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मशाल की लपटों से पंजा खींच लायी यशोमती

इस नेता ने पहली लडाई जीतीं

* अब परिणाम का इंतजार
अमरावती/ दि. 22- ठीक 25 वर्ष पश्चात अमरावती लोकसभा क्षेत्र में पंजा का उम्मीदवार घोषित हुआ है. 26 अप्रैल को जिस लोकसभा चुनाव की वोटिंग है. उसके लिए कांग्रेस ने मविआ में अपने हिस्से की अमरावती सीट से दर्यापुर के विधायक बलवंत वानखडे को प्रत्याशी घोषित किया है. पार्टी की बडी नेता और महाराष्ट्र में कांग्रेस का बडा चेहरा बनकर हाल के वर्षो में उभरी यशोमती ठाकुर के महत प्रयासों से संभव होने की जानकारी अमरावती मंडल को सूत्रों ने दी है. तिवसा की विधायक ने पहली लडाई में विजय प्राप्त कर अब वानखडे को दिल्ली भैजने की तैयारी शुरू कर दी है. उनके सामने शिवसेना के उबाठा गट को स्थानीय स्तर पर साथ लेकर बडी विजय साकार करने का चैलेंज है. कांग्रेसजन मान रहे हैं कि अमरावती में पंजा लाकर दिखाने के बाद यशोमती चुनावी जंग में भी सफल होगी.

* अब तक यह होता आया
समूचे विदर्भ की तरह अमरावती भी कांग्रेस का गढ था. यहां से उषाताई चौधरी दो बार, प्रतिभाताई पाटिल एक बार और उससे पहले कांग्रेस के प्रत्याशी देशमुख अनेक चुनाव में सहजता से विजयी रहे हैं. 1999 के बाद चुनावी समीकरण बदले. कांग्रेस से अलग होकर वरिष्ठ नेता शरद पवार ने अपनी राकांपा की स्थापना की तथापि वे विधानसभा और लोकसभा चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लडते रहे. इसी कडी में गठजोड में अमरावती की सीट राकांपा के कोटे में चली गई.

* राकांपा लडी भी, समर्थन भी किया
इसलिए 2004, 2009 के चुनाव में राकांपा ने पहले प्रत्याशी मोहन काले को मैदान में उतारा. लोकसभा सीटों का परिसीमन किया गया. विदर्भ के लोकसभा क्षेत्र 11 से घटकर 10 रह गये. इसी के साथ अमरावती सीट अनुसूचित जाति के व्यक्ति हेतु आरक्षित हो गई. जिससे अमरावती में समीकरण बदल गये. बदले समीकरणों में भी कांग्रेस- राकांपा आघाडी का गठजोड कायम रहा और 2009 में डॉ. राजेंद्र गवई को आघाडी में राकांपा कोटे से आघाडी समर्थन से अमरावती लोकसभा में उतारा गया. गवई को भी शिवसेना के आनंदराव अडसूल के हाथों पराजय मिली. 2014 का चुनाव निर्णायक था. इस बार अमरावती में फिर महिला प्रत्याशी ने नवनीत राणा के रूप में टक्कर दी. राणा राकांपा की प्रत्याशी बनी. मोदी लहर के बावजूद उन्होंने घडी निशानी पर लाखों वोट जुटा लिए थे. अडसूल सतत दूसरी बार विजयी हुए.

* नवनीत राणा ने रचा इतिहास
2019 के चुनाव में नवनीत राणा न केवल पुन: नये जोश के साथ चुनाव मैदान में उतरी. अपितु इस बार भी वे आघाडी का समर्थन ले आयी. राणा ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पाना चुनाव निशानी पर चुनाव लडा. अपने प्रतिद्बंदी शिवसेना के आनंद अडसूल को हराकर अपनी पराजय का बदला लिया. पहली बार दिल्ली में संसद की ओर कदम बढा दिए. अमरावती के संसदीय इतिहास में पहली दफा कोई निर्दलीय ने चुनाव में विजय प्राप्त की थी.

* यशोमती ठाकुर ने किया प्रण
नवनीत राणा के चुनाव में विजय प्राप्त करने के बाद कुछ समय से सत्तापक्ष के साथ चली गई. उनके इस तरह सत्तापक्ष के पाले में जाने से अमरावती में आघाडी के प्रत्याशी की विजय की खुशी कुछ ही समय की रही. फिर तिवसा विधानसभा क्षेत्र के मोझरी के सम्मेलन में सांसद नवनीत राणा ने एक बडा बयान दे दिया. उन्होंने कांग्रेस नेता यशोमती ठाकुर पर टीका टिप्पणी की. उनकी यह टिप्पणी यशोमती ठाकुर को आहत कर गई. ठाकुर ने आनन-फानन में सभी पार्टी नेताओं की मीटिंग लेकर अमरावती सीट से कांग्रेस का अधिकृत प्रत्याशी खडा करने का संकल्प लिया. उसी दिन से उन्होंने अमरावती की सीट से पंजा उम्मीदवार का निश्चय कर अभियान आरंभ कर दिया था.

* बबलू देशमुख की मंच से घोषणा
प्रदेश संगठन में भी बडे ओहदे पर रही यशोमती की मुहीम को उस समय बल मिला जब लगभग 2 वर्ष पूर्व कांग्रेस के जिलाध्यक्ष बबलू देशमुख ने सार्वजनिक रूप से पार्टी के मंच पर विधायक बलवंत वानखडे की ओर संकेत कर अमरावती सीट पर पार्टी का दावा पुख्ता होने का बडा ऐलान किया. उन्होंने कहा कि हमारे पास वानखडे के रूप में उम्मीदवार तैयार हैं. उनके इस बयान को जिले में कांग्रेस सहित अनेक दलों के नेताओं ने हास्यास्पद बताया था.

* नवनीत- उध्दव नोंकझोंक
इसी दौर में नवनीत राणा और तत्कालीन मुख्यमंत्री उध्दव ठाकरे के बीच शाब्दिक वार-पलटवार चल रहे थे. राजनीति की पक्की खिलाडी विधायक यशोमती ने इसी मौके को साधा. फूट चुकी शिवसेना के सुप्रीमो से वे मातोश्री जाकर मिली. यशोमती ठाकुर सार्वजनिक रूप से यह बात स्वीकार नहीं करती हैं. तथापि मंडल न्यूज को सूत्रों ने बताया कि यशोमती ने उध्दव ठाकरे को कन्वींस किया कि अमरावती सीट पर कांग्रेस अब आसानी से विजय पा सकती है. तथापि उस समय उध्दव ठाकरे पूरी तरह कन्वींस नहीं हुए थे. आग में घी डालने का काम उबाठा शिवसेना की जिले की गटबाजी ने किया. शिवसेना के जिला संपर्क प्रमुख, सांसद अरविंद सावंत, अनिल देसाई की कई बार अमरावती आए. उनके आने के पहले तथा जाने के बाद शिवसैनिक पुन: निष्क्रिय हो जाते. इससे उबाठा ने दो माह पहले पक्का मन बना लिया कि अमरावती सीट कांग्रेस को छोडी जाए.

* हो गया कन्फर्म, ठाकुर की शिकायत
उधर यशोमती ठाकुर ने दो माह पहले ही अमरावती से इस बार कांग्रेस के प्रत्याशी की बात कन्फर्म होने की चर्चा छेड दी थी. यशोमती आत्मविश्वास से बलवंत वानखडे को लेकर आगे बढ रही थी. उसी समय शहर के एक पूर्व कांग्रेस विधायक ने अपने वरिष्ठ नेताओं से कंप्लेंट की कि यशोमती कैसे किसी उम्मीदवार को स्वयं तय कर सकती है. चाणाक्ष यशोमती ने मामले की गंभीरता देख कुछ हफ्तों के लिए स्वयं खामोश हो गई. किंतु बलवंत वानखडे को लोकसभा क्षेत्र ेंमें सभी प्रमुख नेताओं से मेल मुलाकात के निर्देश दिए. अंदर ही अंदर वानखडे भी पूरे लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस और समविचारी पक्ष के नेताओं से भेंट कर दौरे कर रहे थे. नुक्कड सभाएं ले रहे थे. आंबेडकरी जनता से संवाद साधना शुरू कर लिया था.

* मेहनत रंग लायी, सीट कांगे्रस को
जब समय आ गया. यशोमती ठाकुर की मेहनत रंग लायी. यहां महाराष्ट्र में लगभग सभी दल एक-एक सीट के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं.वहां विदर्भ की दूसरी सबसे मुख्य लोकसभा सीट मविआ में यशोमती की बदौलत कांग्रेस हेतु खींच लायी. 4 दिनों पहले ही एआयसीसी से बबलू देशमुख और यशोमती ठाकुर को फोन आया तो बगैर समय गंवाए यशोमती ने जिला कांग्रेस समिति की बैठक आहूत कर शुरू कर दिया.

* प्रदेश के मीडिया में कई बार यशोमती का नाम एमपीसीसी अध्यक्ष और गांधी परिवार के निकट के रूप में चलता आया हैं. ऐसे दौर में यशोमती 24 वर्षो बाद शिवसेना के जबडे से अपनी चाणक्य नीति और कन्वींस करने की पॉवर के बल पर यह सीट छीन लायी. अब उनके सामने अगली चुनौती शिवसेना उबाठा को साथ लेकर चुनावी नैया पार करना हैं. राष्ट्रवादी शरद पवार का जिले में यूं तो कोई फास्ट अस्तित्व नहीं हैं. लेकिन यह जानकारी मिल रही है कि यशोमती ठाकुर लोकसभा की इस महाभारत में कोई कसर नहीं छोडेगी. शरद पवार का अमरावती दौरा करवायेगी. वानखडे की उम्मीदवारी की अधिकृत घोषणा से ढाई दशक बाद कांग्रेसी लीडर्स, पदाधिकारी जोश में आ गये हैं. महायुति अभी प्रत्याशी तय करने की जुगत में मुंबई दिल्ली के बीच हिचकोले खा रही है.

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