‘अरण्यऋषि’ मारुती चित्तमपल्ली का निधन
मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प के उपसंचालक रह चुके थे

अमरावती /दि.19- अपना पूरा जीवन जंगलों के प्रति समर्पित कर देनेवाले मारुती चित्तमपल्ली का कल बुधवार को सोलापुर में निधन हो गया. महाराष्ट्र राज्य के वन विभाग में कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत रह चुके मारुती चित्तमपल्ली वर्ष 1990 में मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प के उपसंचालक के तौर पर सेवानिवृत्त हुए थे तथा अपनी सेवाकाल के दौरान आए निसर्ग अनुभव को उन्होंने शब्दशिल्प के साथ जोडते हुए चार दशकों से अधिक समय तक मराठी साहित्य विश्व को समृद्ध किया था. साथ ही ‘केशराचा पाऊस’ नामक अपनी किताब के जरिए उन्होंने मेलघाट की अनूठी अनुभूती को भी व्यक्त किया था. कुछ वर्ष पहले इसी किताब के अभिवाचन कार्यक्रम में मारुती चित्तमपल्ली ने अपने साक्षात्कार के दौरान बताया था कि, मुक्तागिरी की तरह मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प के कोकरु स्थित वन विभाग के विश्रामगृह में एक अलग तरह की वृक्षवल्ली है. जिससे होनेवाली केसरिया बारिश का अनुभव खुद उन्होंने लिया है. दिसंबर माह में पुर्णिमा वाली रात तडके 1 से 2 बजे के दौरान उन वृक्षों से केसरिया बारिश होती है. उस समय यदि पेड के निचे खडे किसी व्यक्ति ने सफेद रंग के साफसुथरे कपडे पहने है तो उन कपडों पर थोडी देर बार केसरिया रंग के छिटें दिखाई देते है. मारुती चित्तमपल्ली के मुताबिक उन्होंने खुद इस बात का अनुभव किया है. जिसके लिए वे जंगल में सफेद रंग की शॉल ओढकर गए थे और वापिस आते समय उनकी शॉल पूरी तरह से केसरिया हो गई थी.
इसके साथ ही अपने इस किताब में मारुती चित्तमपल्ली ने एक बार मेलघाट के पहाडी व जंगली रास्तों पर खुद के भटक जाने की बात का भी उल्लेख किया है. जिसमें उन्होंने बताया कि, जंगल के पहाडी व खाई वाले रास्तों में भटक जाने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी थी और वे पूरी रात अंधेरे में पैदल चलते रहे. जिसके बाद एक जगह पर उन्हें एक झोपडी और थोडा प्रकाश दिखाई दिया. जहां पर एक आदिवासी आग पर कुछ भूंज रहा रहा था. जिसने उन्हें पहचान लिया था. इसके बाद उन्होंने उस आदिवासी के पास से कुछ भूने हुए कंद लेकर खाए थे और उसी की झोपडी में आराम भी किया था.





