महाराष्ट्र में अब दो नहीं, तीन मोर्चे?
सत्ता परिवर्तन के केंद्र बनेंगे मुंबई और पुणे!

मुंबई/दि.26- महाराष्ट्र में आगामी महानगरपालिका और जिला परिषद चुनावों से पहले राजनीति ने नया मोड़ ले लिया है. अब मुकाबला सिर्फ महायुति और महाविकास आघाड़ी तक सीमित नहीं दिख रहा, बल्कि तीसरे मोर्चे के उभार की चर्चाएं तेज हो गई हैं. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, इस नए प्रयोग के केंद्र मुंबई और पुणे बन सकते हैं, जहां से राज्य की राजनीति को नई दिशा मिल सकती है.
बता दें कि, राज्य में 29 महानगरपालिकाओं के चुनाव का बिगुल बज चुका है. ऐसे में सत्तासमीकरण साधने के लिए अलग-अलग राजनीतिक प्रयोग सामने आ रहे हैं. मुंबई के बाद अब पुणे भी राजनीतिक प्रयोगशाला बनता दिख रहा है. मुंबई में उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे के एक साथ आने से कार्यकर्ताओं और नेताओं में जबरदस्त उत्साह है. इस एकता का राजनीतिक अंडरकरंट आने वाले चुनावों में साफ नजर आने की संभावना है. पुणे में जो प्रयोग आकार ले रहा है, वह सिर्फ दोनों राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार और अजित पवार गुट) के एक होने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और मनसे के एक साथ आने की संभावनाएं भी शामिल हैं.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि इन घटनाक्रमों को नजरअंदाज करना किसी भी दल के लिए जोखिम भरा हो सकता है. महायुति और महाविकास आघाड़ी के घटक दलों के बीच अंदरूनी मतभेद अब खुलकर सामने आ रहे हैं. एक ओर भाजपा ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ गठबंधन मजबूत रखा है, वहीं दूसरी ओर अजित पवार की राष्ट्रवादी खुद को अलग-थलग महसूस कर रही है. ऐसे में अजित पवार द्वारा शरद पवार के साथ संवाद बढ़ाने को राजनीतिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है.
राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि जल्द ही नई आघाड़ी की ‘तुतारी’ बज सकती है. मुंबई में उद्धव-राज ठाकरे की युति पर लगभग मुहर लग चुकी है. भले ही कांग्रेस ने मुंबई में अलग रुख अपनाया हो, लेकिन पुणे में कांग्रेस का दोनों ठाकरे भाइयों के साथ जाने की प्रबल संभावना जताई जा रही है. यदि यह समीकरण साकार होता है, तो मुंबई, ठाणे, पुणे, नाशिक, छत्रपति संभाजीनगर और नागपुर में यह तीसरा मोर्चा कई दलों के गणित बिगाड़ सकता है. पुणे में भाजपा और शिंदे सेना के बीच सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है. दूसरी ओर, दोनों राष्ट्रवादी गुटों के बीच भी समझौते की अटकलें हैं. इसी बीच, पुणे और पिंपरी-चिंचवड़ महानगरपालिका में कांग्रेस के साथ ठाकरे ब्रांड का उभरता गठबंधन एक नया और अनोखा राजनीतिक समीकरण बनता दिख रहा है. इसके नतीजे आने वाले चुनावों में साफ दिखाई देंगे.
हालांकि कांग्रेस ने औपचारिक तौर पर मनसे और उद्धव सेना के साथ गठबंधन से इनकार किया है, लेकिन सीट बंटवारे में दोनों दलों के प्रति पूरक भूमिका निभाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा रहा. विश्लेषकों का मानना है कि यह प्रयोग सिर्फ स्थानीय निकाय चुनावों तक सीमित न रहकर भविष्य की राज्य राजनीति की भूमिका भी तय कर सकता है.





