है कडी मेहनत
फिल्म के निर्माण और शूटींग के बारे में जानकारी देते हुए यश गिरोलकर ने बताया कि, फिल्म के संवाद व पटकथा लेखक एवं दिग्दर्शक डॉ. राजेंद्र माने हैं, वहीं इस फिल्म में दिगंबर नाईक, किशोर महाबोले, देवेंद्र कपूर, सुप्रीया बर्वे व ज्योति निचल जैसे कलाकारों द्वारा अपने अभिनय के जरिये अपनी-अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया गया है. साथ ही अरविंद हसबनिस ने इस फिल्म को अपने संगीत के सूरों से सजाया है. साथ ही इस फिल्म का निर्माण यश एसोसिएटस् एन्ड मुवीज द्वारा किया गया है.
* परिवार रहा हमेशा सबसे बडी ताकत
इस विशेष साक्षात्कार में यश गिरोलकर ने बताया कि, उनके माता-पिता छाया व कैलाश गिरोलकर ने बचपन से ही उनकी रूचि व रूझान का पूरा ध्यान रखा. साथ ही उन्हें हमेशा उत्साहित भी किया. यहीं वजह है कि, पढाई-लिखाई करने के साथ-साथ उन्होंने एक्टिंग के क्षेत्र में भी महज 17 वर्ष की आयु में अच्छा-खासा काम किया है और आज उनकी फिल्म बडे परदे पर रिलीज होने जा रही है. जिसके लिए उन्हे प्रजापिता ब्रह्मकुमारी की ब्र.कु. सीतादीदी तथा ब्र.कु. इंदिरादीदी का भी आशिर्वाद मिला है. इसके अलावा फिल्म की शूटींग के दौरान और अब प्रचार के दौरान उन्हें स्थानीय युवाओें से अच्छा-खासा प्रतिसाद भी मिल रहा है. ऐसे में वे अपनी फिल्म की सफलता को लेकर काफी हद तक आशान्वित है.
* किरदार में उतरने के लिए की विशेष तैयारी
महज तीन वर्ष की आयु में अपने माता-पिता से बिछड जानेवाले सुल्तान नामक बच्चे की बचपन से लेकर किशोरावस्था तक की भूमिका को निभाने और उस किरदार को अपने भीतर उतारने के लिए की गई तैयारियों के बारे में पूछे जाने पर यश गिरोलकर ने बताया कि, सुल्तान की भूमिका के साथ न्याय करने हेतु उन्होंने एक लंबा समय शहर के मुस्लिम बहुल इलाकों में भी बिताया. जिसके तहत शहर के पठान चौक, लालखडी, नागपुरी गेट, चपरासी पुरा व बडनेरा के अलग-अलग इलाकों में कई-कई घंटों तक समय बीताते हुए उन्होंने यह जानने और समझने का प्रयास किया कि, इन इलाकों में रहनेवाले 13 से 15 वर्ष की आयुवाले बच्चों के बात करने, उठने-बैठने, चलने-फिरने के तरीके कैसे होते है, इससे उन्हें अपने किरदार को साकार करने में काफी मदद मिली.
* समाज के सभी वर्गोें को देखना चाहिए फिल्म
इस बातचीत में यश गिरोलकर ने कहा कि, उनकी फिल्म ‘सुल्तान शंभू सुभेदार’ एक तरह से समाज के हर वर्ग की कहानी है. ऐसे में समाज के हर वर्ग ने इस फिल्म को जरूर देखना चाहिए. साथ ही वे खुद अपनी फिल्म का प्रचार करने हेतु अमरावती शहर व जिले के सभी क्षेत्रों का दौरा करते हुए समाज के हर वर्ग तक पहुंच रहे है. जिसके तहत उन्होंने अब तक खुद अपने स्कूल-कॉलेज व ट्युशन क्लास सहित कई स्कूल व कॉलेजोें व ट्युशन क्लासेस तक पहुंचते हुए फिल्म का प्रमोशन किया है और अब रिलीज से पहले आखरी दो दिन वे सभी मुस्लिम बहुल इलाकों में भी अपनी फिल्म का प्रमोशन करने के लिए पहुंचेगे.