सर्वज्ञ श्री चक्रधर स्वामी अवतार, जन्मशताब्दी वर्ष निमित्त
नारी-पुरूष समानता एवं अस्पृश्यता निवारण का संदेश दिया स्वामी चक्रधर ने
१३ वे शतक में ११४२ में गुजरात की पावनभूमि में एक अलौकिक व्यक्तिमत्व अवतरित हए. उस व्यक्तिमत्व का नाम श्री चक्रधरस्वामी है.श्री चक्रधर स्वामी ने गुजरातमें अवतार लिया लेकिन उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन महाराष्ट्र की पावन भूमि में बिताया. महाराष्ट्र में भ्रमण करते हुए उन्होंने दीन,दलित,दुबले,अनाथ,भयग्रस्तो को एक ही परमेश्वर की भक्ति करने का उपदेश दिया. अंधश्रध्दा के श्रृंखला में गुथा हुआ तत्कालीन समाज स्पृशास्पृश्य जातिभेद,वर्णभेद, विटाल आदि बातों की ओर अग्रसर हुआ था. उच्चवर्णीय समाज की अपेक्षा अस्पृश्य समाज को बुरा भला कहा था. समाज कर्मकांड,दारिद्रय अंधश्रध्दा, अज्ञान इस श्रृंखला में अटका था. सभी धर्मग्रंथ संस्कृत भाषा में होने के कारण सभी सामान्य को धार्मिक अभ्यास से वंचित रखा था. स्त्रीयों को वेद का अध्ययन व मंदिर मेें जाने की इजाजत नहीं थी.
ऐसे समय में महाराष्ट्र में एक अलौकिक व्यक्तिमत्व ने प्रवेश किया. उनका नाम श्री चक्रधर था. १३वें शतक में श्री चक्रधर नाम के व्यक्ति ने सामाजिक क्रांति लायी. सर्वप्रथम स्वामी ने स्त्रीयों को धामिक ग्रंथों पर से अंकुश हटाने का प्रयास किया. स्त्रीयों को वेद अध्ययन व पूजा पाठ करने का अधिकार है. यह भी उन्होंने बताया.
इस संदर्भ में कुछ उदाहरण ऐसे है. स्वामी जी ने कहा कि पुरूषों की आत्मा अलग होती है क्या स्त्रीयोंं की आत्मा अलग होती है क्या? पुरूषों का भगवान अलग है क्या और स्त्रीयों का भगवान अलग है क्या? इस प्रकार स्त्रीयों को भी धर्माधिकार है जो पुरूषों को है,ऐसा स्वामी ने बताया. स्वामीजी हमेशा कहते है कि स्त्रीयों को भी मोक्ष का अधिकार है.अर्थात ज्ञान का अधिकार है. ज्ञान के संबंध में स्वामी ने कहा कि परमेश्वर की सेवा करके ही भवसागर पार किया जाता है, ऐसा नहीं है. ईश्वर अथवा ज्ञानियों के सानिध्य में रहकर भी परमेश्वर की जो ब्रम्हविद्या शास्त्र है उनका ज्ञान जानकर जो आचरण करेगा उसे सुख, श्रेय, ज्ञान यह तीनों ही प्राप्त होते है. ऐसा स्वामीजी कहते है. स्त्रीयों को धर्माधकार है. धर्म की इच्छा महिलाओं की भी रहती हैे. कारण की उनकी भी आत्मा पुरूष के समान ही रहती है. स्त्री-पुरूष दोनों की रक्षा करनेवाला परमेश्वर एक ही है. इसलिए दोनों को ही मोक्ष का अधिकार है. स्त्रीयों के संबंध में किसी भी प्रकार की शंका न करे. भेद-भाव भी न करे.स्त्रीयों को ऐसा वेशधारण करना चाहिए जो लज्जास्वरूप हो.
जातीय अराजकता मिटाने का सर्वप्रथम प्रयास स्वामी ने किया. स्वामी ने दिन-दलित स्पृश्य-अस्पृश्य, स्त्री-पुरूष समाज को निकट से निहारा है. वर्ण भेद जाति भेद, जाति भेद ऐसी नाना प्रकार की बातों से ग्रसित तथा अंधेरे में रहकर गलत कार्य करनेवाले समाज को उचित दिशा दी. लोगों को ज्ञान मिले तथा उनका उध्दार हो इसलिए स्वामीजी ने पीडि़तों की सेवा की. समाज प्रबोधन किया. स्पृश्य-अस्पृश्य, उच्च-नीच, स्त्री-पुरूष ऐसा भेदभाव न कर उनके जीवन से, भावनाओं से, सुख-दु:ख से आचार विचारो से एकरूप हुए. स्वयं अस्पृश्यके घर भोजन किया. आठ सौ वर्ष पूर्व जातिभेद मिटाकर समाज को अच्छे विचारों की सीख दी.
यादव कालीन समाज को देखकर उस समय संस्कृत भाषा का प्रभुत्व था.ऐसे समय में स्वामी ने अपने शिष्यों को, अनुयायियों को सभी सामान्य को समझे ऐसी मराठी भाषा में अपने तत्वज्ञान का निरूपण किया. स्वामी ने जैसे मराठी का निरूपण किया वैसे ही उनके शिष्य परिवार ने भी मराठी को ही बरकरार रखा.यादवकालीन समाज ने जीवन में मराठी भाषा को राजभाषा करने के लिए स्वामी के अनुयायियों ने बहुत सहयोग दिया. मराठी का सबसे पहला ग्रंथ म्हाई भट्ट लिखित लीलाचरित्र है. उसके बाद अनेक ग्रंथ संपदा महानुभाव साहित्य में निर्माण हुई है.यह सभी मराठी में ही हुई है. एक बार केसीराज व्यवसायियों ने नागदेवाचार्य से कहा कि यह सभी ग्रंथ मैं संस्कृत में ही बनाऊ क्या? उस पर आचार्य नागदेव ने कहा कि, नहीं केशव देया, ऐसा कहकर नागदेवचार्या ने अभिमान व्यक्त कर आग्रहपूर्वक मराठी में ही ग्रंथ रचना करनी पड़ी. जिसके कारण मराठी भाषा उसकी प्रथम अवस्था में ही समृध्द हुई.
यह सभी करते हुए स्वामी सभी महाराष्ट्र भर में भ्रमण करते थे. स्वामी ने अपना पूरा जीवन महाराष्ट्र में ही बिताया,ऐसा आदेश उन्होंने अपने शिष्य को दिया. उनके अनयायी महाराष्ट्र में रहे, महाराष्ट्र भूमि ही धर्म आचरण के लिए योग्य है. इसलिए महाराष्ट्र में ही रहे, ऐसा संदेश स्वामी ने दिया. जैसा सामान्य लोग पर स्वामी ने प्रेम किया वैसी ही प्राणियों पर भी दया की.बाघिन के बच्चे को खिलाया, बाघिन को शांत किया. वडनेर भुजंग के साँप के बैर मिटाने का कार्य स्वामी ने किया. पारधी से लेकर रास्ते की रक्षा कर पारधी को अंहिसा की सीख दी.इस पर से स्वामी ने दुनिया को अहिंसा संदेश दिया.
मनीष देशमुख
अमरावती