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ग्लोबल वार्मिंग का संकट

ग्लोबल वार्मिंग के संकट से समूचा विश्व जूझ रहा है. इसके कारण अनेक पर्यावरणीय खतरे निर्माण होने लगे है. हाल ही में इंटरगव्हर्नमेंटल पैनल ऑन क्लायमेट चेंज (आयपीसीसी) ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. जिसमें कहा गया है कि पृथ्वी का तापमान १.१ अंश सेल्सियस से बढ गया है. इसके कारण भविष्य में तूफान, भूस्खलन अतिवृष्टि उष्माघात जैसे संकट निर्माण हो सकते है. समय रहते यदि ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ कदम नहीं उठाए गये व योग्य रूपरेखा नहीं तय की गई तो आने वाले दिनों में संकट में वृ़ध्दि होगी. सर्वाधिक खतरा मुंबई जैसे समुद्र किनारे पर बसे शहरों पर रहेगा. वातावरण के बदलाव के परिणाम अत्यंत भयावह रह सकते है. समुद्र किनारे बसे शहर पानी में समाने की संभावना है.देश के १२ शहरों में इस तरह की स्थिति निर्माण हो सकती है.
प्रकृति पर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा आज कोई नया नहीं है. विगत कई वर्षाे से यह खतरा मंडरा रहा है. इसको लेकर वैज्ञानिकों द्वारा भविष्यवाणियां भी की जाती रही है. क्योंकि कोई भी खतरा जब आरंभिक दौर में होता है तब से ही उसे समाप्त करने का कार्य किया जाना चाहिए. क्योंकि यह खतरा आगे तीव्र रूप धारण कर सकता है. देश में विगत कई वर्षो से लोगों को खतरे के प्रति आगाह किया गया है. इसकी उपाय योजना के रूप में कार्य किया जाना जरूरी था. ग्लोबल वार्मिंग के कारण पर्यावरणीय खतरे बढ गये है. जिसे पर्यावरण को विकसित कर इस संकट को कमजोर किया जा सकता है. इसके लिए पर्याप्त प्रमाण में प्रदूषण नष्ट करना तथा पर्यावरण का संतुलन बनाए रखना जरूरी है. समय रहते यदि इस संकट से निपटने के लिए अतिरिक्त श्रम भी करना पडे तो गलत नही है.
पर्यावरण के संकट का ही परिणाम है कि लोगों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं उपलब्ध हो पा रहा है. देश के अनेक नागरिको को श्वास संबंधी शिकायतें होने लगी है. जिसके कारण ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगी है. हाल ही में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में अनेक लोगों की मृत्यु केवल इस कारण से हुई कि उन्हें समय पर ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं मिल पाया. परिणामस्वरूप आनेवाले समय में भी यह स्थिति निर्माण न हो इसलिए प्रयास आवश्यक है.यह सब तभी संभव है जब पर्यावरण के प्रति हर कोई सजगता का निर्णय ले. सरकार की ओर से भी पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने के लिए योग्य निधि उपलब्ध कराई जानी चाहिए. ग्लोबल वार्मिंग के बढते खतरे को देखते हुए यह माना जा रहा है कि अभी से ही ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए आवश्यक सावधानियां जरूरी है.
बीते कुछ वर्षो से पर्यावरण का संकट बढने लगा है. बढते शहरीकरण के कारण व मार्ग विस्तारीकरण के लिए अनेक हरे भरे पेड़ो को काट दिया गया है. पेड़ों की कटाई के कारण हर क्षेत्र में पर्यावरणीय संकट बढ गया है. ऑक्सीजन पाने के लिए अब विशेष रूप से ऑक्सीजन पार्क बनाने पड़ रहे है. जहां प्रवेश पैसे देकर हो सकता है. यानी भविष्य में ऑक्सीजन भी सहज में उपलब्ध नहीं रहेगा. जिसके कारण बीमारियों का प्रकोप और भी तीव्र हो सकता है. जरूरी है कि ग्लोबल वार्मिंग के खतरों को अभी से समझ लिया जाए . समय रहते योग्य उपाय योजना करना जरूरी है.
बीते कुछ वर्षो से पौधारोपण आदि के माध्यम से पर्यावरण संतुलन का कार्य किया जा रहा था. लेकिन सरकार का योग्य सहयोग ना मिल पाने के कारण इस कार्य को गति नहीं प्राप्त हो पायी है. हर वर्ष पर्यावरण दिवस के अवसर पर हजारों पेड़ रोपित करने का संकल्प लिया जाता है. बीते दो वर्षो से यह संकल्प लिया ही नहीं गया है. कोरोना संक्रमण के कारण पर्यावरण दिन के कार्यक्रम भी हाशिये पर आ गये है. यही कारण है कि पर्यावरण को विकसित करने का कार्य अभी अधर में है. जरूरी है कि हर कोई पर्यावरण के प्रति अपनी सजगता का परिचय दे. पर्यावरण विकसित करने के लिए नागरिक संगठनों को भी आगे आना जरूरी है.
कुल मिलाकर ग्लोबल वार्मिंग का खतरा दिनों दिन बढता जा रहा है. आरंभिक दौर में भले ही इसके परिणाम सामने नहीं आए है. लेकिन अब परिणाम नजर आने लगे है. इस वर्ष राज्य में अनेक स्थानों पर अतिवृष्टि ने अपना कहर ढाया है. अतिवृष्टि के कारण कई शहर हफ्तो पानी में डूबे रहे. अभी भी अतिवृष्टि का डर कायम है. इसके अलावा भूस्खलन की घटनाए भी बढने लगी है. इस वर्ष ऐसी घटनाओं में करीब २ दर्जन लोगों को अपनी जान गंवानी पडी. इसलिए अति आवश्यक हो गया है कि पर्यावरण के संकट को समझते हुए योग्य कदम उठाया जाना चाहिए. ग्लोबल वार्मिंग से और भी कई नये संकट निर्माण हो सकते है. इसके लिए एकमात्र उपाय पर्यावरण का संतुलन ही है. अत: हर किसी को चाहिए कि वह पर्यावरण के प्रति अपनी सजगता का परिचय दे व भविष्य के खतरों से स्वयं को बचाए.

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