एक अस्पताल ऐसा भी
आज संकट (कोविड) की इस घडी में सभी ओर अनिश्चितता का माहौल है. कोविड की इस महामारी को भी एक अवसर समझकर मानव सेवा ही ईश्वर सेवा इस उद्देश्य से ओतप्रोत, प्रसिध्दी/प्रचार से दूर, न लाभ न हानि तत्व रख, नि:स्वार्थ भाव से कार्य किये जा रहा, ऐसा भी कोई अस्पताल है. क्या डॉक्टर्स, क्या सिस्टर्स, क्या ही कर्मचारी सब दिन-रात दौड रहे हैं. दिन में ५-५ बार थर्मामीटर, पल्स ऑक्सीमीटर लगा रहे. बी.पी. चेक कर रहे हैं. मन में भावना क्या तो सिर्फ और सिर्फ सेवा. ऐसा यह अस्पताल हम अमरावती वासियों का सुपरिचित अपने नाम को चरितार्थ करता हुआ (दया का सागर) दयासागर हॉस्पिटल है.
मैं सुभाष चतुर्भुज राठी १ सितंबर को कोविड पॉजिटीव पाया गया. मैं तुरंत दयासागर हॉस्पिटल में भर्ती हुआ. वहां जाते ही मुझे लगा कि मैं सही जगह पर आया हूं. डॉ. खान स्वयं मुझे गेट से अंदर ले गये और रुम में ले जाकर तुरंत आवश्यक उपचार शुरु कर दिये. सलाइन, इंजेक्शन लगाकर मुझे आश्वत किया और निश्चिंत रहने को कहा. डॉ. रुचीता मॅडम ने भी बार-बार व्हिजीट देकर पूरा ध्यान दिया. डॉ. रविभूषण साहब ने भी रोज व्हिजीट दी व आवश्यक टेस्ट व एक्स-रे करवाते रहे व पूरी तरह ठीक हो जाओगे कहकर ढांढस बंधाया. सारी सिस्टर्स तो सभी मरीजों की तो ऐसे देखभाल करती है जैसे कोई उनके अपने घर के हो. सुबह के नित्यकर्म से लेकर रात सोने तक सारी बातें बेड पर करवाना वह भी बिना किसी हिचक के, ऐसा सेवाभाव तो यहीं देखने मिला. हर दिन का प्रोग्रेस रिपोर्ट लेकर आगे के उपचार बाबत दिशानिर्देश सिस्टर्स को देते हैं. दयासागर की कार्यपध्दति फिर वह ट्रीटमेंट, नर्सिंग, अटेंन्डंस, क्लिqनग किसी भी प्रकार की हो वाकई काबिले तारीफ है. कोरोना इस भयंकर महामारी से जुझने वाली इस संस्था के डॉक्टर्स, सिस्टर्स, स्टाफ का मैं हृदय से आभारी हूं और इन सबके सेवाभाव को नमन करता हूं.
– सुभाष चतुर्भुज राठी