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‘मधुमेह’ से डरे नहीं। जाने तथा जागे।

‘मेरा स्वास्थ्य मेरे हाथ में’

मधुमेह से आज सारा विश्व पीडित है. सिर्फ भारत मेें करीब 2 से 5 करोड लोग इस रोग से पीडित हैं. 2 से 6 प्रतिशत अर्थात आबादी का हर बिसवा व्यक्ति अपने देश में मधुमेह से ग्रस्त है तथा विश्व की 2 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या इस रोग से पीडित होकर निरंतर चिकित्सा में लगी रहती है.
सुश्रुत ऋषी के अनुसार मधुमेह के रोगियों में अत्याधिक भुख व प्यास तथा खुशबुहार तथा सुगंधित श्वास के लक्षण दिखते है. ग्रीस चिकित्सों ने इसे प्रचिनवैधक शास्त्रों में पिघलनेवाले रोग या नष्ट कर देने वाले रोग से विभूषित किया है. मधुमेह का लॅटिन नामकरण डाइबिटीज मेलाइटिस अर्थात शर्करामोह मधुमेह कहा जाता है. मधुमेह का सीधा संबंध अग्न्याश यानि क्लोम ग्रंथी से है.
क्यों होता है मधुमेह? भोजन के बाद मिठा खाना, मानसिक तनाव, जिससे अस्थायी रक्त शर्करा बढ जाता है. मधुमेह अनुवंशिक भी होता है तथा बैठे बैठे कार्य करने वाले दुकानदार, व्यवसायी, अध्यापक, वकील, अधिकारी वर्ग को मधुमेह होने की संभावना अधिक रहती है. इन पेशों से जुडे लोगों की यकृत तथा क्लोम ग्रंथी निष्क्रिय हो जाती है. इसलिए अतिरक्त शर्करा का चयापचय व्यवस्थित करना अनिवार्य है तथा आहार चिकित्सा किसी प्राकृतिक चिकित्सा से समझना जरुरी भी है. एंटी-डायबीटिज ड्रग्ज लेनेवाले 32 मधुमेह रोगियों पर भी प्रयोग किया गया. जिनको अत्यल्प वसा युक्त तथा उच्च रेषेवाले आहार देने के साथ दैनिक व्यायाम कराया गया उनमें से 26 रोगी 81 प्रतिशत मधुमेही दवाओं से मुक्त होकर स्वस्थ्य हो गये और इन्सुलिन डिपेण्डेण्ट 22 रोगियों में 11 रोगी 50 प्रतिशत इन्सुलिन से मुक्त हुये तथा बचे 50 प्रतिशत रोगियों में भी इन्सुलिन लेने की मात्रा कम हुई.
कारण अत्यल्प वसामय तथा रेषेदार आहार और दैनिक व्यायाम के उपयोग से 4 सप्ताह मेें कम समय में रक्त शर्करा से ग्रस्त उपयुक्त सभी रोगी बिना औषधी के सामान्यावस्था में आ गये. रोगियों को चिनी, चावल्म मैदा मिठाईया, चॉकलेट, पेपरमेंट की गोलिया, जेम, डिब्बा बंद आहार, प्रेस्टिज आदि कन्फेक्शनरी एवं सिथंटिक आहार यकृत गुर्दे तथा अग्न्याशय को अतिग्रस्त कर मधुमेह रोग पैदा करता है. आहार में क्षारिय तत्व तथा विटॉमिन ए, बी-1, बी-2, बी-3 तथा बी,सी तथा ई की कमी से मधुमेह रोग होता है तथा मधुमेह का संबंध मोटापा है. कारण मोटापा में अत्यधिक कॅलरी जमा होने के दुष्परिणाम है. अत्याधिक चर्बी व कार्बोहाईड्रेट खाने से उनके चयापचय के लिए ज्यादा इन्सुलिन की आवश्यकता होती है.
मधुमेह किसी भी उम्र में हो सकता है. 40 साल की उम्र के पश्चात मधुमेह रोगियों की संख्या अधिक है. इस अवस्था में रोगी को ठीक होने में काफी परिश्रम लगता है. लेकिन 50 साल बाद होने वाला मधुमेह प्राय: ठीक हो जाता है. लेकिन 80 साल बाद होने वाले मधुमेह की संभावना काफी कम होती है. डॉ. इंद्रसिंह के शोध प्रयोग के अनुसार इन्सुलिन डिपेण्डेण्ट 80 मधुमेह के रोगियों को मात्र 11 प्रतिशत वसा तथा अन्य प्राकृतिक आहार पर रखा गया. छह सप्ताह मेें 50 रोगियों का इन्सुलिन बंद हो गया तथा 18 सप्ताह बाद अन्य सभी रोगियों को इन्सुलिन देना बंद कर दिया. इतना ही नही इनमें से 12 रोगी मधुमेह से पूर्ण तया मुक्त हो गये. डॉ. सिंह अपने शोधपूर्ण प्रयोगों से इस निष्कर्ष पर पहुंचे की अत्यंत वसायुक्त आहार लेने से सामन्यात: सावित इन्सुलिन पुन: प्रभावी हो जाता है. शर्करा का उपयोग होने लगता है. वसा रहित आहार से कोशिकीय द्बारा खुल जाते है. शर्करा का उपयोग होने लगता है. अधिक वसा अंतग्रहण से उत्पन्न लकवाग्रस्त कोषाणुओं कम वसा से सज्ञांहीनता की स्थिति दूर होती है तथा ग्लुकोज का पुन्हा उपयोग बढ जाता है. लगातार महिनों तक प्रचुर रेषेवाले आहार अत्पतम वसा एवं चिकनाई मुक्त आहार दिये जाए तो मधुमेह रोग पूर्णतया मुक्त हो जाता है. साथ में प्राकृतिक चिकित्सा से शरीर की आंतर और बाह्य सफाई करना जरुरी है. मेरा स्वास्थ्य मेरे हाथ में जानकारी द्बारा मधुमेह मुक्ति के कुछ लेख आगे प्रस्तुत किये जायेंगे.
– साहेबराव बांते,(प्राकृतिक चिकित्सक),अमरावती.
मो. 8208720949

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