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सहयोग, संयम का समन्वय जरुरी

बीते एक वर्ष से कोरोना संक्रमण जारी है. गत वर्ष भी हिंदी वर्ष कोरोना के संक्रमण के बीच गुजरा. इस वर्ष भी स्थिति वहीं कायम है. यह कहा जाये, तो अतिरंजना नहीं होगी कि, गत वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष की स्थिति और भी खतरनाक हो गई है. बीमारी का संक्रमण दिनों-दिन बढता जा रहा है. जो संख्या गत वर्ष महिनाभर में भी नहीं हो पाती थी, वह अब एक ही दिन में पायी जाने लगी है. ऐसे में जनसामान्य का जीवन संकट में आ गया है. कोरोना संक्रमण की चैन तोडने के लिए सरकार की ओर से एक बार और लॉकडाउन का प्रयास किया जा रहा है. लॉकडाउन यह समय की मांग है. ऐसी भूमिका विभिन्नस्तर पर राज्य सरकार की ओर से ली जाने वाली मिटींगों में सामने आयी है. जिसके चलते निश्चित रुप से यह माना जा रहा है कि, कोरोना की चैन तोडने के लिए लॉकडाउन आवश्यक है. इसके लिए सरकार की ओर से प्रयास भी किये जा रहे है. लेकिन लॉकडाउन से कोरोना की समस्या का क्या हाल निकलेगा? यह प्रश्न भी लोगों के सामने मंडराने लगा है. शहर के अनेक नागरिक इस प्रश्न को लेकर मंथन कर रहे है. क्योंकि बीते लॉकडाउन के बाद से लोगों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है. इसे सूचारु करने के लिए नागरिक अपने स्तर पर प्रयत्न कर रहे है. लेकिन उन्हें इस बात का खतरा है कि, दुबारा लॉकडाउन लगाये जाने पर उनके द्बारा किये गये प्रयास के गढ ध्वस्त हो सकते है. खासकर व्यवसाय पर इसका बुरा असर होगा. क्योंकि व्यवसाय न होने के साथ-साथ व्यवसायियों को विभिन्न टैक्स देना ही है. साथ ही कर्मचारियों का खर्च भी उन्हें उठाना पड रहा है. ऐसे में व्यापारी संयम कैसे बरते, यह प्रश्न भी सामने आ रहा है. इस समस्या का हल तभी संभव है, जब सरकार की ओर से व्यापार को सहयोग दिया जाए. खासकर प्रतिष्ठानों मेें कार्यरत कर्मचारियों के खाते में यदि सरकार एक छोटी धनराशी जमा कर दें, तो उन पर भुखमरी की नौबत नहीं आएगी.
जिस तरह सरकार चुनावी लाभ के लिए या किसानों की समस्या को समझते हुए, उनके खाते में राशी जमा कर रही है. वर्ष में 6 हजार रुपए यानि प्रतिमाह 500 रुपए की राशी किसानों के खाते में जा रही है. इस तरह श्रमिक वर्ग के खातों में भी राशी जमा होनी चाहिए. ताकि उन पर भुखमरी की नौबत ना आये. इसके अलावा व्यापार को भी राहत देने के लिए कुछ विशेष प्रावधान आरंभ किये जाने चाहिए. बेशक यह मजबूरी है कि, लोगों को राहत मिलने के लिए तथा बीमारी का संक्रमण तोडने के लिए लॉकडाउन की अहम आवश्यकता है. जनसामान्य इसके लिए हिम्मत भी कर सकता है. बीते लॉकडाउन में लोगों ने पूरी निष्ठा के साथ सरकारों का सहयोग किया. लॉकडाउन को स्वीकार किया. उनके निर्देशों के अनुसार घरों मेें रहे. इसके बदले में सरकार ने हर महिलाओं के खाते में 500 रुपए की राशी भी जमा की थी. महाराष्ट्र में वर्तमान सरकार को भी चाहिए कि वह लॉकडाउन से पूर्व हर श्रमिक के खाते में राशी जमा कर दें, ताकि उस पर भुखमरी की नौबत ना आये. चूंकि इस समय को आपदा काल कहा गया है. सारी नियमावली आपदा कानून के तहत जारी है, तो ऐसी आपत स्थिति में सरकार का भी दायित्व है कि, वह लोगों के लिए जीवनरक्षक बने. भुखमरी की नौबत किसी पर भी ना आये यह सरकार का दायित्व है, लेकिन सामान्य नागरिक की स्थिति यह है कि वह जिस दिन काम करेंगा व कुछ पैसे कमाकर लागेगा तो उसके घर का चूल्हा जल सकता है. अन्यथा फाके की नौबत उस पर आ सकती है. सरकार को इस बात का भी ध्यान रखना होगा. बेशक बीमारी के नाम पर करोडों रुपए खर्च किये जा रहे है, तो सरकार को जनसामान्य की मदद के लिए भी कुछ राशी का प्रावधान करना न केवल जरुरी है, बल्कि सरकार का दायित्व भी है. जनसामान्य लॉकडाउन के कारण उत्पन्न होने वाली भुखमरी की नौबत से भयभीत है. यदि उसका यह भय सरकार मिटा देती है, तो वह सहर्ष लॉकडाउन के लिए अनकुल हो सकता है.
कुलमिलाकर लॉकडाउन यह समय की मांग है. इसके लिए नागरिकों को संयम बरतना होगा. लेकिन सरकार का भी यह दायित्व है कि, वह लोगों पर भुखमरी की नौबत ना आये, इसलिए आर्थिक प्रावधान करें, हर श्रमिक व जरुरतमंद को सीमित ही सही पर कुछ न कुछ राशी अवश्य दी जाये. साथ ही सरकारी स्तर पर उन्हें अनाज की योग्य व्यवस्था दी जाये. ताकि उन पर भुखमरी की नौबत न आये. भले ही लॉकडाउन के कारण व्यापार पिछड सकता है. जिसे आने वाले समय में योग्य रुप से मजबूत भी किया जा सकता है. लेकिन जिन रोज कमाना व रोज खाने वाले लोगों के सामने विपत्ती आएगी. उसका भी कोई हल खोजा जाना चाहिए. इसीलिए नागरिकों को संयम व सरकार के सहयोग मेें समन्वय अतिआवश्यक है.

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