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किसान आंदोलन के ६ माह

सरकार द्वारा मंजूर किए गये तीन कृषि विधेयको को वापस लेने की मांग को लेकर किसानों द्वारा विगत ६ माह से आंदोलन जारी है्. किसानों की इस एकजुटता में सरकार को भी चिंता मेंं डाल दिया है. विशेषकर लगातार ६ माह तक आंदोलन जारी रहना दो बातें स्पष्ट करता है. इसमें किसानों को तीनों विधेयक मंजूर न होने की हठधर्मिता तथा दूसरी सरकार की ओर से किसान एवं जनसामान्य से जुडे इस महत्वपूर्ण मसले के प्रति उदासीनता का समावेश है. अब यह चिंतन का विषय है कि किसानों की हठधर्मिता उचित है या फिर सरकार का इस आंदोलन के प्रति असंवेदनशील रवैया उचित है. चूकि किसान अब तक अनेक बार शोषण का शिकार होता रहा है. कभी आसमानी संकट तो कभी सरकारी नीतियों के कारण से भारी तबाही का सामना किसानों को करना पडा है. वर्तमान में जो तीन कृषि बिल सरकार ने मंजूर किए है. इन बिलों को लेकर किसानों को आपत्ति है. इस बारे में सरकार के साथ किसानों की अनेक बार वार्ताए हई. लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया है. आंदोलन निरंतर रूप से जारी है. इस हालत मेें किसानों की बुआई आदि का काम आरंभ होनेवाला है. लेकिन किसानों की मांग को किसी ने स्वीकार नहीं किया. परिणामस्वरूप भविष्य में आंदोलन और भी तीव्र हो सकता है. इसके चलते जरूरी है कि सरकार को चाहिए कि वह कोई बीच का मार्ग निकाले. देश की अधिकांश अर्थव्यवस्था चरमरा गई है. इस वर्ष बुआई का सीजन आरंभ होनेवाला है. साथ ही किसानों ने खेतों की मशक्कत की है. इन सब को देखते हुए कृषि कार्य अभी से ही रूके हुए है. जरूरी है कि किसानों की मांगों पर ध्यान रखते हुए उसे पूरा करने की दिशा में कार्य करना चाहिए. एक बात तो स्पष्ट है कि किसानों की ओर से आंदोलन तभी समाप्त होगा. अब तक किसानों ने हर सरकारी बयानों का खंडन किया है. अब किसानों ने ठोस भूमिका अपना ली है तथा आंदोलन का सिलसिला अभी भी जारी है.
किसानों की नीति यदि अडियल होती तो कहीं न कहीं टकराव की नौबत आती. लेकिन यह आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से जारी है. भले ही एक दो बार किसानों द्वारा किए गये प्रदर्शन मेें कुछ हिंसक वारदाते हुई है. लेकिन किसानों ने संयम बरता है.
किसान आंदोलन को लेकर सरकार की ओर से रोजाना आरोप प्रत्यारोप लगाए जाते रहे है. किसानों को विदेश से पैसा आना, खालिस्तान से संपर्क में होना जैसे आरोप लगते रहे है. आरंभिक दौर मेंं लगे इन आरोपों की सरकार की ओर से गहन जांच की जाती तो सभी बातें स्पष्ट हो जाती. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं किया गया. केवल आंदोलन को बदनाम करने के हथकंडे अपनाए गये. पहले ही आंदोलन केवल उत्तर भारत में शुरू रहने की बात कही जा रही थी. लेकिन २६ मई को आंदोलन के ६ माह पूरा होने व केन्द्र सरकार के सात साल पूरा होने के उपलक्ष्य में बुधवार को विगत दिवस मनाया गया. देश के विभिन्न राज्यों से किसानों ने समर्थन दिया. जिसे मुख्य रूप से महाराष्ट्र के नंदुरबार, नांदेड, मुंबई, अमरावती, नागपुर, सांगली, परभणी, ठाणे आदि अनेक जिले में विरोध दिवस को समर्थन दिया गया. स्पष्ट है अब किसान किसी शोषण का शिकार होने के मुड में नहीं है. यही कारण है कि किसान अब आक्रमक भूमिका में आ गये है तथा उनका संकल्प जब तक मांगे पूर्ण नहीं होती तब तक उनका आंदोलन जारी रहेगा. इसलिए अब सरकार को किसानों की समस्याओं को समझना होगा. किसान जो अपने श्रम से भूमि को उपजाऊ बनाता है. हर किस्म का संघर्ष वह झेलता है. तब कहीं समूचे देश को अनाज की आपूर्ति हो पाती है. ऐसे में किसानों की सहायता के लिए आगे आना यह सरकार का दायित्व है. इसलिए सरकार को चाहिए कि वह किसानों की समस्या को गंभीरतापूर्वक ले तथा उसके निराकरण की दिशा में कदम उठाए.
आज किसानों की हालत अत्यंत दयनीय है. बावजूद इसके वे अपने अधिकारों के लिए लगातार सक्रिय है. उनकी यह सक्रियता विगत ६ माह से देशवासी अनुभव कर रहे है.खासकर उनका मानना है कि किसानों के साथ अब न्याय की बात होनी चाहिए.
कुल मिलाकर किसानों की दशा अत्यंत दयनीय है. फिर भी अधिकारों के लिए किसानों का संघर्ष जारी है. किसान देश का एक महत्वपूर्ण घटक है. उसका आंदोलन यदि इतने लंबे समय तक खींचता है तो इसके लिए सरकार पर छींटे उड सकते है. जरूरी है कि सरकार किसानों की भावनाओं को समझे व इस आंदोलन को समाप्त करने की दिशा में कदम उठाए. किसानों को भी चाहिए कि वे सरकार का भी सहयोग करे. कुछ हद तक मांगों के विषय में लचीलापन भी जरूरी है. जिससे इस आंदोलन के समाप्ति का मार्ग सामने आ सके. बहरहाल किसानों का यह आंदोलन जारी है व इतने लंबे समय तक चलनेवाला यह आंदोलन महत्वपूर्ण है. इसमें जहां सरकार को किसानों के विषय मेंं चिंतन करना है वही पर किसानों को भी योग्य सहयोग देना है. तभी यह आंदोलन समाप्त हो पायेगा.

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