लेख

डॉ.गोविंद कासट सर्वगुण संपत्ति के धनी

अति विशिष्ट प्रतिभा से लबालब, हमेशा हंसते हंसते अपना काम करना, किसी भी समस्या का तुरंत हल निकालकर आगे बढना, हटकर एवं अलग तरीके से कुछ करने की प्रवृत्ति से सराबोर, मर्म हृदयी, समय के पाबंद, सदैव सबकी मदद के लिए हाथ बढाना, किसी भी पद की कोई उत्सुकता न रखना, सबको आगे रखकर मजबूत दीवार की तरह पीछे से सहारा देना… ऐसी न जाने कितनी विशेषताएं हैं डॉ.गोविंदभाऊ कासट में, कि अगर लिखने बैठे तो कागज के गठ्ठे खतम हो जायेंगे. सिर्फ एक वाक्य में अगर कहें तो गोविंद भाऊ जैसी शक्सियत, अति दुर्लभ प्रतिमा है, उनमें इतने गुण है कि हम जैसे लोगों में उनमें से एक दो गुण भी पा लेंगे तो धनी हो जाएंगे. अति विशिष्ट प्रतिमा, ‘न भूतो न भविष्यति’ उनका आज 75वां जन्मदिन है. आज मैं उनके चरणों में नतमस्तक होकर उनको चिरंजीवी रखने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूं.
डॉ.गोविंद कासट इील, इ.ए. (चशलह), ऊ.झ.एव, चझएव, ऊढरु, उ- ङळल डलळ. ऊ.ध.एव, ऊ.इ.च, च.ड.थ, झहव. (झहूीलळलरश्र शर्वीलरींळेप). उम्र के 50 साल तक पढाई करते रहे. ारीी र्लेााीपळलरींळेप में ारीींशीी करने के लिए जलगांव जाने का प्रण किया था, उस वक्त अमरावती में यह ऊशसीशश नहीं होती थी, तब मां ने डॉट दिया कि अब कब तक पढोंगे, थोडा घर परिवार पर ध्यान दों, तब उन्होंने दिल पर लिया और अपनी तमन्ना को विराम दिया. अमरावती और नागपुर विद्यापीठ से अब तक 6 गोल्ड मेडल हासिल कर चुके है गोविंद भाऊ . इतना पढाई में लगाव एक उनकी विशिष्ट प्रतिभा है.
एक दिन गोविंद भाऊ का फरमान था कि कल सुबह 10 बजे सेंट्रल जेल जाना है, कार्यक्रम था कि वहां कैदियों के समक्ष आनंद वन की आर्केस्ट्रा (यह गोविंद भाऊ की पसंदीदा आर्केस्ट्रा है, जिसमें सभी वाद्य फिजिकल हैंडिकैप्ट लोग बजाते हैं) उसमें मुझे एक गाना गाना है, जिंदगी में पहली बार सेंट्रल जेल के दर्शन हुए. बिना कोई गुनाह किये, अच्छा लगा याद रहेगा, अंध, अपंग, मुकबधीर, कुष्ठरोग ग्रसित, वृध्दाश्रम, अनाथाश्रम इन सभी संस्थाओं से गोविंद भाऊ का चोली दामन का साथ है, इन संस्थाओं को विद्यार्थियों के जरुरत का सामान पहुंचाने में उनको बहुत आनंद आता है. वे हमेशा प्रयासरत रहते है कि समाज के उन वंचित घटकों को कुछ पल की खुशियां दे सकें. गोविंद भाऊ हमेशा अपना जन्मदिन इन बच्चों के साथ मनाते है, प्रभात टॉकीज में सुबह 9 बजे, ये सभी बच्चे आ जाते हैं. उन्हें सिनेमा भी दिखाई जाती है और उन्हें अल्पोपहार भी कराया जाता है, इन बच्चों की खुशी इस दिन देखने ही बनती है.
विविध पुस्तकों में न्यूज पेपर में गोविंद भाऊ के आर्टिकल छपना, व्यक्ति विशेष पर पुस्तक लिखना, इनका स्वभाव है. उन्हें आनंद आता है, हमने करीब से देखा है.
खेलकुद में, व्यायाम में विशेष रुची हमने गोविंद भाऊ से सिखी है, बैडमिंटन णपर्ळींशीलळीूं लहाळिेप, भागना, साईकिल चलाना उन्हें अच्छा लगता है, आज भी हमेशा साईकिल चलाते दिखेंगे गोविंद भाऊ . स्पोर्ट की दुकान उनकी रुची बताती है.
54 बार रक्तदान कर चुके हैं, नेत्रदान, मरणोपरांत देह दान में हमेशा अग्रणी रहते हैं और समाज को जागृत करते रहते है. लोगों से, अपने मित्रों से, रद्दी जमा करके रकम बनाना और समाज के अंध, अपंग लोगों की सेवा करना उनकी विशेष खूबी है. हमारे जैसे कई लोगों के लिए प्रेरणा के पात्र है.
गोविद भाऊ का चिरपरिचित पोस्ट कार्ड जिसपर उनकी सुंदर लिखाई मेरे लिये उनके व्दारा दिये गए सम्मान पत्र है. जो मैने संभालकर रखे है, ये पोस्ट कार्ड वे हर अच्छे कर्म के लिए सबको देते आये है, जिससे और आगे बढने की प्रेरणा मिलती है. आजकल पोस्ट कार्ड बंद हो गए है, पर जब भी आप अच्छा काम करेंगे, सामाजिक काम करेंगे, गोविंद भाऊ का पोस्ट कार्ट तीसरे दिन पहुंच जायेगा ये विशेषता. इतने प्रतिभावान शिक्षाविद, समाज सैनिक, प्रसन्न चित, हर दिन को भाने वाली प्रतिभा, किसी को भी अपना बनाने की कला, किसी से कुछ मांगना नहीं सिर्फ देना है, हर छोटी बडी समस्या का तुरंत समाधान निकालना और आगे बढना ये उनका गुण है. सब कुछ विशेष कला है जो सबने सिखना चाहिए. आपने कभी गोविंद भाऊ का मुरझाया हुआ चेहरा कभी देखा ही नहीं होगा, वे ऐसी विशेष प्रतिभा है.
गोविंद भाऊ से मेरा संबंध, उनके छोटे भाई डॉ.रविंद्र कासट जिनको मैं अपना आदर्श गुरु मानता हूं कि उनकी वजह से मैं आया. तब से पूरे परिवार ने मुझे अपना लिया, पूरा कासट परिवार मुझे बहुत प्यार करता है, इज्जत देता है, गोविंद भाऊ मुझे अपना छोटा भाई समझते है, यह मेरा सौभाग्य है.
उमा भाभी, गोविंद भाऊ की अर्धांगिनी, जैसे दोनों को भगवान ने अपने हाथो से एक दूसरे के लिए खुद बैठकर बनाया है. सबका बहुत ध्यान रखने वाली, मां समान, उनकी चिर परिचित मुस्कान सबको भाती है. उमा भाभी को 15 साल पहले हार्ट अटैक आया था, रविभाऊ का फोन आया कि भाभी को भेज रहा हूं, तुरंत देख लेना, विश्वास नहीं हो रहा था पर भाभी को हार्ट अटैक आया था, वह समय बहुत कठिन था, सबके लिये, उस दिन पहली बार गोविंद भाऊ मायुस दिखे थे, पर भाभी के ठिक होने पर फिर से अपनी चिरपरिचित प्रतिभा में आ गए.
बाबा आमटे, आनंद वन, तपोवन से गोविंद भाऊ दशकों से जुडे हैं, बाबा आमटे उन्हें मानस पुत्र मानते थे, आज भी महिने में एक बार गोविंद भाऊ अपने परिचितों, मित्रों को आनंदवन ले जाते है और अपना योगदान देते है. हनुमान व्यायाम प्रसारक मंडल के आजीवन सदस्य, पद्मश्री प्रभाकरराव वैद्य से उनका संबंध सदैव इस संस्थान के लिए काम करना गोविंद भाऊ की जीवन शैली है.
गोविंद भाऊ ने आज तक किसी भी संस्था में कोई पद नहीं लिया, हमेशा सदस्य बनकर काम करते रहना उनकी दुर्लभ प्रतिभा है. उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं.
* आउट स्टैंडिंग यंग परसन ऑफ अमरावती – हव्याप्र मंडल
* कुष्ठमित्र पुरस्कार- डॉ.शिवाजीराव पटवर्धन स्मृति
* अपंगमित्र पुरस्कार – केशवराव ठोंबरे गुरुजी स्मृति
* सामाजिक कार्यकर्ता पुरस्कार- मा.बा.गांधी चेरिटेबल ट्रस्ट, नागपुर
* विक्रमी पत्रलेखन पुरस्कार – मराठी वृत्तपत्र लेखक संघ, मुंबई
* उत्कृष्ठ लेख पुरस्कार- सृजन साहित्य पुरस्कार
यह सभी पुरस्कारों से सुशोभित हमारे पूज्यनीय गोविंद भाऊ कासट की छबी दर्शाते है, पद्म पुरस्कारों से कम नहीं है. ऐसे व्यक्तिमत्व न कभी देखे थे, न कभी भविष्य में दिखेंगे. ऐसी दुर्लभ प्रतिभा न भूतो न भविष्यति से सुशोभित डॉ.गोविंद भाऊ हिरालालजी कासट के अमृत महोत्सव पर्व पर उनको नतमस्तक होकर साष्टांग प्रणाम.
गोविंद भाऊ के चरित्र से एक सिख मिलती है- सिर्फ और सिर्फ अंदर की भावनाए ही किसी को अच्छा इंसान बना सकती है. अच्छे लोगोें की एक खास पहचान होती है, वो बुरे वक्त में भी अच्छे रहते है.
– डॉ. विजय बख्तार

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