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वंचितों के कैवारी……

कहते है कि राजनीति में सफलता पाने के लिए एक तो राजनीति की विरासत बाप दादाओं से मिलनी चाहिए या फिर धनवान के रूप में जन्म लेकर आना चाहिए. लेकिन इन दोनों समीकरणों को गलत साबित करने का काम चार बार एक ही निर्वाचन क्षेत्र से चुनकर आनेवाले बच्चू कडू ने किया है. बता दें कि राजनीति में आने से पूर्व बच्चू कडू ने अनेकों आंदोलन किए. ग्रामीण इलाकों में रहनेवाले नागरिकों की समस्याओं का निराकरण किया. बच्चू कडू के आंदोलन भी काफी हटके थे. बच्चू भाऊ से जब उनके आंदोलनों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि अनेक आंदोलनों की आयडिया उनको हिंदी फिल्मों से आयी है. इसी कडी में शोले आंदोलन करने के बाद बच्चू भाऊ पहली बार विधायक चुनकर आए थे. शीतकालीन अधिवेशन नागपुर में शुरू था. इस समय बच्चू कडू सुबह ही विधानभवन के आस-पास स्थित पानी की टंकी पर जाकर बैठ गए थे. मांगे पूरी होने तक नीचे नहीं उतरने की भूमिका रखनेवाले भाऊ को समझाने के लिए और मांगों पर चर्चा करने के लिए तत्कालीन गृहमंत्री स्व.आर.आर. पाटिल पानी की टंकी पर चढ गए थे और भाऊ से चर्चा कर उनका आंदोलन समाप्त कर दिया था. इस आंदोलन के बाद शोले स्टाईल अनेक आंदोलन हुए. मजाकिया लहजे में भाऊ से पूछा गया कि इन आंदोलनों के कॉपीराईट लिए जाते तो रॉयल्टी के रूप में अमाप पैसा इक_ा हो सकता था. शोले के वीरूगिरी आंदोलन के बाद दूसरे दिन अखबारों के पन्नों में भाऊ का नाम की छाया रहा. इसके बाद आंदोलनों की फेहरिस्त लगातार बढ़ती ही गयी है. अर्धदफन, मंत्रियों के घर में डेरा, अधिकारियों के कुर्सी की नीलामी, शराब के दुकानों के सामन दूध वितरण, एसटी बस का पूजन, राहुटी, गणेश स्थापना सरकारी कार्यालयों में, दीपावली के दिन पूर्णा नदी के पात्र में अनशन जैसे आंदोलन क्रिएटीवीटी वाले है. संपूर्ण राज्य में बच्चू कडू आंदोलनों के लिए आयडल साबित हुए. अनेक युवाओं ने प्रेरणा लेकर जनआंदोलन भी किए.
बच्चू कडू में ऐसा क्या है? जो एक ही निर्वाचन क्षेत्र से लगातार चार मर्तबा चुनकर आए है. वो भी किसी राजनीतिक समर्थन के बगैर. जिसका एक ही जवाब है जनसेवा हेतू उनकी तत्परता. जिससे राजनीति में बडा होने के लिए नाम, पैसा, राजनीतिक विरासत होने के बाद ही सफल मिलती है यह नजरिया बच्चू कडू ने पूरी तरह से बदल दिया. राहुटी आपके गांव योजना से पूरी शासकीय टीम को जनता के काम में लगा दिया गया. जिससे सातबारह से लेकर राशनकार्ड सहित अनके काम गांव में ही कम पैसे में आसानी से निपटाए गए. सरकार में जिम्मेदारीवाला विभाग मिलने के बाद ज्यादा व्यापक प्रमाण में योजनाएं चलायी गयी. सत्ता का उपयोग आम लोगों और वंचितों के विकास हेतू कैसे किया जाए. यह पाठ बच्चू भाऊ ने दो वर्षों की अवधि में अन्य राजनीतिक नेताओं को सिखाया.
मरीज सेवा और रक्तदान बच्चू कडू के पसंदीदा काम है. उन्होंने १०० के आसपास रक्तदान कर प्रहार कार्यकर्ताओं के सामने रक्तदान का आदर्श प्रस्थापित किया है. प्रहार कार्यकर्ता बनने के लिए अब मानों रक्तदान करने की प्रथा ही बन चुकी है. अब तक भाऊ के प्रत्येक जन्मदिवस पर हजारों रक्त की थैलियां जरूरतमंद मरीजों को मिल चुकी है. बीते वर्ष से रक्तदान के साथ ही पौधारोपण पर भी जोर देना शुरू किया है. आज पूरे महाराष्ट्र में मेडिकल उपचार के लिए बच्चू भाऊ को जरूरतमंद मरीजों के फोन आते ही प्रहार कार्यकर्ता मरीज सेवा में जुट जाते है. मरीज सेवा की विरासत को बच्चू भाऊ ने जतन कर रखी हुई है. साल २०१८ में बच्चू कडू ने तत्कालीन सरकार की नीतियों के खिलाफ आसूड यात्रा निकालकर किसानों की समस्याओं को उठाया था. लगातार एक महीना सहकारियों के साथ कंधे पर आसूड लेकर सभाएं लेते हुए पूरे महाराष्ट्र की परिक्रमा की थीं. किसानों की समस्याओं प्रति बच्चू भाऊ हमेशा से ही ध्यान देते आ रहे है. यहीं वजह है कि उन्होंने से दिल्ली की सीमा पर चल रहे किसानों के आंदोलन को समर्थन देने के लिए मोटरसाइकिल रैली निकाली थी. जिससे पूरे देश में हडकंप मच गया था. कुछ वर्षों पहले शुरू हुए प्रहार विकलांग क्रांति आंदोलन के माध्यम से बच्चू कडू ने आम प्रहार कार्यकर्ताओं को विकलांग सेवा से जोडने का काम किया है. यहीं वजह है कि स्थानीय स्वराज्य संस्था अब विकलांगों पर पांच फीसदी निधि खर्च करते हुए दिखाई दे रही है. वहीं जो स्थानीय स्वराज संस्था निधि खर्च नहीं करती वहां पर भाऊ का प्रहार होताा है. विकलांगों की मदद व पुनर्वास के कार्य भाऊ ने किए है यह विरोधी भी मान्य करते है. भाऊ के बेहतर स्वास्थ्य व लंबी आयू की कामना उनके जन्मदिवस पर भगवान के सामने करते है.

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