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प्रकृति चिकित्सा द्वारा सौंदर्य निश्चित

सृष्टि और मानवी जीवन एवं सौंदर्य का संबंध शुरु से ही है. क्योंकि मनुष्य पंचमहाभूतों से बना है, जिसमें वायु, आकाश, अग्नि, जल, पृथ्वी का समावेश है. यही तत्व हमारे शरीर में विद्यमान है. समस्या यह है कि इस तत्व को हम सही तरह से अभी तक पहचान नहीं पाए. उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो व्यक्ति नित्य केवल मिट्टी चिकित्सा अपने शरीर पर करता है. तो बालों से लेकर कांती तक और बाहरी एवं आंतरिक रुप से हमारे शरीर में विजातीय द्रव्य जमा होता है. वो मिट्टी चिकित्सा से बाहर फेका जाता है, क्योंकि मिट्टी में चौबीस घटक विद्यमान है. इसीलिए इसे संसार की सबसे श्रेष्ठ मेडीसीन मानी जाती है.
प्रकृति ने हमें सुंदरता प्रदान की है,लेकिन प्रकृति से हटकर हम जीवन जी रहे हैं और आज हम विद्रुप रुप धारण कर रहे हैं. इस कृत्रिम उपचार में बहुत सारा पैसा खर्च कर रहे हैं. सुंदरता टिकाये रखना हर मनुष्य का कर्तव्य है. संसार में कोई व्यक्ति सुंदर दिखने में प्रसन्नता का अनुभव लाना चाहता है. क्योंकि सुंदरता को सजग रखना हमारे हाथ में है. सुंदरता के मुख्य स्त्रोत है, दैनंदिन दिनचर्या का चयन, नियमितता, ऋतुनुसार खान-पान का चयन, जल की मात्रा का चयन, योगा, आचार-विचार, उपवास चिकित्सा और हमें प्रसन्नता लगे ऐसे रंगों के कपड़ों से भी सुंदरता निखरती है. हमारे जीवन में यही कच्चा धदान्य जिसमें मूंग, मोट, फल, ककड़ी, चना, बीट और विविध फलों का रस रोज लेने से प्राकृतिक सौंदर्यता शरीर और चेहरे पर कसावट आकर सुंदरता बढ़ती है. साथ ही शरीर में बह रहे खून को सक्रिय रखने के लिए मसाज बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. जिससे हमारे शरीर में रक्तभिसरण सही रुप से बनता रहता है.
कच्चे फलों के सेवन से शरीर में विटामिन, कैल्शियम, लोह, फॉस्फोरस आदि चौबीस तत्वों की पूर्ती होती रहती है. साथ ही यदि व्यक्ति सूर्य स्नान सूरज की धूप और रंगों के भाव जल को देकर यदि वह जल नित्य व्यक्ति पिता है तो उसे पेट की समस्या कभी नहीं होती. मसाज से माायग्रेन नहीं होता. शरीर तेज और उत्साह से भरा होता है, यही तो सौंंदर्य है. साथ में यदि व्यक्ति व्यायाम को हर रोज करता है, जिसमें भास्त्रिका, लोम-विलोम, मेडिटेशन और योग के नियमों के साथ अपनी दिनचर्या को निर्धारित कर जीवन में उतारता है तो कुछ ही दिनों में व्यक्ति के चेहरे पर आकर्षण और शरीर सुडौल बनता है. घर में ही यदि रोज रस्सी पर 10 मिनट कुदते हो तो भी हमारा रक्त संचरण अच्छा बनता है. आजकल नींद की बड़ी समस्या है. हर रोज सात से आठ घंटे की नींद पर्याप्त है. लेकिन हमारी नींद कितनी हो रही है, इस पर ध्यान देना होगा. नींद कम हो रही हो तो इस बारे में अध्ययन करना होगा. घर में यदि प्लास्टीक की चप्पल पहनते हो, नींद का समय गलत हो, सोने का तकिया जाड़ा हो, जल पी कर सोते हो या बहुत देर तक सोते नहीं हो, तब इसका सीधा असर हमारे पाचन संस्था पर पड़ता है और पेट की समस्या बढ़ती है. पेट साफ नहीं होता तब रोगों का निर्माण होता है और रोगों की शुरुआत होकर हमारा सौंदर्य खराब होना शुरु होता है. समय के साथ हमने संगीत का सहारा लेना चाहिए. जिसका असर हमारे मेंदू के तंतु पर पड़ता है और हमें तुरंत नींद आती है.
यदि हर रोज हमने हमारे तल पांव को घिसकर साफ रखा तो इसका असर तुरंत चेहरे पर दिखाई देता है. साथ ही नींबू के साथ दूध की मलाई के लेप की 5 मिनट तक चेहरे पर मालिश करें तो चेहरा खिल जाता है. हमारे सौंदर्य में आंखों की अहम् भूमिका रही है. इसीलिए आंखें मोटी बनाने के लिए आंखों का व्यायाम करना चाहिए जो त्राटक विधि से होता है. बाहर से और अंदर से शरीर की मरम्मत करना, दिन में 24 घंटे स्फूर्ति और ताजा रहना चाहते हो तो हमें प्रकृति को अपनाना होगा. यदि किसी व्यक्ति में जड़त्व है. स्फूर्ति नहीं हो तो ऐसे व्यक्ति को रात को जल में भिगोये हुए चने का पानी एक महीने तक पीना चाहिए. उसकी स्फूर्ति कई गुना बढ़ती है एवं हर रोज एक पाव टमाटर का सेवन करने से चेहरे पर लाली छा जाती है. इसके लिए प्राकृतिक चिकित्सक की सलाह जरुर लेना चाहिए.
जब से मानव ने प्रकृति का साथ छोड़ दिया, प्रकृति ने उसे रोग के रुप में दंड दिया और आज कृत्रिम सौंदर्य के पीछे लगकर वजन कम करने के लिए विविध डान्स क्लासेस लगाकर अपना समय गवाने के साथ ही पैसा भी गवा रहे हैं. यही बात प्रकृति से जुड़ने के लिए हमारे भारतीय सनातन धर्म में ऋषि मुनियों और योगिक गुरु ने कई बार समझाया है. क्योंकि हमारा सौंदर्य हमारे हाथ में है. इसलिए प्रकृति को समझना, अपनाना, जानकारी रखना हमारा प्रथम कर्तव्य है. जिसमें पंचमहाभूत, खान-पान, योगा, व्यायाम, आहार, सूर्य चिकित्सा, विविध स्नान, दिनचर्या, ऋतुचर्या आदि का समावेश है.
यदि इस पद्धति को मानव अपने जीवन में उतारेगा तो वह मानव दीर्घायु, निरोगी और सुंदरता का धनी बना रहेगा.
– वैशाली राठौड, नॅचरोपॅथी अभ्यासक
अमरावती.

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