लेख

अमरावती में 55 वर्ष पहले आग से 50 लोगों की मौत

शरदचंद्र पंडया ने अपनी जान देकर अमरावती को तबाह होने से बचाया था

55 साल पहले मंगलवार 26 अप्रैल 1966 को सुबह 10 बजे के बाद अमरावती शहर में तेजी से अफवाह फैली कि अमरावती शहर खतम हो जायेगा. आग से जल जायेगा और सैकड़ों हजारों लोग मारे जाएंगे. मगर यह कोरी अफवाह या गप बाजी नहीं बल्कि हकीकत में यह होनेवाला था, अगर अपनी जान देकर जॉबाज़ युवक शरदचंद्र कन्हैयालाल पंडया ने उस दिन अमरावती शहर को बचाया न होता तो अमरावती अमरावती न रहती मसानवती बन जाती.
उन दिनों अमरावती एशिया में कपास की सबसे बड़ी मंडी थी, अमरावती में नजदीक के गांवोें तथा दूसरे शहरों और जिलों से कपास से भरी हुई हजारों बैलगाड़ियां और सैकड़ों ट्रक शहर में रोज आते थे. कपास की कई जिनिंग फैक्ट्रीयां कॉटन मार्केट से वीएमवी कॉलेज रोड की ओर थी. जिनमें से विलास नगर के पास लक्ष्मी कॉटन मिल और लक्ष्मी आईल मिल नामक फैक्टरी भी थी. उस दिन सुबह करीब 6 बजे इसी लक्ष्मी मिल में जोरदार धमाका हुआ और कपास के ढेरो को आग लग गई. कुछ ही मिनिटों में दो और जोरदार धमाके हुए और आग दानावल की तरह फैल गई. आग में बहुत लोग जल गये थे. कई लोगों को रोते और तडफती हालत में रिक्षा में डालकर हॉस्पिटल ले जाया जा रहा था. उनमें से कुछ लोगों की हॉस्पिटल में मौत हो गई. इसके अलावा लक्ष्मी मिल से सटी हुई बस्तियों के बहुत सारे लोग जो कंपाऊंड वाल के पास नित्य कर्म निपटाने पहुंचे थे. वे भी आग की चपेट में आ गये. जिसमें से कुछ लोगों की हॉस्पिटल में मौत हो गई.
सुबह से साढ़े 10-11 बजे शहर में चर्चाओं का दौर चल निकला कि अगर आग कंट्रोल में नहीं हुई तो एक बड़े टैंक में और विस्फोट हो सकता है और आधी अमरावती जलकर खाक हो जायेगी. चारो तरफ अफरा-तफरी मचनी शुरू हो गई थी. स्कूल कॉलेजो को छुट्टी दे दी गई और शहर की छोटी बड़ी सभी दुकानें दोपहर 12 बजे बंद हो रही थी. लोग अपने घरों की ओर जा रहे थे, हर चेहरे पर खौफ का साया था. हर व्यक्ति सुरक्षित अपने-अपने परिवार के पास पहुंचना चाहता था. लक्ष्मी मिल के पास की बस्तियों के कुछ लोग घरों को छोड़कर जान बचाने की खातिर परिवार के साथ शहर के दूसरे किनारे के किसी रिश्तेदार या परिचित के घर जा पहुंचे थे. इतवारा बाजार के पीछे कडबी बाजार में खड़ी गाड़ियों को पुलिस ने रेल्वे की खाली जगह पर भेज दिया था. शहर में आनेवाली कपास की गाड़ियों को जकात नाके पर रोक कर वापस भेज रहा था. आग बुझाने अकोला और पुलगांव से भी फायर बिग्रेड की गाड़ियां पहुंची थी.
लक्ष्मी मिल में सुबह हुए विस्फोट और आग के बाद और एक टैंक के संभावित विस्फोट को रोकने प्रशासन प्रयास कर रहा था. आग की गरमाहट से टैंक में किसी भी क्षण विस्फोट होकर आधा अमरावती शहर तबाह हो सकता था. शहर को बचाने के लिए टैेंक का वॉल्व खोलना आवश्यक था, किंतु कपास के ढेरों में लगी आग के बीच घिरे टैंक का वॉल्व खोलनेवाले की जलकर जान जा सकती थी. सभी लोग भयग्रस्त और चिंतातुर थे. तभी एक नवयुवक शरदचंद्र कन्हैयालाल पंडया ने आगे बढ़कर आग के बीच से जाकर टैंक का वॉल्व खोलने का प्रयत्न किया, वॉल्व खोलते ही वह पूरी तरह जल गया. वॉल्व खुल चुका था और अमरावती शहर बच गय. शरदचंद्र पंडया को हॉस्पिटल पहुंचाया गया जहां उसने मौत को गले लगा लिया. शाम को करीब 4 बजे वॉल्व खुलने और शहर के जलने से बचने की खबर से अमरावती निवासियों ने चैन की सांस ली. इर्विन हॉस्पिटल के पोस्टमार्टम हॉउस के पीछे मृतको के कई शव रखे थे. जहां उनके परिजन विलाप कर रहे थे. अमरावती की दुर्घटना की खबर ऑल इंडिया रेडियो, बी बी सी लंदन और रेडियो पाकिस्तान पर प्रसारित होकर मरनेवालों की संख्या 36 बताई गई. जो दूसरे दिन 50 हो गई थी. सैकड़ों लोग घायल हुए थे. अगले दिन देश के सभी समाचारपत्रों ने पहले पन्ने पर बड़ी हेडिंग में यह खबर छापी थी. आग पूरी तरह बुझने में दो दिन लगे थे.
चार पांच दिनों बाद उद्योग व मजदूर मंत्री नरेन्द्र तिडके ने लक्ष्मी मिल का दौरा किया था. महाराष्ट्र सरकार ने घटना की जांच के लिए बनसोड आयोग का गठन किया था. जिसकी रिपोर्ट की जानकारी आम जनता तक नहीं पहुंची. राज्य शासन ने मृतको के परिवारों को दो-दो हजार रूपये देने की घोषणा की थी. उत्तरप्रदेश से चुने हुए डॉ. राम मनोहर लोहिया और बिहार से चुने हुए मधु लिमये ने लोकसभा में जोरदार ढंग से मांग की कि मरनेवाले के परिवारों को एक-एक लाख रूपये की मदद दी जाए. लोकसभा में महाराष्ट्र से निर्वाचित सांसदों ने तब आश्चर्यजनक ढंग से चुप्पी साध ली थी.
लक्ष्मी मिल की जगह पर कुछ वर्षो तक मोसीकॉल नामक संस्था उद्योग चला रही थी, किंतु पिछले कुछ वर्षो से मोसीकाल बंद होकर उद्योग की सारी सामग्री व शेड हटाकर जमीन खाली की गई है. कई एकड़ जमीन को बेचकर करोड़ों अरबो रूपयों के वारे न्यारे होने की राह खुल गई. विस्फोट की आग में जांन गंवाने वाले परिवारों को 2 हजार रूपये से संतोष करना पड़ा था. बेहद दुखद है कि अमरावती शहर को बचाने के लिए अपनी जान देनेवाले शरदचंद्र पंडया को भी अमरावतीवासियों ने भुला दिया न कहीं स्मारक, न कहीं नाम का उल्लेख, धन्य है अमरावती के कर्णधार.
55 साल पहले अपनी जान देकर अमरावती शहर और सैकड़ों हजारों की जिंदगी बचानेवाले शरदचंद्र पंडया को नमन…
– दयाराम अमलानी
अमरावती-9422880026

Related Articles

Back to top button