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वार्ड पद्धति से चुनाव

आगामी फरवरी माह में होने वाले महानगरपालिका के चुनाव वार्ड प्रणाली से लिये जाने का विचार जारी है. इस दिशा मेें योग्य कदम भी उठाये जा रहे है. इस बारे में महाविकास आघाडी के प्रमुख नेताओं के बीच अनौपचारिक चर्चा हो चुकी है. राज्य के सत्ता की कमान संभालने के बाद महाविकास आघाडी सरकार का पहला शीतकालीन अधिवेशन नागपुर में हुआ था. उस समय सरकार ने मनपा चुनाव वार्ड प्रणाली से लेने की तैयारी व्यक्त की थी. वार्ड प्रद्धति से चुनाव की तैयारी के संबंध में प्रक्रिया भी आरंभ हो गई थी. लेकिन कोरोना के कारण इस बारे में आगे काम नहीं हो पाया. अब फिर से इस दिशा में काम आरंभ हो गया है. सरकार द्बारा इस विषय पर व्यापक चर्चा के बाद घोषणा की जा सकती है. निश्चित रुप से वार्ड प्रणाली से होने वाले चुनाव जन सामान्य के लिए काफी लाभदायक साबित हो सकते है.
वर्ष 2017 में महानगरपालिका के हुए चुनाव प्रभाग प्रणाली से लिये गये थे. बीते 5 वर्षों में प्रभाग प्रणाली से हुए चुनाव के बाद अनेक कार्य अधूरे रहने के चलते इस बात का लोगों को ऐहसांस होने लगा है. प्रभाग प्रणाली से होने वाले चुनाव में मतदाता को योग्य न्याय नहीं मिल पाता क्योंकि इस प्रणाली में पहली बात तो निर्वाचन क्षेत्र का क्षेत्रफल अपने आप बढ जाता है. जिसके कारण संबंधित पार्षद हर स्थान पर ध्यान नहीं दे पाते है. चूंकि प्रभाग प्रणाली में एक साथ 4 पार्षद निर्वाचित होते है. विकास कार्य की जब बात आती है, तो हर नगरसेवक एक दूसरे पर यह जिम्मेदारी ढकेलता हुए दिखाई देता है. जिस तरह दो घरों का महमान कई बार भूखा रह जाता है, उस तरह एक प्रभाग में 4 पार्षद रहने से विकास कार्य नहीं हो पाता. बीते कुछ वर्षों में यह बात प्रखरता से सामने आयी है. कई स्थानों पर लोग जब विकास कार्य के लिए किसी नगर सेवक के पास पहुंचते है, तो वह अन्य तीनों नगर सेवकों की ओर हाथ बढा देता है. ऐसे में सभी पार्षद एक दूसरे की ओर इशारा करते है. इसका खामियाजा नागरिकों ही भुगतना पडता है. वार्ड प्रणाली में केवल एक नगर सेवक से मतदाताओं को जुडना पडता है. यदि संबंधित वार्ड का पार्षद अपनी मर्जी से कुछ करना चाहे, तो कर भी सकता है. क्योंकि उसे प्रभाग के अन्य नागरिकों का सामना नहीं करना पडता. विकास कार्य हो तथा उसमें सफलता मिले, तो इसका श्रेय संबंधित पार्षद को मिलता है. कई बार लोगों का आरोप रहता है कि, संबंधित पार्षद की ओर से कोई कार्य नहीं किया, तो उसे भी आलोचना का शिकार होना पडता है. लेकिन प्रभाग प्रणाली में अनेक पार्षद रहने से कार्य का विकेंद्रीकरण हो जाता है. सभी पार्षद मिलकर यदि कोई निर्णय लेते है, तो उसका लाभ भी जनसामान्य को मिल सकता है.
महानगरपालिका की स्थापना के बाद से जब पहली बार चुनाव लिये गये थे. उस समय वार्ड प्रणाली का अवलंब किया गया था. इसका उचित परिणाम भी देखने में आया. सीमित संख्या एवं सीमित क्षेत्रफल में संबंधित पार्षद को कार्य करना पडता है. ऐसे में वह अपने कार्य को गति प्रदान कर सकता है. इससे कार्य भी शीघ्रातिशीघ्र होंगे. मतदाताओं को भी इस बात की राहत रहेगी कि, उनके कार्य तेजी से हो रहे है. प्रभाग प्रणाली में यह सब बातें नहीं हो पाती. पहली बात तो सभी पार्षदों का एकमत होना जरुरी है तथा निर्वाचित पार्षद सक्रिय रहे तो ही योग्य कार्य हो सकता है. पाया जा रहा है कि, 2017 में हुए चुनाव में अनेक क्षेत्र के पार्षद जनसामान्य की समस्या को लेकर उदासीन रहे है. इस बात की शिकायत अनेक प्रभाग के नागरिकों द्बारा की जाती रही है. वार्ड प्रणाली में क्षेत्रफल सीमित रहने से प्रभाग पार्षद पूरे वार्ड में घुम सकता है. इससे लोगों से उसका संवाद कायम रहेगा व विकासकार्यों पर भी चर्चा हो सकेगी व कार्यों को गति मिल सकती है. सरकार को चाहिए कि, वार्ड प्रणाली से होने वाले चुनाव के निर्णय को सकारात्मक रुप दें, इस पर योग्य विचार किया जाए.
सीमित क्षेत्र रहने पर प्रतिनिधि को भी योग्य कार्य करने का अवसर मिलता है. इसलिए जरुरी है कि, वार्ड प्रणाली से ही चुनाव लिये जाये. हालांकि चुनाव के लिए अब समय सीमित है, ऐसे में वार्ड रचना करना मतदाता सुची सुचारु करना आदि अनेक कार्य सामने आ सकते है. इन्हें पूरा करने के लिए समय आवश्य लगेगा, लेकिन अभी से ही इस कार्य को गति प्रदान कर दी जाये, तो निश्चित रुप से समय पूर्व वार्ड रचना होकर वार्ड प्रणाली से चुनाव लिये जा सकते है. कुलमिलाकर प्रभाग प्रणाली के चुनाव में कार्यक्षेत्र बढ जाता है. इसके कारण अनेक विकासात्मक कार्य को योग्य अंजाम नहीं मिल पाता. वार्ड प्रणाली से यह स्थिति आसान हो जाएगी. इस दिशा में किया जाने वाला विचार उचित है तथा भविष्य में इसे सकारात्मक रुप भी दिया जा सकता है.

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