प्रतिनिधि/ दि.२२
अमरावती– ग्रामपंचायतों का कार्यवधि खत्म होने के बाद सरकार ने हरएक गांव में प्रशासक की नियुक्ति करने का निर्णय लिया है. सरकार के इस निर्णय से प्रशासक बनने के इच्छूक नागरिकों के प्रस्ताव जिलापरिषद के सीईओ को जमा करने है. लेकिन नियुक्ति करने की गेंद पालकमंत्री के पाले में फेक दिए जाने से जिलापरिषद प्रशासन का सिरदर्द बढ गया है. यहां बता दे कि, राज्यसरकार के निर्णय के अनुसार गांव के आम नागरिकों की सिफारिशें पालकमंत्री करेगी इसके लिए ६ प्रावधान निर्धारित किए गए है. सभी निकषों का पालन करना अनिवार्य रहेगा. जिस निकषों के अनुसार जिस व्यक्ति की प्रशासक के रुप में नियुक्ति करनी है वह व्यक्ति संबंधित गांव का रहने वाला व मतदाता होना चाहिए. यहां विशेष उल्लेखनीय है कि कार्यवधि समाप्त होने के बाद प्रशासक की नियुक्ति करते समय पहले कार्यरत रहने वाले सरपंच अथवा ग्रामपंचायत सदस्यों की इस चयन पात्रता से अलग रखा गया है. लोकतंत्र के मूल्यों को पैरों तले लगाकर क्या सिद्ध करता है. यह प्रतिक्रियाएं अब व्यक्त की जा रही है.
नागरिकों का विरोध
पालकमंत्री की सिफारिश पर गांव का आम व्यक्ति प्रशासक के रुप में चुना जाएगा लेकिन यह पद्धति लोकतंत्र का गला घोटने वाली है. वहीं इससे अप्रत्यक्ष तौर पर दबाव लाने का नागरिकों ने आरोप लगाया है. नियुक्ति के आधिकार पालकमंत्री को रहने से कांग्रेस, राकांपा व शिवसेना का ही बोलबाला रहेगा.