लेख

नियोजन का दूसरा नाम पद्मश्री प्रभाकरराव वैद्य

अमरावती में अंबादेवी संस्थान परिसर से लगकर अखाड़े का महत्व आँखों के सामने एक चित्र बनकर आज भी उभर रहा है . इस अखाड़े की शुरूआत १९१४ मेें अनंत वैद्य और अंबादास वैद्य इन दो युवको ने की थी. कालांतर में यह अखाड़ा व्यायामशाला में तब्दील हो गया. इन युवको द्वारा लगाया गया छोटा सा पौधा जिसे अपनी लगन और मेहनत तथा नियोजन से सींचकर पद्मश्री प्रभाकरराव वैद्य उर्फ साहेब ने एक बड़ा वटवृक्ष बना दिया.अब यह व्यायामशाला संपूर्ण विश्वभर में प्रसिध्द हो गई है. अब इस अखाड़े को हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल के नाम से देश ही नहीं विदेशों में भी पहचाना जाता है. इस व्यायाम शाला में शिवराम हरि राजगुरू इन्होंने शारीरिक शिक्षण लिया है और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शहीद चंद्रशेखर आजाद ने भी यहां वास्तव किया है. कर्तुतवान वैद्य परिवार में १९३२ में प्रभाकरराव वैद्य का जन्म हुआ. संपूर्ण अमरावती शहर में उन्हें साहेब नाम से पहचाना जाता है और संपूर्ण हिन्दुस्तान मेें वे ताऊजी के नाम से परिचित है. वाणिज्य विषय में पदवी लेने के पश्चात प्रभाकरराव मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर गये और उन्होंने भारत में शारीरिक शिक्षण विभाग के पहले महाविद्यालय में बीपीई की पदवी सन १९६० में प्राप्त की. उन्होंने एम.ईडी (शारीरिक शिक्षण )पूर्ण किया और १९६७ में प्राध्यापक का कार्य शुरू किया. उस समय उनके प्राचार्य शत्रुघ्न सिन्हा के पिताजी थे. उनके पश्चात यह जवाबदारी प्रभाकरराव वैद्य पर आन पड़ी. उन्होंने सेवानिवृत्ति तक यह जवाबदारी संभाली. उनके नियोजन पर शोध निबंध लिखा जा सकता है. उन्होंने व्यायाम शाला का योजनाबध्द नियोजन कर विकास किया. सुसंस्कृत और देशभक्त युवा पीढ़ी निर्माण करने का व्रत उन्होंने स्वीकारा जो आज भी अविरत शुरू है.

उम्र के ८९ साल में भी वे क्रीड़ा क्षेत्र के भीष्ममहा बनकर उभरे है. वे सुबह ६ बजे उठकर हर रोज १५ घंटे काम करते है. एक छोटे से कमरे में शुरू किया गया अखाड़ा प्रभाकरराव वैद्य के नियोजन व दूरदृष्टि तथा लगन से वटवृक्ष की तरह बढ़ गया है. यह छोटा सा अखाड़ा आज १२५ एकड़ जमीन पर स्थापित है. देश की पूर्व महामहिम राष्ट्रपति प्रतिभाताई पाटिल ने व्यायाम शाला को प्रभाकरराव वैद्य की मेहनत का ताजमहल बताया था. प्रभाकरराव वैद्य ने अपने नियोजन से इस छोटे से अखाड़े को इंजीनियरिंग महाविद्यालय, आयुर्वेदिक महाविद्यालय, एम.सी.ए. महाविद्यालय, योग प्रशिक्षण महाविद्यालय, मॅनेजमेंट कॉलेज, आयुर्वेदिक रसशाला, क्रीडा विद्यालय, आश्रमशाला,अध्यापक विद्यालय में तब्दील किया. इतना ही नहीं आदिवासी दुर्गम क्षेत्र मेलघाट में ४ आश्रम शालाए भी स्थापित की. उसी प्रकार मेलघाट में गिरीजन शारीरिक शिक्षण महाविद्यालय की स्थापना की. इस तरह उन्होंने अपने नियोजन से छोटे से अखाड़े को इतना बड़ा रूप प्रदान किया. भारतीय क्रीडा प्रसार और उसका प्रात्यक्षिक सन १९४९ से थेट स्वीडन, इस्तमबूल तुर्की, जर्मनी, इराक, इरान, सीरिया जैसे अनेक देशों में खिलाडियों को भेजकर किया. उन्होंने अनेक राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय स्पर्धा का आयोजन अंबानगरी में किया. जिसमें रशिया वर्सेस भारत कुश्ती, भारत वर्सेस, पाकिस्तान, कुश्ती, फ्रांस वर्सेस, भारत, हॉकी स्पर्धा का समावेश है. उन्होंने भारत की सीमाओं पर जाकर राष्ट्रीय एकात्मता शिविर का भी आयोजन किया. इतना ही नहीं जब विदर्भ के किसानों में आत्महत्या करने का प्रमाण बढ़ रहा था तब उन्होंने किसानों को संस्था के मार्फत प्रशिक्षण दिया. जिसमें अब तक १ लाख से अधिक किसानों ने सहभाग लिया. कश्मीर से कन्याकुमारी तक संपूर्ण भारत से लगभग ५ हजार छात्र-छात्राओं ने संस्था में शिक्षा ली. जिसमें विदेश के भी विद्यार्थियों का समावेश है. संस्था में १५०० विद्यार्थियों के लिए भोजन और निवास की व्यवस्था है. हर साल संस्था द्वारा १ करोड़ रूपये का बिजली का बिल संस्था द्वारा महावितरण कंपनी को दिया जाता है. संस्था में नियोजनबध्द विकास कार्य शुरू है. महाराष्ट्र राज्य सरकार ने प्रभाकराव वैद्य के कार्यो को देखकर उन्हें छत्रपति पुरस्कार देकर सम्मानित किया है. उसके पश्चात उन्हें जीवन गौरव पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया. विदर्भ भूषण पुरस्कार, क्रीड़ा महर्षि पुरस्कार के साथ-साथ उन्हें लिम्का बुक अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. उनके नियोजन से प्रभावित होकर भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया. उन्हें मिले भारत सरकार से पद्मश्री पुरस्कार पर उन्होंने कहा कि यह मेरा नहीं अमरावतीवासियों का सम्मान है.

प्रभाकरराव द्वारा स्थापित इस व्यायामशाला में पारंपरिक कुश्ती, ऑलंपिक स्थगित कुश्ती का बड़ा स्टेडियम भी है. यहां मलखांब, तीरंदाजी, बॉस्केटबॉल, व्हॉलीबॉल, फुटबाल, हॉकी, बेडमिंटन, टेबल टेनिस, ज्यूडो कराटे और क्रिकेट का भी प्रशिक्षण दिया जाता है. ताऊजी का एक किस्सा आज भी याद आता है. ताऊजी को तरणताल का निर्माण करवाना था. जिसका नियोजन उन्होंने किया था.भूमिपूजन के लिए तत्कालीन उपमुख्यमंत्री को बुलाने का ठहर गया था.उपस्थित उपमुख्यमंत्री महोदय ने भूमिपूजन के अवसर पर व्यासपीठ से छोटीसी मदद की घोषणा की. इस पर ताऊजी ने कहा तरणताल के लिए इतनी मदद तो मेरे अमरावती के रिक्षावाले भी दे देंगे. फिर ताऊजी निकले शहर में चंदे के लिए और सिर्फ १ रूपया मांगा. शहरवासियों द्वारा दिए गये एक-एक रूपये से उन्होंने ऑलंपिक स्तर का तरणताल स्थापित किया. यह है उनका नियोजन. प्रभाकरराव वैद्य द्वारा किए गये नियोजन से हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल में अनुदानित व बिना अनुदानित तत्व पर लगभग १ हजार ५०० कर्मचारी है और देशभर में इस व्यायाम शाला का नाम प्रख्यात है. प्रभाकरराव का विद्यार्थी के साथ एक किस्सा है. अमरावती का एक नामांकित व्यक्ति एक बार कश्मीर घूमने के लिए गया और वहां जाकर जम्मू कश्मीर के क्रीडा संचालक से जाकर मिला. उसके कार्यालय में जाते ही उन्होंने मुलाकात के लिए कार्ड भिजवाया. संचालक खुर्शीद केबिन के बाहर आया और हाथ पकडक़र उस व्यक्ति को केबिन में ले गया और उससे प्रश्न किया आप एचव्हीपीएम में जाते हो. ताऊजी को आप जानते हो. इतना कहकर वह क्रीडा संचालक फिर खड़े हुआ और उस व्यक्ति के सामने झुककर नमस्कार किया और कहा कि मेरी ओर से ताऊजी के पैर छू लेना. एक बार एक सेलीब्रेटी को लेकर मैं संस्था में गया. साहब की मुलाकात के लिए तब उस सेलीब्रेटी में प्रभाकरराव वैद्य को झुककर नमस्कार किया और कहा पूरा पंढरपुर घूमकर आया. किंतु आज पांडुरंग के दर्शन हुए.

आज भी हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल के १२५ एकड़ परिसर में घूमकर देखो वहां तुम्हे कहीं पर भी बीड़ी, सिगरेट दिखाई नहीं देगी. तंबाखू भी नहीं दिखाई देगा. मोबाइल पर बातचीत करनेवाला भी कोई दिखाई नहीं देगा ना ही परिसर में छात्र-छात्राए टाईम पास करते हुए दिखाई देगा.वाहनों का हार्न भी यहां सुनाई नहीं देता. इतना अचूक नियोजन प्रभाकरराव वैद्य का यहा है उम्र के ८९ साल में भी पहुंचने के बाद उनका नियोजन अचूक है. अब वे कोरोना के संकट में इस संकट से मार्ग निकालने के लिए जिले की सांसद, सभी विधायक, महापौर,नगरसेवक, जिलाधिकारी, मनपा आयुक्त, पुलिस अधिकारी,समाजसेवक व सभी मान्यवरों के साथ बैठक लेकर कोरोना से निपटने फिर से फील्ड पर उतर आए है,ऐसे जीवनवृति भीष्म पितामाह का मार्गदर्शन मुझे भी प्राप्त हुआ है. जिसें मैं भाग्य समझता हूँ, ऐसे कर्मयोगी को व उसके कार्य को शत-शत प्रणाम.
एड. चंद्रशेखर डोरले. 
मो-९३७०१५४५१७.

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