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स्वयंसिद्धा बनना होगा

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर देशभर में अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है. हर वर्ष यह दिन 8 मार्च को मनाया जाता है. इस अवसर पर अनेक सभा सम्मेलन, गोष्ठियों के माध्यम से महिलाओं की समस्याओं पर जिक्र कर उनका जीवन किस तरह स्वावलंबी एवं भयमुक्त बने, इस दृष्टि से अनेक विचार व्यक्त किये जाते है. बावजूद इसके हर वर्ष महिलाओं के साथ उत्पीडन के अनेक मामले सामने आते है. निश्चित रुप से कहीं ना कहीं इस अन्याय के लिए स्वयं महिलाएं भी जिम्मेदार है. महात्मा गांधी के शब्दों में अन्याय करने वाले से अन्याय सहने वाला अधिक दोषी है. बेशक वर्तमान समाज व्यवस्था में महिलाएं अपने उपर होने वाले अन्याय के प्रति मुखर नहीं हो पाती. शायद उनका हो यह आखरी सितम यह सोचकर वह हर बार स्वयं के साथ होने वाले अन्याय का विरोध करने का साहस नहीं करती. यहीं कारण है कि, विकृत मानसिकता वाले अन्यायियों का दुस्साहस बढता चला जाता है. इसलिए सबसे पहले महिलाओं के स्वयं के साथ अन्याय के खिलाफ मुखर होना जरुरी है. यह भी सच है जिन महिलाओं ने अन्याय के खिलाफ मुखर होकर सामना किया है, उन्हें आरंभ में भले ही कठिनाई हुई हो, किंतु अंत में जीत का सेहरा भी उनके माथे बांधा गया. हालांकि बीते कुछ वर्षों में महिलाओं में अन्याय के खिलाफ खडे होने की क्षमता निर्माण हुई है. लेकिन कुछ सामाजिक दायरे बीच में आने के कारण उन्हें कहीं ना कहीं समझौता करना पडता है. इसके लिए यह जरुरी है कि, महिलाएं आत्मविश्वास एवं आत्मनिर्भरता के गुणों को अंगीकार करें. सामाजिक व्यवस्था में महिलाओं को आरंभ से यह सीख दी जाती रही है कि, पति का घर ही उसका सर्वस्व है. बेटी की डोली ससूराल जाने के बाद वहां से उसकी अर्थी ही निकलती है. यह धारणा बचपन से ही बालिकाओं के मन में बसाई जाती है. यहीं कारण है कि, बडे से बडे अन्याय को मजबूरी के साथ स्वीकार करना अधिकांश महिलाओं की नियती बन जाती है. बदलते परिवेश में जरुरी है कि, महिलाएं भी अपने आपमें बदलाव लाये. आज हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी स्पष्ट रुप से नजर आने लगी है. फिर भी आधी आबादी के सामने अनेक प्रश्न कायम है. इसके लिए महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में कार्य करना होगा. अपने कला गुणों को विकसित कर उसे अधिकाधिक लोकाभिमुख करने की आवश्यकता है. बेशक इस कार्य में उन्हें पुरुष प्रधान समाज का विरोध एवं कुछ टिप्पणीयों को बर्दाश्त करना होगा. लेकिन महिलाएं अपने लक्ष्य के प्रति सजग रहती है, तो निश्चित रुप से लक्ष्य प्राप्ति कर सकती है.
आये दिन समाचार पत्रों में महिलाओं से जुडे अनेक अपराध के मामले दिखाई देते है. इन मामलों में अधिकांश महिलाएं स्वयं की बदनामी के डर से खामोश रह जाती है. जबकि आज की स्थिति यह है कि, कोई महिला यदि अपने साथ होने वाले अत्याचार के खिलाफ मुखर होती है, तो औरों के लिए प्रेरणा साबित होती है. इसलिए जरुरी है कि, हर महिला को अपने पर होने वाले अत्याचार का मुखर विरोध करना होगा. आत्मनिर्भरता यह महिलाओं के जीवन में उत्थान के मार्ग आरंभ कर सकता है. आत्मनिर्भर महिला को दूसरे पर आश्रित रहने की आवश्यकता नहीं रहती. वह अपने निर्णय स्वयं ले सकती है. बीते कुछ वर्षों में पालकों में यह चेतना आयी है कि, अपने पुत्री को पूरी तरह शिक्षित कर फिर उसका हाथ किसी ओर के हाथ में सौंपना चाहिए. शिक्षा के माध्यम से सबसे पहले महिलाओं ने यह आत्मविश्वास आ सकता है कि, किसी भी किस्म का अन्याय स्वीकार नहीं करना चाहिए. अपने स्तर पर अन्याय के विरोध करना जरुरी है. यदि यह संभव न हो, तो कानूनी व्यवस्था की सहायता ली जा सकती है. केवल सभा सम्मेलनों, गोष्ठियों के माध्यम से महिला सबलीकरण के लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता. हालांकि अनेक महिलाओं ने बचत समूह बनाकर आत्मनिर्भर होने का सुंदर प्रयास किया है. जिसमें उन्हें सफलता भी मिल रही है. इसी तरह महिलाओं को एक दूसरे के प्रति प्रतिस्पर्धा न रख, सहयोग की भूमिका निभानी होगी. जिससे अन्याय करने वाले तत्वों का मनोबल कमजोर होगा. बहरहाल यह जरुरी है कि, सामाजिक क्षेत्र में अपना वर्चस्व यदि महिलाओं को कायम करना है, तो उन्हें स्वयंसिद्धा बनना होगा.
कुलमिलाकर केवल महिला दिवस मनाकर महिलाओं की समस्या पर चिंतन करने से समस्या का निराकरण नहीं हो सकता. इसके लिए प्रत्यक्ष में महिलाओं को सामने आना होगा. तभी वे अन्याय अत्याचार का विरोध कर सकेगी व भयमुक्त होकर समाज में विचरण कर पाएंगी. इसके लिए महिलाओं को शिक्षित होकर स्वयं को आत्मनिर्भर बनाना जरुरी है.

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