गुरूश्री मोहन राठी को विनम्र श्रध्दांजलि
१६ जुलाई की सुबह ६.२० बजे के करीब सेकंद में मोबाइल की घंटी बजी. देखने पर ‘मोहन राठी सरÓ लिखा हुआ नाम दिखाई दिया. गुरू श्री मोहन राठी अमरावती के शुध्दशास्त्रीय नृत्य के संस्कृति की सुरक्षा करनेवाले चयन नामों में से एक सर्वश्रुत व्यक्तिमत्व सर की शैली भरतनाट्यम व मेरी शैली ओडिसी. हमारे समय में भी लगभग आधी पीढी का अतर जिसके कारण ज्यादा से ज्यादा संवाद नहीं था. कभी कभी किसी कार्यक्रम निमित्त मुलाकात होती थी. कि मेरे प्रत्येक कार्यक्रम के आयोजन में प्रशंसनीय मेरा फोन रहा. ऐसे में इतने सुबह अचानक फोन आने पर मुझे आश्चर्य ही हुआ. परंतु गलती से लग गया होगा यह सोचकर फोन रख दिया. परंतु कुछ ही देर बाद सर की लड़की गौरी का फोन आया और सर के निधन का दु:खद समाचार मिला.
किसी भी शहर में प्रसिध्दी प्राप्त करने में औद्योगिक आदि सांस्कृतिक की सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण होती है. क्योंकि शहर के कुल सौंदर्य में व सौंदर्य दृष्टि में जोर दिया जाता है.
अपने महाराष्ट्र को स्वयं की ऐसी शास्त्रीय नृत्य शैली नहीं है. किंतु स्व.गुरू श्री नरसिंगजी बोंडे व उनके भाई, गुरू दत्तराज जी व गुरू श्री रामेशजी बोंडे ने कथक नृत्य का विगत समय के मेरे गुरू, डॉक्टर मोहन बोंडे ने ओडिसी नृत्य की अंबानगरी में ही नहीं विदर्भ में शुभारंभ करके उनका कल्पवृक्ष किया.
उसी प्रकार दक्षिणात्य भरतनाटय़म शैली के पौधे अंबानगरी में रोपित होनेवाले व समर्पण भावना से समाज में उसका प्रचार प्रसार करनेवाले शहर के एकमेव भरतनाट्यम गुरू मोहन राठी थे.
जग प्रसिध्द गुरू आचार्य पार्वती कुमार के तामिनाडू स्थित तंजाऊर नृत्य शाला में भरतनाट्यम के शास्त्रशुध्द शिक्षा पूरी करके मोहन राठी सर ने १० अक्तूबर २००२ को अमरावती में अपने निवासस्थान पर नृत्य शैली की विधिवत शाला उभारी व उस अंतर्गत कितनी ही लड़कियां और महिलाओं को नृत्य कला की शिक्षा दी. उनके माध्यम से कितनी ही लड़कियों ने नृत्य कला का समारोह किया. उन्होंने नृत्य कला सिखाते समय कभी भी आनाकानी नहीं की.वे अदिती शुक्ला की सायंकाल ७.३० बजे तक प्रॅक्टीस लेते रहे. और उसके बाद ९ बजे सीने में दर्द उठने के बाद देर रात १२.५० बजे उनका निधन हो गया.
अंतिम दर्शन के लिए उनके छात्राओं की भीड़ इकट्ठा हो गई. पढाते समय वे एक ना एक यादे बताते थे. शीतल मेटकर के नाम का उल्लेख् कर वे हमेशा उदाहरण देते थे. ऐसा जब अपूर्वा ठाकुर , अदिती शुक्ला ने बताया. तब मुझे बहुत रोना आया. सर के होने पर हम एक बार भी उनसे मिले नहीं
सर हमको अकेला छोडकर चले गये. हमारे डांस का क्या होगा यह सवाल उनकी छात्राओं के मन में उठ रहा है.. यह सवाल जैसे ही मन में उठता है वैसे ही उनकी छात्राओं और पालको के आंखों में अश्रूधारा बहने लगी. अपूर्वा व अदिती , कु. राठी ,डॉ.अनुजा चरपे, डॉ.कांचन त्रिचल ,राधा गुडधे, सोनिया पंाडे, पूजा टिंगाने ऐसे अनेक छात्राओं ने अपने गुरू की शिक्षा आगे कायम रखने का संकल्प लिया. उनका मार्गदर्शन खो गया है.
उसमें से सबसे निपुण छात्रा ने आगे आकर तमिलनाडू में नृत्य शाला के संपर्क में रहकर अपने गुरू की परंपरा आगे बढायंगे ऐसा संकल्प कर , मंच उपलब्ध करने के लिए मै कटिबध्द रहूंगी, ऐसा कहा.
अमरावती कला व संस्कृति परिवार तथा उत्कल नृत्य निकेतन परिवार की ओर से भावपूर्ण श्रध्दांजलि.
एड. शीतल यदुराज मेटकर ,
उत्कल नृत्य निकेतन, अमरावती