उम्र का एक अध्याय खत्म हुआ…
सन 1993 के प्रबुद्ध मंच दीपावली विशेषांक में भरभरुन मिळते यह कविता दी गई थी. उस समय प्रबुध्द मंच के संपादक मेरे पिता उमेश मेश्राम थे. हाल ही में पिता का निधन हो गया. महत्वपूर्ण काम निमित्त पिता के पुराने कागज पत्र देखते समय उन्होंने संभालकर रखी हुई मौलिक वस्तु,ग्रंथ संग्रह,राजनीतिक,सामाजिक,कला क्षेत्र के प्रतिष्ठित व्यक्ति के हाथों ले लिखे हुए पत्र,कृष्णधवल छायाचित्र, पिता ने सामाजिक क्षेत्र में किए गए कार्य, उनके जीवन में आयी स्थिरता के बाद ये सभी यादें मुझे मिली. अब यही यादें सिर्फ स्मृति रंजन का काम करते रहेगी.
सन 2007 के दरमियान मैं निजी कंपनी में नौकरी पर थी. लेकिन वहां के काम का समाधान न मिलने के कारण मेरी यह अवस्था देखकर पिता ने मुझे पत्रकारिता क्षेत्र में जाने के लिए कहा. पत्रकारिता का थोड़ा भी ज्ञान नहीं रहने वाली मैंने पहली बार शिकावू पत्रकार के रुप में दैनिक महानायक में नौकरी की. वहां के पत्रकारिता का अनुभव लेकर आकाशवाहिनी, वृत्त वाहिनी, अखबार एवं आगे यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र मुक्त विद्यापीठ के मुंबई विभागीय केंद्र के जनसंपर्क विभाग में काम किया. मेरी चिंता से व्याकुल हुए पिता ने मुझे समाधान का मार्ग दिखाया और इसलिए ही मैं आज शासकीय प्रसिद्धी विभाग में स्थिर हुई हूं.
हमारे पिता की जन्मभूमि व कर्मभूमि वर्धा… उनके पिता शेषराव, तारानाथ एवं राधेशाम के मार्गदर्शन से उन्होंने और शासकीय सेवा से अधिकारी के रुप में निवृत्त हुए पिता के छोटे भाई रमेश मेश्राम ने भी पत्रकारिता का क्षेत्र चुना था. पत्रकारिता क्षेत्र में सक्रिय होने से पूर्व मेरे पिता वर्धा के सामाजिक क्षेत्र में सहभागी रहते थे. 1970-80 के दशक में वे वर्धा में रहते समय विविध सामाजिक संस्थाओं में कार्यरत थे. पिता के कार्यों के कारण उनके नाम के आगे राष्ट्रभाषा रत्न, विशेष कार्यकारी दंडाधिकारी, पत्रकार ऐसी उपाधि लगाई जाती थी. बावजूद इसके महाराष्ट्र साहित्य परिषद पुणे के वे सदस्य थे. महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी (आय) के क्रियाशील सदस्य, अप्रैल 1971 वर्धा जिला पिछड़ावर्गीय कार्यकर्ता सम्मेलन के वे संयोजक व मंत्री थे. विदर्भ प्रदेश पिछड़ावर्गीय अन्याय निवारण समिति (वर्धा शाखा) के अध्यक्ष, नगर परिषद वर्धा वेईकल सफाई कामगार संगठना के अध्यक्ष, पिछड़ावर्गीय सेल महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी (आय) के जिला शाखा वर्धा के महासचिव, वार्ड सुधार संघर्ष समिति पुलफैल वर्धा के महासचिव व संगठक, रोटरेक्ट क्लब के कम्युनिटी डायरेक्टर ऐसे विविध पदों पर उन्होंने सेवा दी. आगे 80 वें दशक में निजी कंपनी में भी लेखनिक के रुप में काम किया. लेकिन पिता को समाजसेवा में रुचि होने से व चुप नहीं बैठते थे. जिसके चलते वे फिर से समाजसेवा और पत्रकारिता करने लगे. सामाजिक कार्यों में मिली सफलता के बाद उन्होंने नगर पालिका के प्रतिनिधि पद के लिए चुनाव लड़ा था. पानी की किल्लत को रोकने के लिए शासन से मांग कर नल कनेक्शन के माध्यम से पीने के पानी की समस्या हल की.
पुलफैल,तारफैल,चित्तोडगड व समीप के नागरिकों की सुरक्षा के लिए मांग कर वर्धा में रेल्वे लेवल क्रॉसिंग गेट एक वर्ष में शुरु करने का श्रेय उनका व उनके सहयोगियों का है. तत्कालीन रेल्वे मंत्री ने इसका भूमिपूजन किया था. गत 70 वर्षों का उस क्षेत्र का वह पहला रेल्वे क्रॉसिंग गेट है. आज भी उस रास्ते पर से जाते समय उस रेल्वे गेट की तरफ ध्यान जाता है. पिता की पत्रकारिता के समय भ्रमणध्वनि दुर्मिल था. शाहिर विठ्ठल उमप, कवि केशव मेश्राम, तत्कालीन अन्न व नागरी आपूर्ति मंत्री दत्ता मेघे ने पिता के पत्र को प्रत्युत्तर के रुप में भेजे हुए आभार पत्र मिले. 1972 में उनके बंधु राधेशाम मेश्राम यह सहकारी तत्वों पर निर्मित स्वयं की संस्था मार्फत तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को टेबल पॅड सप्रेम भेंट देते समय का फोटो उन्होंने संभालकर रखा था. उनके द्वारा लिखी गई हिरे के टुकड़े यह कादंबरी 1969 और दूसरी आवृत्ति 1971 मेंं प्रकाशित हुई थी. 90 के दशक में मुंबई में आने के पश्चात पिता ने नवशक्ति, शाम ए बंबई दैनिक में व आकाशवाणी में काम किया. सन 1993 से प्रबुद्ध मंच यह दिवाली अंक उन्होंने अनेक वर्ष प्रकाशित किया. पश्चात भारतीय जनमत नामक साप्ताहिक शुरु किया. आर्थिक चढ़ाव- उतार के कारण यह सब बंद हो गया.
पिता कड़क शिस्त के व गुस्सेल स्वभाव के थे. डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के विचारों वाले पिता हम तीनों और चचेरे भाई बहनों की पढ़ाई के लिए हमेशा आग्रही रहते थे. बेटी के जन्म से लेकर मृत्यु तक उस पर निस्वार्थ प्रेम करने वाला पहला पुरुष यानि पिता होता है. पेम और अपनत्व काक फोन कॉल अब हमें नहीं आएगा. चिंता से पूछताछ करने वाले शब्द भी अब सुनाई नहीं देंगे. उम्रभर सहचरिनी, बच्चे, भतीजे, साडू एवं शाम के समय उनकी बहनों की व छोटे भाई का साथ पिता को मिला. आखरी समय में छोटा बेडा अमोल ने उनके साथ की चर्चा से वे समाधानी होने की बात भाई ने हमें बताई. पिता के साथ हमने जो क्षण बिताये, उनकी इच्छा पूर्ण करने का प्रयास किया, लेकिन अपूर्ण इच्छा का दुख हमें मात्र हमेशा कायम रहेगा.
– श्रद्धा उमेश मेश्राम,
मो. नं. 8452958855