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डॉ. प्रशांत विघे : पुरस्कार से आगे बढते हुए कुछ……

1 मई को विद्यापीठ द्वारा उत्कृष्ट सेवा गौरव पुरस्कार से सम्मानित होने की उपलब्धि पर....

आज जब सरकार शिक्षा क्षेत्र को सेवा क्षेत्र घोषित करने की तैयारी कर रही है और दूसरी ओर वैश्वीकरण और बाजारीकरण की ताकतें शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र को झटके दे रही है. ऐसे में कई शिक्षक हताश होकर इस शिक्षकी पेशे का क्या करें? ऐसा सोच रहे हैं. हमने इस पेशे में आकर गलती तो नहीं की? ऐसी शंकाएं उनके मन में आ रही हैं. दूसरी ओर हम शिक्षकों को प्लॉट बेचते, बीमा पॉलिसी बेचते, साइड बिजनेस करते देखते हैं और उसके कारण हम जैसे सामान्य शिक्षकों की स्थिति बहुत दयनीय. यहां तक कि भारी-भरकम वेतन पाने वाले सबसे अयोग्य प्रोफेसर भी हमारे आसपास मंडराते रहते हैं और काम करने से बचते हैं. हमें शर्म आती है कि लोग हमारे सहकर्मी हैं और यही बात हमें इस पेशे से थका देती है.

विद्यार्थियों और समाज के लिए हमारी उपयोगिता भी समाप्त हो गई है. अक्सर हम खुद से पूछते हैं कि क्या हम महत्वपूर्ण हैं या नहीं? हमारा काम महत्वपूर्ण है या नहीं? ऐसी शंकाएं आती है. ऐसे समय एक शिक्षक से जो अपेक्षा की जाती है वह करना आसान नहीं है.
इसी पृष्ठभूमि में विद्यापीठ, संगठन, आंदोलन, सामाजिक कार्य, सेमिनार, सम्मेलन में कहीं न कहीं हम डॉ. प्रशांत विघे को देखते हैं और उनके जोशीले रवैये को देखकर कहीं न कहीं खुशी की लहर महसूस करते हैं. प्रशांत विघे हर कार्य और दूसरों के कई कार्यों को बहुत ही प्रसन्नचित्त भाव के साथ करते हैं. एक शिक्षक के रूप में आवश्यक कार्य और समाज के एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में किए जाने वाले कई कार्य सहित सभी कार्य वे आसानी से पूरे करते है. यदि वह महसूस नहीं करते हैं कि वह कुछ भी खास कर रहे है. यह हमारे जीवन का एक हिस्सा है इसलिए वह यह सब काम कर रहे है. कभी ऐसा मामला नहीं देखा जहां हमने उन्हें कुछ करने के लिए कहा हो और वह टाल गया हो. कई बार विद्वत्तापूर्ण मनोवृत्ति और सक्रियतावादी मनोवृत्ति एक व्यक्ति में एक साथ प्रकट नहीं होती. लेकिन प्रशांत विघे इसका अपवाद है. वह एक ओर जहां गुणवत्तापूर्ण शोध करते हैं, वहीं दूसरी ओर जमीन पर खडे होकर समाज के मुद्दों को छूने की ताकत भी रखते हैं.

आजकल लोग कम उम्र में ही बूढेे हो रहे हैं. उनका उत्साह खत्म हो रहा है. लेकिन प्रशांत के पास न केवल एक युवा चेहरा है बल्कि एक युवा दिमाग भी है. उनमें अभी भी पच्चीस साल के युवा जैसा उत्साह बरकरार है. उन्हें देखने के बाद, कई लोग निश्चित रूप से प्रोफेसर किशोर महाबल जैसे विद्वान, मुस्कुराते हुए, छात्र-प्रेमी और कडी मेहनत करने वाले प्रोफेसर की याद जरूर आती है.
उनका यह उत्साह बना रहे, उनका यही रवैया हमेशा बना रहे और वह हमेशा अपने पेशे के साथ न्याय करते रहें और लोगों की मदद करते रहें, यही शुभकामनाएं.
-प्रो अरविंद सोवनी, नागपुर

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