कर्म कौशल्य का हुआ सम्मान

राजनीति को अकसर ही जुगाड और जुआ कहा जाता है. साथ ही लोकतंत्र में जो जीता वही सिकंदर वाली बात कही जाती है. परंतु अमरावती से वास्ता रखनेवाले खोडके दंपति ने कभी भी राजनीति में जुगाड और जुए के तंत्र का प्रयोग नहीं किया. लेकिन इसके बावजूद आज खोडके परिवार में दो राजनीतिक सिकंदर हैं, जिसके तहत जहां सुलभा खोडके लगातार दूसरी बार अमरावती निर्वाचन क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुई हैं और अपने राजनीतिक कार्यकाल में तीसरी बार विधान भवन पहुंची हैं, वहीं सुलभा खोडके के राजनीतिक कैरियर के पीछे ‘बैक बोन’ के रुप में काम करनेवाले उनके पति व राकांपा के प्रदेश उपाध्यक्ष संजय खोडके भी अब राज्य विधान मंडल के उच्च सदन यानी विधान परिषद के लिए निर्विरोध निर्वाचित होकर विधायक बन चुके हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रारंभिक दौर से ही पार्टी एवं पार्टी नेतृत्व के प्रति समर्पित एवं एकनिष्ठ रहनेवाले खोडके परिवार विशेषकर काम करवाकर लेने का कौशल्य रखनेवाले संजय खोडके के लिए पार्टी द्वारा दिखाई गई इस उदारता को कर्मकौशल्य का सम्मान कहा जा सकता है.
कृषि स्नातक की पदवी प्राप्त करने के बाद अकोला स्थित महाबीज में सेवारत रहने के दौरान संजय खोडके को मंत्रालय में तत्कालीन मंत्री छगन भुजबल के ओएसडी के तौर पर काम करने का मौका मिला था और यहीं से संजय खोडके का राजनीतिक सफर एक तरह से शुरु हुआ, जिसके बाद संजय खोडके ने कभी भी पीछे पलटकर नहीं देखा और वे देखते ही देखते राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सभी बडे नेताओं के विश्वासपात्र सहयोगी बन गए. सत्ता के साथ बेहद करीबी संबंध रहने और खुद तीन बार विधायक के तौर पर सत्ताधारी दल के साथ रहने के बावजूद सुलभा खोडके और उनके पति संजय खोडके ने कभी इसे लेकर कोई गर्व नहीं दिखाया. बल्कि वे अपनी जमीन और पुराने सहयोगियों के साथ पहले की तरह ही जुडे रहे. खोडके दंपति की एक विशेषता यह भी रही कि, उन्हें वर्ष 2014 में राकांपा से निष्कासित किया गया था. लेकिन उस समय उन्होंने अपने पार्टी नेतृत्व के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा था. पश्चात संजय खोडके वर्ष 2019 में दुबारा राकांपा में लौट आए और सुलभा खोडके वर्ष 2019 में कांग्रेस की टिकट पर अमरावती निर्वाचन क्षेत्र की विधायक बनीं, जिन्होंने वर्ष 2024 का विधानसभा चुनाव आते-आते अजीत पवार गुट वाली राकांपा के साथ नजदीकी साधनी शुरु की, जिसके चलते विधायक सुलभा खोडके को कांग्रेस पार्टी से निष्कासित किया गया. लेकिन इस बार भी खोडके दंपति ने कांग्रेस पार्टी एवं नेतृत्व के खिलाफ एक भी शब्द नहीं कहा, उलटे खोडके दंपति ने बेहद विनम्रतापूर्वक कांग्रेस पार्टी व नेतृत्व के प्रति आभार ही ज्ञापित किया था.
उल्लेखनीय है कि, मंत्रालय में रहकर काम करना और लोगों के काम करवाना अपनेआप में एक बेहद कठिन काम है. लेकिन कर्मकौशल्य का गुण रखनेवाले संजय खोडके के पास मंत्रालय से काम करवाने का 35 वर्षों का प्रदीर्घ अनुभव है और वे मंत्रालय में रहते हुए केवल अमरावती ही नहीं, बल्कि किसी भी जिले से संबंधित काम को करवाने का कौशल्य रखते हैं और उन्होंने मंत्रालय में काम करने के दौरान कभी भी जाति-पाति, धर्म-पंथ व राजनीतिक दल को लेकर कोई भेद नहीं रखा, बल्कि सबको एक समान सम्मान देते हुए हर किसी के काम करवाए. छगन भुजबल से लेकर अजीत पवार तक सभी बडे नेताओं का विश्वास संपादित करनेवाले संजय खोडके अपने नेताओं का साथ किसी साए की तरह देते हैं और वे राकांपा नेता अजीत पवार के प्रति पूरी तरह से एकनिष्ठ रहे. यही वजह रही कि, संजय खोडके का नाम इससे पहले भी विधान परिषद के लिए पार्टी द्वारा तय किया गया था और ऐन समय पर थोडी गडबडी हो गई, परंतु इससे विचलित हुए बिना संजय खोडके अपनी पार्टी व नेतृत्व के प्रति ईमानदार बने रहे.
खास बात है कि, खोडके परिवार का राजनीति के साथ कोई वंश परंपरागत संबंध नहीं हैं और संजय खोडके ने राजनीतिक क्षेत्र सहित मंत्रालय में अपने दम पर अपना मजबूत स्थान बनाया है और आज स्थिति यह है कि, कई बडे-बडे मंत्रियों एवं धुरंधर नेताओं को अपने काम के लिए संजय खोडके का साथ लेना पडता है. खास बात यह भी है कि, संजय खोडके के पवार परिवार के सभी सदस्यों के साथ बडे घनिष्ठ संबंध रहे. ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि, आज दो गुटों में बंट चुके शरद पवार व अजित पवार के बीच संजय खोडके एक महत्वपूर्ण संवाद सेतू साबित हो सकते हैं. इसके साथ ही सबसे खास बात यह भी है कि, खोडके दंपति ने एक साथ विधानसभा व विधान परिषद की सदस्यता हासिल करते हुए एकतरह का इतिहास रच दिया है और अमरावती सहित संभाग एवं राज्य में यह पहला मौका है, जब पति-पत्नी एक ही समय पर एक साथ विधायक के तौर पर विधान मंडल के दोनों सदनों में बतौर सदस्य शामिल हैं.
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी द्वारा संजय खोडके को विधान परिषद हेतु चुने जाने के बाद अब उम्मीद जताई जा रही है कि, अमरावती के हिस्से में एक मंत्रिपद भी आएगा. क्योंकि महायुति सरकार में अमरावती जिले को एक भी मंत्रिपद नहीं दिया गया है और पालकमंत्री पद भी बाहरी नेता को दिया गया. इससे पहले सुलभा खोडके को मंत्रिपद मिलने के संकेत दिखाई दे रहे थे, वहीं अब संजय खोडके को राकांपा द्वारा अपने कोटे में रिक्त रहनेवाले एक मंत्रिपद के लिए चुने जाने की उम्मीद जताई जा रही है. यदि ऐसा होता है तो मंत्रालय में 35 वर्ष काम करने का अनुभव रहनेवाले संजय खोडके के कौशल्य एवं अनुभव का निश्चित तौर पर महायुति सरकार एवं अमरावती जिले को निश्चित तौर पर फायदा होगा और इसे भी संजय खोडके के कर्मकौशल्य का सम्मान ही माना जाएगा.
इसके साथ ही खोडके दंपति के विधानसभा व विधान परिषद में रहने को एकतरह से दुग्धशर्करा योग कहा जा सकता है और यह सोने पर सुहागा वाली स्थिति है. इसका आनेवाले समय में अमरावती को निश्चित तौर पर फायदा होनेवाला है, क्योंकि विधायक सुलभा खोडके वर्ष 2029 तक तथा विधायक संजय खोडके वर्ष 2030 तक राज्य विधान मंडल का हिस्सा रहेंगे और अमरावती शहर सहित जिले में डबल इंजिन वाली पॉवरफुल सरकार चलेगी. इसके सार्थक परिणाम निकट भविष्य में निश्चित तौर पर दिखाई देंगे, ऐसी सकारात्मक उम्मीद की जा सकती है.