अमरावती

‘झेनिथ’ कर रहा हृदयरोग के इलाज में बडी क्रांति

बायो-रिर्सोसेबल डिझॉल्विंग स्टेंट के साथ सफलापूर्वक की गई एंजिओप्लास्टी

अमरावती शहर में हृदयरोग के इलाज के लिए हमेशा से झेनिथ हॉस्पिटल अग्रणी रहा है. अब हाल ही में डॉ. नीरज राघानी और उनकी इंटरवेंशनल कार्डीओलॉजीस्ट टीम ने अमरावती शहर और पूरे विदर्भ में एक अभुतपूर्व सफलता हासील करते हुए एक मील का पत्थर स्थापित किया है. झेनिथ हॉस्पिटल में डॉ. नीरज राघानी और उनकी टीम ने हाल ही में लान्च किए गए डिसॉल्विंग स्टेंट (बायोरेसॉर्वेबल स्टेंट-स्कैफोल्ड एमईआरईएस-100) इस स्टेंट के साथ एक मरीज की सफल एंजिओप्लास्टी और स्टेंटींग (पीसीआई) की है. यह स्टेंट पूरी तरह से स्वदेशी है और इसे मेरिल लाईफ साईन्सेस ने लांच किया है. पूरी तरह से अपनेआप डिझॉल्व होनेवाली स्टेंट तकनीक का यह अमरावती में पहला और पूरे विदर्भ में केवल दुसरा प्रत्यारोपण था.
हृदयरोग (सीवीडी) भारत में मृत्युदर का प्रमुख कारण है. युवा भारतीय पुरूषों में कोरोनरी हृदयरोग की व्यापकता दर पश्चिमी देशों की तुलना में दोगुनी है. इसके अलावा इस बात के सबुत है कि, युरोपिय लोगोें को प्रभावित करने से कम से कम एक दशक पहले सी.वी.डी. भारतियों को प्रभावित करना शुरू कर देना है.
चिकित्सा तकनीकी को भी रोग की घटनाओं और रोगी की जरूरतों के बदलती मांग के अनुरूप विकसित करने की आवश्यकता है. वैसे तो ‘मे टैलिक ड्रग-एल्युटिंग स्टेंट’ आमतौर पर कोरोनरी हृदयरोग के लिए अपनाए जाते है. लेकिन ‘स्थायी धातु (मेटल) स्टेंट’ से साल दर साल प्रतिकूल घटनाओं का खतरा होता है और समय के साथ कई प्रतिकूल घटनाएं देखी भी जाती है. बायोरिसोर्सेबल या डिझॉल्वेबल स्टेंट तकनीक, विशेष रूप से कम आयु वर्ग में एक बेहतर विकल्प हो सकती है, क्योेंकि घाव ठीक होने के बाद बायोरिसोर्सेबल स्कैफोल्ड स्टेंट समय के साथ डिझॉल्व हो जाएगा.
विदर्भ के श्री सचिन (बदला हुआ नाम), उम्र 68 साल, इनको चलते-फिरते समय और दैनिक घरेलु काम करते हुए सीने में दर्द होने लगा था. जैसे-जैसे सीने में दर्द और बेचैनी बढती गई और लंबे समय तक दर्द जारी रहा, तो उन्होंने झेनिथ अस्पताल में संपर्क किया और डॉ. नीरज राघानी द्वारा उनका चेकअप किया गया. उन्हें ईसीजी सहित नियमित परीक्षणों से गुजरने की सलाह दी गई. ईसीजी रिपोर्ट और उनके सीने में चल रहे दर्द के आधार पर उनके कोरोनरी धमनी की एंजियोग्राफी (सीएजी) की गई. सीएजी के रिपोर्ट के अनुसार मरीज की कोरोनरी धमनियों में घावं (लिसीयोंस) और ब्लॉकेज थे, जिसे ठीक करने के लिए एंजिओप्लास्टी की जरूरत होती है.
मरीज की उम्र और उनकी धमनी में घाव/ब्लॉकेज के प्रकार को ध्यान में रखते हुए डॉ. नीरज राघानी और उनकी टीम ने हाल ही में लॉन्च किए गए स्वदेशी डिझॉल्विंग स्टेंट यानी बायोरिसोर्सेबल स्टेंट (बीआरएस) को लेगाने का फैसला किया.
डिझॉल्विंग स्टेेंट या बीआरएस, मेटैलिक स्टेंट के समान ही कार्य करते है, लेकिन वे नॉन-मेटैलिक, नॉन-परमनेंट मेश ट्युब होते है, जो इम्प्लांटेशन के बाद संभवत: दो से तीन साल में डिझॉल्व हो जाते है. बीआरएस स्टेेंट पीएलएलए नामक पॉलीमर से बना होता है, जो घुलनशिल/ डिझॉल्वेबल टांको-सुचर में इस्तेमाल होनेवाली सामग्री के समान होता है.
डॉ. नीरज राघानी ने जानकारी दी कि भारतीय युवा लोगों में हृदयरोग तेजी से बढ रहा है. झेनिट हॉस्पिटल में हम नियमित रूप से युवा रोगियोें का निदान कर रहे हैं. यहां तक की युवाओं में उनके 30 वें या 40 वें वर्ष में कोरोनरी धमनी रोग का पता चल रहा है. डॉ. राघानी के अनुसार यह अक्सर अस्वस्थ या तनावपूर्ण जीवनशैली के कारण होता है.
डॉ. राघानी ने कहा, ‘स्वदेशी रूप से बनाया गया डिझॉल्विंग स्टेंट या बायोरिसोर्सेबल स्टेंट (स्कैफोल्ड-मीरेस-100), एक तकनीकी उन्नती है. जिसे मेरील लाईफ सायन्सेस नामक भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनी द्वारा बनाया जाता है. धातु के स्टेंट (मेटॅलिक स्टेंट) के विपरीत यह डिझॉल्वेबल स्टेंट मरीज के शरीर में स्थायी रूप से नहीं रहता है. उपचार पुरा होने के बाद यह पुरी तरह से घुल जाता है और इस प्रकार धमनी को अपने प्राकृतिक स्थिति में वापस छोड जाता है. साथ ही ब्लड थिनर के लंबे समय तक उपयोग की कोई जरूरत नहीं होगी. यदि भविष्य में उसी धमनी में कोई प्रक्रिया करनी हो, तो बीआरएस स्टेंट उसमें कोई बाधा नहीं डालते और साथ ही साथ यह सिटी स्कैन जैसी गैर-इंन्वेसीव इमेजिंग की भी अनुमती देता है.
मीरेस-100 बीआरएस दुनिया का पहला थिनस्ट्रेट है और इसे भारत में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया यानी (डीजीसीआय) और यूरोप में सीई की मान्यता प्राप्त है. मीरेस-100 इस बीआरएस (बायोरिसोर्सेबल स्टेंट) का भारत और दुनियाभर के रिसर्च सेंटर्स पर अध्ययन किया गया है, जो इसकी सकारात्मक सुरक्षा और प्रभावकारिता की पुष्टि करता है.
सफल एंजिओप्लास्टी के बाद मरीज को छुट्टी दे दी जाती है और कार्डियोलॉजीस्ट की सलाह के आधार पर मरीज को अपनी जीवनशैली में बदलाव करने का उद्देश रखना होता है.
अमरावती में वालकट कंपाउंड स्थित झेनिथ हॉस्पिटल में उपलब्ध इस नई तकनीक से अमरावती और उसके आसपास के लोगों को अत्याधिक लाभ होगा.

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