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राष्ट्रीय आपदा का रूप ले रहा कोरोना

देशभर में एक ही दिन में दो लाख से अधिक कोरोना संक्रमित पाए जाने के बाद अब यह स्पष्ट होने लगा है कि कोरोना यह राष्ट्रीय आपदा का रूप ले रहा है. इससे बचाव के लिए सरकार को स्वयंस्फूर्त होकर अनेक प्रबंध करना जरूरी है. गत वर्ष मार्च में जब कोरोना का संक्रमण आरंभ हुआ था तथा सरकार की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन घोषित किया गया था. तब हर किसी ने लॉकडाउन का बड़ी ही शिद्दत से पालन किया. इसका परिणाम भी सार्थक रहा. संक्रमितों की संख्या कम होने लगी थी. यहां तक की अनेक प्रांतों में मरीज नही मिलने की स्थिति भी निर्माण हो गई थी. इसके चलते अनेक कार्य आरंभ किए गये. अनलॉक प्रक्रिया के तहत चरणबध्द तरीके से एक-एक सेवाएं आरंभ की गई. लेकिन बीच के काल में फिर से संक्रमितों की संख्या बढने लगी है. इस बात का अहसास सरकारों को भी था.स्वयं महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री द्वारा नवंबर, दिसंबर माह में यह वक्तव्य दिया गया कि जनवरी फरवरी में कोरोना की लहर नहीं सुनामी आयेगी. जब इस बात का एहसास था तो प्रारंभ से ही प्रयत्न क्यों नहीं किए गये. इस बारे में हर कोई जानना चाहता है. स्पष्ट है खतरे की आशंका होने के बाद भी ठोस कदम नहीं उठाए गये. यदि जब आशंका निर्माण हुई तो उसी समय से हर बस्तियों को सैनिटाईजर करने काम क्यों नही आरंभ किया गया. जिस स्तर पर आज लोगों की कोविड टेस्ट हो रही है, वैसी टेस्ट कुछ माह पूर्व ही आरंभ की जाती तो संभवत: आज जो भयावह चित्र सामने आ रहा है. इस संक्रमण के दौर में सर्वाधिक नुकसान सामान्य व्यक्ति का हो रहा है. अब यह मांग उठने लगी है कि कोरोना संक्रमण को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए. निश्चित रूप से स्थितियां भी इसी तरह की बनती जा रही है. जिसके चलते इस दौर को राष्ट्रीय आपदा का दौर घोषित किया जाना चाहिए. जब भी कोई राष्ट्रीय विपत्ति आती है तो जनसामान्य को योग्य सहायता देने का दायित्व सरकार का हो जाता है. वर्तमान में संक्रमण को लेकर यदि राष्ट्रीय आपदा घोषित की जाती है तो जनसामान्य को इससे बचाव के लिए स्वयं के स्वास्थ्य के लिए विशेष सावधानियां बरतनी होगी. साथ ही सरकार को भी आपदाग्रस्तों को योग्य राशि का मुआवजा दिया जाना चाहिए. क्योंकि संक्रमण के कारण अनेक कडे निर्बंध लगाए जा रहे है. लेकिन इस बात को नजर अंदाज किया जा रहा है. यह बीमारी किन कारणों से बढ़ रही है. यदि मूल में जाया जाय तो पोषाहार के अभाव में कई लोगों को यह संक्रमण हो रहा है. इसलिए सामान्य व्यक्ति को पर्याप्त पोषाहार उपलब्ध कराया जाए. जो लोग विगत मार्च माह से बीमारी के कारण बेरोजगारी का संकट झेल रहे है. उन्हें रोजगार उपलब्ध कराया जाए. यदि यह संभव नहीं है तो उन्हें आर्थिक सहायता दी जाए. विशेषकर जो लोग इस बीमारी से जूझ रहे है. उन्हें आर्थिक सहायता व चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाए. इससे लोगों को राहत मिलेगी.
कोरोना संक्रमण की स्थिति इतनी भयावह है कि सामान्य नागरिक का मनोबल अब टूटने लगा है. नांदेड़ जिले में लोहा में एक श्रमिक की कोरोना के कारण मृत्यु हो गई. घर का कर्ताधर्ता यही व्यक्ति होने के कारण उसके परिवार पर संकट आ गया. जिसके चलते उसकी पत्नी ने तीन वर्ष के बालक के साथ आत्महत्या कर ली. एक अन्य आत्महत्या की घटना सोलापुर में हुई. कोरोना के कारण पिता की मृत्यु होने तथा माता रूग्णशैया पर रहने से निराश युवक ने स्वयं आत्महत्या की. इसी तरह अनेक मन को द्रवित करनेवाली स्थितियां कोरोना के कारण निर्मित हो रही है. इस बीमारी में पीडित को कोई भी सहायता न मिलने से संबंधित परिवार पर आर्थिक संकट मंडराने लगता है. ऐसे में सरकार को चाहिए कि कोरोना संक्रमितों को योग्य राशि दी जाए ताकि उनके परिवार पर आनेवाला संकट दूर हो सके.
कुल मिलाकर कोरोना का यह संकट अत्यंत तीव्र हो गया है. बेेशक इसके लिए नागरिको को जिम्मेदार माना जा रहा है. लेकिन प्रशासन की भी कुछ लापरवाहिया है. खासकर जब पूरी तरह कोरोना संक्रमण का हल नहीं निकला तो एक-एक सुविधाएं अॅनलाक प्रक्रिया के तहत क्यों आरंभ की गई. सबसे पहले शराब बिक्री की दुकाने शुरू हुई. तत्पश्चात सभी दुकानों को पी-१, पी-२ के तहत आरं्रभ किया गया. यहां तक की बाद में जिम, मॉल, सिनेमागृह आदि भी आरंभ किए गये. परिणामस्वरूप आज बीमारी तीव्र रूप ले रही है तथा जो सुविधाएं आरंभ की गई थी उन्हें पुन: प्रतिबंधित किया जा रहा है. इसके अलावा अनेक स्थानों पर भीड़ को जमा होने देना भी बीमारी का कारण बन रहा है. कुंभ मेला में हजारों की संख्या में लोग शामिल होंगे. इस बात का प्रशासन को अहसास था. बावजूद इसके इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गये. नतीजा यह रहा कि इस मेले में १७०० लोग संक्रमित पाए गये. यह संख्या उन लोगों की है जिनकी कोविड टेस्ट हुई. जिनकी टेस्ट नहीं हुई है, ऐसे भी कई लोग बीमारी फैलने का कार्य कर सकते है. निश्चित रूप से यदि इस न दिखनेवाले विषाणु से यदि निपटना है तो जरूरी है कि स्थायी नीति तय की जाए. जब तक संक्रमण का खतरा समाप्त नहीं होता लोगों को कडाई से कोरोना प्रतिबंधित उपायो का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए.

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