महिला सशक्तिकरणः मानसिक और भावनात्मक संतुलन भी ज़रूरी

अमरावती/दि.7- आज के दौर में महिलाएँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं- घर, करियर, समाज, हर जगह वे अपनी प्रतिभा और मेहनत से सफलता हासिल कर रही हैं. लेकिन इस दौड़ में एक चीज़ जो अक्सर नज़रअंदाज़ हो जाती है, वह है महिलाओं का मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य.
* खुद को आखिरी स्थान पर क्यों
हमारी सामाजिक संरचना कुछ ऐसी बनी हुई है कि महिलाएँ हमेशा दूसरों का ध्यान रखने को ही प्राथमिकता देती हैं. घर की ज़िम्मेदारियों, बच्चों की परवरिश, बुजुर्गों की देखभाल, कार्यस्थल पर प्रदर्शन- इन सबके बीच वे खुद को भूल जाती हैं. कभी खुद के लिए समय निकालने पर उन्हें स्वार्थी समझा जाता है, तो कभी वे खुद ही अपराधबोध महसूस करने लगती हैं.
* मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य क्यों जरूरी है?
अक्सर सशक्तिकरण को आर्थिक और शारीरिक मजबूती से जोड़ा जाता है, लेकिन यह अधूरा सच है. अगर कोई महिला अंदर से खुश नहीं है, मानसिक रूप से संतुलित नहीं है, तो उसकी सफलता भी अधूरी रह जाती है. मानसिक और भावनात्मक रूप से सशक्त होने के लिए जरूरी है:
– अपनी भावनाओं को समझना और उन्हें स्वीकार करना.
– तनाव को संभालने की कला सीखना.
– अपनी इच्छाओं और जरूरतों को महत्व देना.
– ना कहना सीखना- हर किसी को खुश करना ज़रूरी नहीं.
– खुद के लिए समय निकालना और बिना अपराधबोध के आनंद लेना.
* समाज और परिवार की भूमिका
महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी का एक बड़ा कारण समाज और परिवार की सोच भी है. अगर कोई महिला थकी हुई महसूस करे, उदास हो, या अपने लिए समय मांगे, तो अक्सर उसे यह कहकर चुप करा दिया जाता है.
तुम तो घर में ही रहती हो, तुम्हें किस बात का तनाव? थोड़ा सहन करना सीखो, औरतों का जीवन ऐसा ही होता है. तुम्हें ही सब मैनेज करना होगा, वरना घर कैसे चलेगा?
यह सोच बदलने की ज़रूरत है. महिला भी एक इंसान है, कोई मशीन नहीं जो बिना रुके चलती रहे. परिवार और समाज को यह समझना होगा कि खुश और मानसिक रूप से संतुलित महिला ही एक स्वस्थ परिवार और बेहतर समाज का निर्माण कर सकती है.
* महिलाओं को खुद क्या करना चाहिए?
– महिलाओं को खुद भी यह समझना होगा कि उनका मानसिक स्वास्थ्य उतना ही ज़रूरी है जितना उनके परिवार या करियर की सफलता. इसके लिए वे छोटे-छोटे कदम उठा सकती हैं.
– हर दिन अपने लिए कम से कम 30 मिनट निकालें- चाहे वो योग हो, संगीत सुनना हो, किताब पढ़ना हो या कुछ और.
– अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त करें-अगर आप खुश नहीं हैं, तो उसे छुपाने की जरूरत नहीं.
– अपने लिए निर्णय लेने से न डरें जो आपको खुश रखे, वही करें.
– किसी से मदद माँगना कमजोरी नहीं, समझदारी है.
* सशक्तिकरण का असली अर्थ
– सशक्तिकरण सिर्फ नौकरी करने या आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने तक सीमित नहीं है. असली सशक्तिकरण तब होता है जब महिलाएँ अपनी भावनाओं को समझें, खुद को प्राथमिकता दें और मानसिक रूप से संतुलित रहें.
– अगर महिलाएँ खुद को आखिरी स्थान पर रखना जारी रखेंगी, तो धीरे-धीरे उनका मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य प्रभावित होगा, जिससे न सिर्फ वे खुद, बल्कि उनका परिवार और समाज भी प्रभावित होगा. इसलिए, यह ज़रूरी है कि महिलाएँ खुद को प्राथमिकता देना सीखें, क्योंकि खुद से प्यार करना कोई स्वार्थ नहीं, बल्कि आत्मसम्मान की पहचान है.
– खुद के लिए जीना सीखो, क्योंकि तुम भी उतनी ही महत्वपूर्ण हो, जितने तुम्हारे सपने और ज़िम्मेदारियाँ.
– निमिषा साबू,
काउंसलिंग साइकोलॉजिस्ट,
ब्लॉसम काउंसलिंग सर्विसेज,
अमरावती. 9423425900.