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साहसिक और सटीक फैसलों के पर्याय थे जनरल रावत

40साल के चमकदार कैरियर में गर्व और शौर्य से तय किया कमीशन मिलने से लेकर सीडीएस तक का सफर

तमिलनाडु के नीलगिरी जिले के कुन्नूर में हेलीकाप्टर हादसे में देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी समेत 13 अन्य सैन्य अफसरों-कर्मियों का निधन एक बड़ा आघात है और इसलिए राष्ट्र शोकाकुल है.भारत के सैन्य तंत्र को नए तेवर और आकार देने, शत्रुओं की हर चुनौती पर निडर होकर खरी बात कहने वाले जनरल रावत का जाना एक योद्धा की असमय विदाई ही नही, राष्ट्र का एक श्रेष्ठ सुरक्षा रणनीतिकार से वंचित होना भी है.उनकी निर्भीकता और असाधारण उपलब्धियां सेना के प्रति देश के भरोसे का आधार बनी. उनके अतुलनीय योगदान और शौर्य को अंतिम प्रणाम !!!
जनरल बिपिन रावत.एक ऐसा नाम जो सख्त और सटीक फैसले लेने के लिए विख्यात था.देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ बनने से पहले जनरल रावत थलसेना प्रमुख थे.उन्होंने इस पद पर रहते हुए कही अहम फैसले किये और उन्हें अंजाम तक पहुंचाया.आज उन्हें देश भीगी आंखों से उन्हें याद कर रहा है.
-स्थापित किये मिल के पत्थर
अपने 40 साल के चमकदार सैन्य कैरियर में जनरल बिपिन रावत ने गर्व और शौर्य से सेना में कमीशन पाने से लेकर देश का पहला सीडीएस बनने का सुनहरा सफर कई मील के पत्थर स्थापित करते हुए किया.उनके साथ काम करने वाले साथी अफसर और जवान हो या उनके गावं के लोग,सभी उनकी प्रतिभा व समर्पण के कायल थे.देश को हमेशा सर्वोपरि रखने वाले जनरल रावत ने पूर्वोत्तर में उग्रवाद को कम करने में अहम भूमिका निभाने से लेकर पाकिस्तान में घुसकर आंतकियो की कमर तोड़ने जैसे देश की अखंडता और संप्रभुता के लिए महत्वपूर्ण ऑपरेशन में अपने सैन्य कौशल और रणनीतिक समझ का भरपूर परिचय दिया.
-लिया आंतकियो से बदला 
जब वर्ष 2016 में कश्मीर के उड़ी में भारतीय सेना के कैम्प पर कायराना हमला हुआ और हमारे कई सैनिक शहीद हुए तो जनरल के निर्देशन में ही आंतकियो को पाकिस्तान में घुसकर धूल चटाने की योजना बनी और सफलता से कार्यान्वित भी की गई.यह एक ऐसा मिशन था, जिसने पूरे देश को गर्व की अनुभूति कराई और विश्व को भी बदलते भारत का सख्त संदेश दिया.यह अपनी तरह का अनूठा आपरेशन था और बिना किसी कैजुअल्टी के पूरा करने से साफ है कि रणनीति बनाने में जनरल रावत का कोई सानी नहीं था.इस आपरेशन के समय जनरल रावत दिल्ली साउथ ब्लॉक के अपने ऑफिस से कमान संभाल रहे थे.
-पहाड़ से संबंध आया काम 
इसके तीन साल बाद हुए बालाकोट एयरस्ट्राइक के समय भी एक थलसेनाध्यक्ष की भूमिका के साथ वह वाररूम में मौजूद रहे और आपरेशन की सफलता के भागीदार बने.दरअसल अधिकांश आपरेशन में उनका पहाड़ से संबंध कही न कही काम आया.वह दुर्गम और पहाड़ी क्षेत्रों में युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध थे.यही कारण रहा कि चाहे पूर्वोत्तर के दुर्गम क्षेत्र हो या फिर कश्मीर का पहाड़ी क्षेत्र, वह हर जगह अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे.
-कार्यकुशलता से तय किया सफर
बिपिन रावत कार्यकुशलता ने ही उन्हें सीडीएस के महत्वपूर्ण पद यक पहुंचाया.जब उन्हें सीडीएस के पद पर नियुक्त करने का फैसला किया गया तो सेना के नियमो में बदलाव कर रिटायरमेंट की आयु को 62 साल से बढ़ाकर 65 साल किया गया.

-छह साल पहले बाल-बाल बचे थे रावत

तमिलनाडु में बुधवार को हुई दुर्घटना से छह साल पहले जनरल बिपिन  रावत एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में बाल-बाल बचे थे.उस समय वो लेफ्टिनेंट जनरल के पद पर थे.तीन फरवरी,2015 को वो नागालैंड में जिस चिता हेलीकॉप्टर पर सवार थे, वह टेकऑफ करते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया था.इस दुर्घटना में हेलीकॉप्टर में सवार सभी लोगो को मामूली चोटें आई थी.

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