आओ लौटे जिंदगी की ओर

शांती हमारे भीतर है, जब मन भटकना बंद कर देता है, तब शांती का अनुभव होता है। कोविड के बाद मन का अस्थिर होना स्वाभाविक है परंतु घबराईये नहीं, इस लेख में दिये जानकारी को अपनाये और फिर से लौटे जिंदगी की ओर।
मन ही सब कुछ है, जैसा आप सोचते हो वैसे ही बन जाते हो। काफी बार बिती बातें और काफी बार भविष्य में हो सकने वाली चिजों को लेकर हम अस्वस्थ हो जाते है। माइंडफुल मेडिटेशन वर्तमान में रहने का सबसे पावरफुल तरीका है. पर इसकी प्रॅक्टीस करनी होगी। फिर इसके नतीजे आपके जीवन में शांती लाएंगे।
माइंडफुल मेडिटेशन क्या है?
माइंडफुल मेडिटेशन ध्यान का वह तरीका है जिससे कोई भी व्यक्ति अपने दिमाग को न केवल अधिक रचनात्मक एवं विचारों को स्पष्ट बना सकता है बल्कि बेचैन रहने वाले मस्तिष्क को भी आराम दे सकता है।
यह है विधि
पालथी लगाकर बैठें। पतले तकिए पर बैठ सकते है। इससे कमर में खिंचाव नहीं आएगा। अब हमें माइंडफुल रहना है मतलब, ‘यहा और अभी’ मेें रहना है। वर्तमान में रहना है।
माइंडफुलनेस के तरीके
– सांस पर ध्यान देना (माइंडफुल ब्रिदींग)
– ध्यान देकर सुनना (माइंडफुल लिसनिंग)
– ध्यान देकर देखना (माइंडफुल सिईंग)
– विचारों पर ध्यान देना (माइंडफुल ड्राईंग)
– शरीर के खिंचाव पर ध्यान देना (माइंडफुल बॉडी स्टेचिंग)
माइंडफुल के फायदे
– तनाव से मुक्ति
– याद करने के शक्ति में इजाफा
– प्रकाग्रता का बढना
– भावनात्मक स्टैबिलिटी होना
– शांति और खुशी का अहसास बढना
– गुस्सा कम आना
– हायपर – ऐक्टिविटी कम होना
– नींद बेहतर होना
पोस्ट ट्रॉम्याटिक स्ट्रेस डिसआर्डर में हमने कल जो लक्षण देखे उन सभी लक्षणों से हमें इस मेडिटेशन से छुटकारा मिलता है। ध्यान करते वक्त हम जब विचारों को दिमाग से निकालना चाहते है, तभी यह विचार हमें परेशान करना शुरु कर देते है। इसलिए हमे इन्ही विचारों पर ध्यान देना है। साथ में अपने सभी इंंद्रियों को सचेन करके इन्हें भी एक्टीव्ह रखना है, तो आयीए माइंडफुल मेडिटेशन सिखते है।
सांस पर ध्यान देना – अपना ध्यान सांस पर लगाएं। अपनी अंदर जाती और बाहर आती सांस को सहज रुप से महससू करें। सांस के अतार-चढाव को महसूस करें। एक हाथ पेट पर रखे और गौर करें कि जब सांस ले तो पेट बाहर की तरफ जाए और जब सांस छोडें तो पेट अंदर की तरफ जाए।
ध्यान देकर सुनना – इस प्रक्रिया के दौरान अपना ध्यान अपने आसपास से आ रही आवाजों पर ले जाएं, जैसे कि पंखे की आवाज, चिडियां, पंछी की आवाज, मशीन की आवाज या फिर आसपास की कोई भी आवाज। हर आवाज पर ध्यान दें। देखें कि कैसी-कैसी आवाजे आ रही हैं, कौन-सी तेज है और कौन-सी धीमी? ध्यान देकर आवाज सुने। वर्तमान में रहे। यही है माइंडफुलनेस। आमतौर पर हम ध्यान करते वक्त आंखे बंद कर लेते है। पर माइंडफुल मेडिटेशन में हम आंखे खुली ही नहीं रखनी बल्कि ध्यान से आजू बाजू देखना भी है. हम काफी बार बगीचे में या कोई नैचरल जगह पर होते है पर मन में विचारों के चलते हम उस चिज का मजा नहीं उग सकते। माइंडफुल रहने से वर्तमान में रहने का अभी में, यही में रहने का मजा आएगा और बेकार के विचारों से मुक्ति मिलेगी.
ध्यान देकर देखना
इसका मतलब है कि, हम जो कुछ भी देख रहे है, उसे हम उसके असल रुप में देखे. अपने आस पास देखे। बारी-बारी एक-एक जिच को गौर से देखे। अगर कमरे मेें परदे हो, तो उसका रंग देखे, पॅटर्न देखे। खोली में हर एक चीज को अच्छे से निहारे। अगर नेचर वॉक कर रहे हो, तो हरे घास, पेड, फुल, डाली हर एक चीज को ध्यान से देखते चले। इससे आप माइंडफुल होंगें। इंन्झायटी, स्ट्रेस निश्चित ही कम होगा।
विचारों पर ध्यान देना
ये सबसे महत्वपूर्ण है। हमारा मन बेहद चंचल है। यह हमेशा मधु मखी के तरह अस्थिर रहता है। इसे एक जगह पर लगाना मुश्किल है लेकिन आपको यही करना है। अपने मन में आ रहे विचारों पर ध्यान लगाए. देखे तो कौन से विचार आ रहे है. मन के विचारों को रोखे नहीं। विचारों को आने दे और जाने दें। ना ही विचार क्यों आ रहे यह सोचकर उदास हो। अगर मन विचारों में उलझ जाता है, तो अपना ध्यान वापस अपनी सांस पर लेकर जाएं।
फायदा- इससे धीरे-धीरे विचार अपने आप स्थिर हो जायेंगे और आप रिल्याक्स महसूस करेंगे। मन रिल्याक्स तो तन रिल्याक्स।
शरीर के खिंचाव पर ध्यान देना
यह केवल 2 मिनिट ही करें। खडे होकर अपनी बाजुओं को उपर-उपर की तरफ खींचे। अगर कुर्सी पर बैठे है, तो बैठे-बैठे हाथों को आसमान की तरफ खींचे। फिर अपना ध्यान बाजुओं पर केंद्रीत करें। उंगलियों से कंधो तक ध्यान लेकर जाएं। फिर जमीन पर बैठे और पैरों को सामने की ओर तानें। इसके बाद पैर के पंजों से लेकर खनों और पुरे पैर पर ध्यान लगाएं।
फायदा- हाथ-पैर खिंचाव से शरीर फुर्ती-सा महसूस करता है। मन भी स्थिर होता है.
आखिर में… 2 मिनिट के लिए शांत बैठ जाएं। इस दौरान कुछ न सोचे। सांस भी सामान्य रखे। इस माइंडफुल मेडिटेशन से आप तरोताजा महसूस करेेंगे। स्थायु रिल्याक्स होंगे और अकडन और दर्द भी धीरे-धीरे कम होगा.
– डॉ. श्रीकांत अंबाडेकर
– डॉ. मरीयम बंदुकवाला
8928671552