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टीकाकरण के प्रति उत्साह

जिन लोगों ने कोरोना प्रतिबंधात्मक टीके के दोनों डोज लिए हैे. उन्हें राज्य अंतर्गत यात्रा के लिए कोरोना टेस्ट की आवश्यकता नहीं. इसी तरह उन्हें विलगीकरण करने की भी जरूरत नहीं है. यह जानकारी कोविड-१९ टीकाकरण के बारे में गठित किए गये नैशनल एक्सपर्ट ग्रुप ने कही है. इस बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय को ग्रुप की ओर से पत्रव्यवहार भी किया गया है. हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ नैशनल एक्सपर्ट ग्रुप की हाल ही में बैठक हुई. दोनों समितियों ने टीकाकरण के दो डोज लेनेवाले व्यक्तियों की जांच की आवश्यकता न होने की बात भी कही गई है. निश्चित रूप से जिन लोगों ने टीके लिए है. वे कोरोना से संघर्ष के लिए सक्षम हो गये है. ऐसा माना जाता है. जिसके कारण टेस्ट का बंधन उन पर लागू नहीं होता है. टीकाकरण अपने आप में ही काफी महत्व रखता है. यहां इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि टीकाकरण के दोनों डोज लेने के बाद करीब दो सप्ताह तक प्रतिरोधक क्षमता निर्माण नहीं होती. अत: दोनों डोज की परिभाषा में इस बात का भी आकलन होना जरूरी है. केवल डोज लेना पर्याप्त नहीं. डोज लेने के बाद एंटीबॉडी निर्माण होती है जिससे संबंधित को बीमारी का खतरा कम रहता है. इसलिए वैक्सीन का अपना अलग महत्व है. महाराष्ट्र राज्य में टीकाकरण के बाद भी कई लोग पॉजिटीव पाए गये थे. तब से यह चर्चा शुरू है कि टीकाकरण का योग्य लाभ नहीं मिल पाता. लेकिन जैसे जैसे विशेषज्ञों ने इस बात को लोकाभिमुख किया है तब से टीका पाने के लिए हर कोई सक्रिय नजर आ रहा है. आरंभिक दौर में आदिवासियों में टीका लगाने को लेकर भारी आशंका थी कि यह टीका लगाने से उनका स्वास्थ्य प्रभावित होगा. लेकिन एकात्मिक स्वास्थ्य विकास प्रकल्प की पहल पर आदिवासियों में टीका को लेकर अब जागृति आ गई है. विशेषकर आदिवासियों को उनकी भाषा में ही टीके के विषय में जानकारी दी गई व उनका भ्रम निकाला गया. आज पाया जा रहा है कि अनेक क्षेत्रों में टीकाकरण होने के बाद भी कोरोना टेस्ट को जरूरी माना जा रहा था. अंतर्राज्यीय यात्रा के लिए टीकाकरण के प्रमाणपत्र के साथ कोरोना जांच पश्चात कोरोना संक्रमण न होने का भी प्रमाणपत्र रखना जरूरी हो गया है. लेकिन जब कोरोना टीका को प्रभावी माना जा रहा है तो इस तरह की जांच की आवश्यकता नहीं होना चाहिए.
कोरोना जांच को लेकर भले ही सरकार गंभीर है पर अनेक क्षेत्रों में कोरोना जांच न होने के कारण कार्य रूके हुए है. हालाकि कोरोना के लिए मानवीस सम्बंध जिम्मेदार होने से अनेक राज्यों ने यह प्रतिबंध लगा रखा है कि दूसरे राज्य से आनेवाले लोगों को अपने साथ निगेटिव रिपोर्ट रखना जरूरी किया गया है. हालाकि जिन लोगों ने वैक्सीन के दोनों डोज लिए है. उन्हें जांच के लिए विवश करना उचित नहीं कहा जा सकता. हालाकि बीते एक साल में अनेक कार्य थमे हुए है. अनेक उद्योगों की तरह पर्यटन उद्योग भी प्रभावित हुआ है. इसलिए जांच केवल उन्हीं लोगों की होनी चाहिए जिन्होंने टीकाकरण नहीं कराया है. इससे आम आदमी को जांच के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. यदि टीकाकरण प्रमाणपत्र को अन्य राज्यो में भी योग्य स्थान दिया जाए तो पर्यटन व्यवसाय को गति मिल सकती है.
वर्तमान में टीकाकरण को लेकर लोगों में उत्साह है. बुजूर्ग के अलावा युवा वर्ग और महिलाएं सहित अनेक वर्ग के लोग भी टीकाकरण के लिए आगे आ रहे है. टीकाकरण की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि जो व्यक्ति टीके के दोनों डोज ले चुके है उन्हें कोरोना जांच के लिए बाध्य ना किया जाए. इस बारे में संबंधित मंत्रालय को रिपोर्ट सौंपी गई है. समय के अनुसार यह जरूरी भी है. हालाकि जिन लोगों को टीकाकरण के बाद भी कुछ लक्षण दिखाई दिए तो वे स्वयं होकर ही अपनी जांच करा सकते है. लेकिन टीकाकरण की विश्वसनीयता कायम रखने के लिए जरूरी है कि दोनों डोज लेनेवाले व्यक्ति को कोरोना जांच से मुक्त रखा जाए.
कुल मिलाकर टीकाकरण का कार्य जोरो पर है. इसका मुख्य कारण कि लोगों में यह विश्वास बैठना है कि टीका लेने के बाद उन्हें जांच की आवश्यकता नहीं है. यदि ऐसी व्यवस्था हो जाती है तो सभी क्षेत्र के लोग टीकाकरण को प्राथमिकता देंगे. बहरहाल सरकारी प्रयासों के कारण टीकाकरण के प्रति लोगों में उत्साह बढा है. सरकार की ओर से टीके भी उपलब्ध कराए जा रहे है. जाहीर है टीके के प्रभाव से बीमारी को रोका जा सकता है.

 

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