अमरावतीलेख

शून्य से विश्व निर्माण करनवाले, प्रेरणादायी आदर्श व्यक्तित्व अनिलकुमार अग्रवाल

पूरे विदर्भ प्रांत में अनिलकुमारजी अग्रवाल का परिचय एक सफल एवम् यशस्वी उद्यमी के रूप में विख्यात है. उनकी इस सफलता को विशेष का अलंकरण इसलिये लगाया जाता है, क्यों कि, बिना किसी विशेष आर्थिक आधार के उन्होंने इस यश का संपादन किया है. उनकी मातोश्री सावित्रीदेवी का आशिर्वाद एवम् धर्मपत्नी सौ. किरण अग्रवाल का कदम-दर-कदम का पूर्ण समर्पित साथ उन्हे हमेशा मिलता रहा है.
“साहसे वसति लक्ष्मी” को अपने अथक परिश्रम, सफल नियोजन एवम् अपने अधिनस्त कर्मचारियों को अपने पारिवारिक सदस्य के समान मानते हुये, इस उक्ति को साक्षात चरितार्थ किया है. अमरावती शहरवासियों सहित संपूर्ण विदर्भ प्रांतीय लोगों को, पूना, मुंबई जैसे महानगरों में उपलब्ध अत्याधुनिक फर्निचर से भी उत्कृष्ठ दर्जे का फर्निचर उपलब्ध करवाने के संकल्प को यथार्थ स्वरूप में “कॉऊच-पफ्फी” डिम्स्लॅन्ड, अमरावती में साकार किया है. इस नये उपक्रम को भेंट देने वाले प्रत्येक व्यक्ति ने सराहा है. एवम् उत्कृष्ट फर्निचर खरीदकर उनके विश्वास को अधिक स्फूर्त किया है.
इसके अलावा, व्यक्तिगत जीवन में भी अपने व्यस्तत्तम समय में से समय निकालकर साहित्य का पठन करना एवम् नयी-नयी जगहों का भ्रमण करना उनकी रूचि का एक भाग है. उनकी विदेश यात्रा की सूची में, अमेरिका, चीन, मॉरीशस, थायलॅन्ड, दुबई, मलेशिया, सिंगापूर, इंडोनेशिया, पॅरीस, निदरलॅन्ड, बेल्जीयम, प्रोग, अरमेनिया, हाँगकाँग, बहरीन, मकाऊ, नेपाल, कोरिया इत्यादी देश प्रमुख है. कोरोना काल में, जब बाहरी यात्रा प्रतिबंधित थी, तो उस समय उन्होने साहित्य वाचन में ही समय दिया. अपने अध्ययन द्वारा भारत देश के विभिन्न प्रांतो की सांस्कृतिक, ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त करने के बाद “भारत-दर्शन” की एक नयी कल्पना का उदय एवम् परिणास स्वरूप प्रथम प्रयास वर्ग 2021 में “ग्लोस्टर” मोटारकार व्दारा, धर्मपत्नी सौ. किरण अग्रवाल के साथ यात्रा आरंभ की. इस यात्रा की विशेषता यह थी कि यात्रा के दौरान किसी भी जगह हॉटेल बुकींग या भोजन की व्यवस्था न करते हुये, इस यात्रा को एक साहसिक एवम् चुनौती स्वरूप मे करते हुये पूरे 47 दिनों की यात्रा एक “यायावर” की तरह पूरी की. इस यात्रा के सफल एवम् सकुशल अनुभव में उनके आत्मविश्वास में नई उर्जा जागृत हुई. प्राकृतिक सौंदर्य की पहचान एवम् उसके प्रति लगाव फलस्वरूप एक और प्रयास करने का निश्चय संकल्पित हुआ. भोजन बनाने के उपयोग में आनेवाली सामग्री, आवश्यक औषधि, विश्राम साहित्य, कुछ बर्तन इन सब के साथ दि. 20 नवम्बर को सहधर्मिणी किरण अग्रवाल एवम् पुत्री नेहा अग्रवाल के साथ यात्रा प्रारंभ की.
सर्वप्रथम ओंकारेश्वर एवम् वहाँ की नदियों के संगम का दर्शन करते हुए इंदौर पहुंचे. रानी अहिल्याबाई होलकर का राजवाडा देख, उसके इतिहास की जानकारी प्राप्त की. उज्जैन में महाकालेश्वर मंदीर के दर्शन करते हुए मध्यप्रदेश से राजस्थान राज्य में प्रवेश किया. ऐतिहासिक चित्तौडगढ़, फिर अजमेर शरीफ, पुष्कर के ब्रह्ममंदीर के दर्शन करते हुए जयपूर होते हुए उत्तरप्रदेश में प्रवेश, यह भारत का सबसे बड़ा प्रांत है. और यहाँ के सभी शहर अतिशय सुंदर है. आग्रा का ताजमहल, मथुरा में भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थान, फत्तेपूर-सीकरी, गोकुल-वृंदावन ये सभी शहर महाभारत एवं रामायण कालीन कथाओं के चित्रों को आपने सामने साक्षात अनुभव कराते है. अपना मन इन स्वर्णिम अनुभवों से प्रफुल्लित होकर एक नये चैतन्य का अनुभव करता है.
यात्रा के अगले क्रम में उत्तरांचल के नैनीताल अतिशय शीत प्रदेश होते हुए आगे हल्दवानी, कार्बेट, रानीखेत, कौसानी, ऋषिकेश, मसूरी, देहरादून, सोलन, शिमला, मनाली, चंदीगढ, झांसी, ओरछा, ग्वालीयर मार्ग भोपाल पहुँचे. भोपाल में चार दिवसीय यात्रा विराम के बाद अंततः 19 जनवरी को अमरावती पहुुंचे.
60 दिनों की एवम् 7000 कि.मि. दूरी की यह यात्रा संपूर्ण रूप से, अपनी “ग्लोस्टर” मोटार कार व्दारा सफल और सुरक्षित रही. यात्रा के दौरान भारत के विभिन्न प्रांतो की बौली भाषा भोजन, रहन-सहन का निकट से अनुभव किया.
श्री. अनिलकुमार अग्रवाल इनका जन्म दि.02 फरवरी 1965 को दर्यापूर तहसील के येवदा इस ग्रामीण क्षेत्र में हुआ. शिक्षा के प्रति लगाव रखने वाले अनिल कुमार ने अपनी प्राथमिक शिक्षा येवदा गांव में ली. अगली पढाई हेतू वे निकट ही अमरावती शहर आये. शिक्षा को एकमात्र पूंजी मानने वाले अनिलकुमार ने नौकरी करते हुए अपनी इंजिनियरींग की पदवी 70 प्रतिशत अंकों से गर्वमेन्ट कॉलेज उत्तीर्ण की. इंजीनीयर होने के बाद दो साल साइकिल चलायी, बी.ई. होने के बाद उन के संघर्ष की शुरूआत और अपने अदम्य साहस, अच्छी और ऊँची सोच के बल पर अनेक संकटो का सामना निर्भिकत्ता से करते हुए, आज इस मुकाम को हासिल किया है.
“शून्य से विश्व” का निर्माण केवल किताबों मे पढ़ा था लेकिन जब अनिलजी अग्रवाल के जीवन- चरित्र को जिन्होंने भी निकट से देखा है, वे यहीं कहते है कि इस व्यक्ति ने “शून्य से विश्व” का निर्माण किया है. और हाँ, हाथ कंगन को आरसी क्या….. ड्रिम्जलॅन्ड स्थित “कॉऊच-पफ्फी” को देखकर सहसा यह विश्वास नहीं होता कि एक साधारण परिवार से आये व्यक्ति ने अपने अथक परिश्रम से 35000 स्केअरफिट का अतिभव्य फर्निचर का शो-रूम विदर्भ-वासीयों की सेवा में समर्पित किया है.
अपनी अद्भूत कल्पना शक्ती से “कॉऊच-पफ्फी” फर्निचर शोरूम को जिस भव्य-दिव्य सुंदरता से सजाया गया है, उसका अनुमान, शो-रूम को प्रत्यक्ष देखे बिना नही किया जा सकता. ग्राहकों को भगवान मानते हुए, उनका सम्मान पूर्वक स्वागत एवम् उनके बजट में ही संभव हो सके वैसी आपूर्ति तथा विक्री उपरांत सेवा इस मूलमंत्र का अनुसरण करते हुए अपनी सेवायें प्रदान करते है.
कठीन से कठीन परिस्थिती में भी हमेशा मुस्कराने वाले मिलनसार व्यक्तित्व के धनी, मितभाषी श्री. अनिलकुमारजी की पहली मुलाकात से ही वे आपके स्मरण में हमेशा बने रहते है.
शुक्रवार 02 फरवरी को अपने जीवन के 59 वसंत पूरे कर 60 वे वर्ष में प्रवेश करते समय हम उनके स्वस्थ एवम् सुखी जीवन की कामना करते हुए प्रभु से प्रार्थना करते है कि उनकी कीर्ति एवम् यश उत्तरोत्तर बढ़ती रहे.
“महकते रहो, फूलो सरीखे, देश में।
बरसते रहो, सावन सरीखे, खेत में
लोग तो बस सोना निकाले मिट्टी से,
आप तो मोती उगाओ रेत से॥”
-शुभेच्छुक
जयप्रकाश व्यास
मो.नं. 9766666626

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