योग ही वास्तविक आनंद है : माताजी निर्मला देवी
अमरावती/दि.14-चित्त का सर्वव्यापी परमात्मा से योग ही वास्तविक आनंद है.
आज मानव की सारी प्रसन्नता का आधार मानव निर्मित संसाधन हो गए हैं तथा ईश्वर प्रदत्त संसाधन मात्र हमारी लिप्सा का माध्यम बन कर रह गए हैं. मोबाईल फोन की आभासी दुनिया युवाओं को ही नहीं वरन् प्रौढ़ व बुजुर्गों को भी अपने शिकंजे में कसती जा रही है. कलयुग कलपुर्जों का युग है और मानव जो इनका निर्माता है अनभिज्ञता में इनका गुलाम बनता जा रहा है. क्या वास्तव में सफलता का अर्थ सिर्फ करोड़ों का पैकेज या नई नई तकनीकों का विकास ही है. यदि यह सत्य होता तो दुनिया में असंतुष्टि, निराशा, असहनशीलता, व हिंसात्मक विचार नहीं होते. प्रकृति में असंतुलन नहीं होता और प्राकृतिक आपदाओं के सामने विकास घुटने नहीं टेकता. सहजयोग संस्थापिका श्री माताजी निर्मला देवी जी ने इस संदर्भ में कहा है कि, बड़े आश्चर्य की बात है कि मानव जितना कुछ मिथ्या है, उसे कितने जोर से पकड़ लेता है और सत्य को पकड़ने में कितना कतराता है, जितनी जल्दी मिथ्या हमारे अंदर से मिटता जाता है उतने ही जल्दी हम लोग चित्त को हल्का कर लेते हैं, सहजयोग में यही चित्त जो है, परमेश्वर से जाके भिड़ता है, यही चित्त उस सर्वव्यापी परमेश्वर के प्रकाश में जाके डूब जाता है, यही मानव का चित्त जो कि हम प्रकृति का एक रूप समझते हैं.
प्रकृति का ये जो फूल है वो परमात्मा के प्रेम में विसर्जित हो जाता है, लेकिन ये चित्त कितना बोझिल है, कितना अव्यवस्थित है कभी-कभी देखते ही बनता है, सहजयोगी की पहचान एक ही है कि आप कितने आनंद में उतरे हैं, आप कितने शान्ति में उतरे हैं, आप कितने प्रेम में उतरे हैं, मिथ्या पे रहने वाले लोग सहजयोग को नहीं प्राप्त कर सकते हैं. ‘जैसे राखहुं तैसे ही रहूँ’, सहजयोगी अगर इतना करलें कि जैसे भी रखो मंजूर है हमें, हरेक चीज में, हर परिस्थिति में आनंद आ सकता है.