लेख

हम अपनी जिंदगी को किस दिशा में ले जा रहे हैं?

स्टैटिसटिक्स हमें यह बताते हैं कि पुरुषों से ज्यादा महिलाएं, 50 प्रतिशत से अधिक स्ट्रेस में होती हैं. स्ट्रेस किसी भी रूप में फील हो सकता है. अकेले में रोना, मन नहीं लगना, जिंदगी दिशाहीन महसूस होना, अकेलापन महसूस होना, ज्यादा चिंता होना, ओवरथिंक करना, नींद ना आना, घबराहट होना, हर वक्त निराश महसूस करना, चिड़चिड़ करना, काम टालते रहना, हर समय खुद की काबिलियत पर संशय करते रहना, कॉन्फिडेंस न महसूस करना और अन्य कई लक्षण हो सकते हैं. कई बार तो स्ट्रेस शारीरिक लक्षणों में भी प्रकट होता है. मेरा उद्देश्य यहां आपको डराना नहीं अपितु यह पूछना है, की क्या हम इस स्ट्रेस से निकल सकते हैं और अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकते हैं? आजकल महिलाएं स्ट्रेस के लक्षण आने पर ज्यादातर मोबाइल का सहारा लेती हैं. वे घंटों बैठकर मोबाइल में देखती रहती हैं. अक्सर, कुछ भी प्रोडक्टिव तो नहीं करतीं, केवल टाइम पास ही होता है जिससे कि स्ट्रेस और बढ़ जाता है.

महिलाएं चाहे हाउसवाइफ हो या वर्किंग हो, दोनों ही स्ट्रेस की शिकार होती हैं. कई बार देखा गया है कि वह करती तो सबका है, परंतु स्वयं अपने जीवन में खुश नहीं रहतीं. उन्हें लगता है कि ज्यादा काम रहने की वजह से, खुद के लिए टाइम ना निकल पाने की वजह से वें, स्ट्रेस में रहतीं है. परंतु देखा जाए तो स्ट्रेस वर्कलोड की वजह से उतना नहीं आता जितना की जरूरी एक्शन न लेने की वजह से आता है. क्या दिन भर की भाग दौड़ में हम कभी यह सोचते हैं कि हम अपनी जिंदगी को किस दिशा में ले जा रहे हैं?

आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर बहुत अच्छा अवसर है कि आप स्वयं से पूछे कि, आपकी जिंदगी के मूल्य क्या है, वैल्यूज क्या है?
यह कुछ भी हो सकती हैं, और हर किसी के लिए अलग भी हो सकती हैं. जैसे, नाम कमाना, आर्थिक स्वतंत्रता में रहना, लोगों में फेमस होना, ज्ञानी होना, सक्सेसफुल स्त्री या हाउसवाइफ होना, समाज में योगदान देना, साहस, शिक्षा, स्वतंत्रता, उदारता, समर्पण, सत्य निष्ठा…… और अन्य कई मूल्य हो सकते हैं जो आपको प्रिय हों. जरा बताइए, अगर आपके जीवन को कुछ चंद शब्दों में परिभाषित करना पड़े, तो आप किन मूल्यों का चयन करना चाहेंगी? तो आपके जो भी मूल्य हैं, जरा गौर करिए, क्या आप अपने मूल्यों के अनुसार काम कर रहीं हैं या सिर्फ उन चीजों पर ध्यान दे रही हैं, जो अर्जेंट दिखाई तो पड़ रहे हैं पर शायद उतने इंपॉर्टेंट नहीं. फोन पर बेहिसाब समय बिताना, सहेलियों से गॉसिप करना, बच्चों का आगे से आगे काम करके देना, दूसरों को नहीं ना बोल पाने की वजह से दूसरों के काम करते रह जाना. समय का सही इस्तेमाल करने में ही हमारा विशेष बल है. और यह समझना हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि क्या काम जरूरी है और क्या अत्यंत आवश्यक नहीं है. कई बार कुछ चीजें जो अर्जेंट होती हैं, वे इंपॉर्टेंट नहीं होती और जो इंपॉर्टेंट होती हैं, वे अर्जेंट नहीं होती. जब हम हमारे मूल्यों को सिद्ध करने के लिए, जो इंपॉर्टेंट है, जो मायने रखते हैं, ऐसे, काम करते हैं, तो वह कार्य हमें हमारे जीवन को उच्चतम स्तर पर ले जाने का माध्यम बन सकता है. और हम सब जानते हैं कि यह राह आसान नहीं होती. परंतु यदि आपको जीवन में प्रसन्न रहना है तो आपको आपके कार्य आपके मूल्यों से जोड़ने होंगे ना कि लोग या वस्तुओं से.

हमें हमेशा लगता है कि यदि बच्चे अच्छा पढ़ लेंगे, तो हम प्रसन्न रहेंगे, यदि पैसा आ जाएगा तो हम प्रसन्न रहेंगे, घर बन जाएगा तो हम प्रसन्न रहेंगे…… परंतु ऐसा कभी भी नहीं होता. हम कुछ समय के लिए जरूर खुश रहते हैं, पर वह चीज पूरी होने पर हम अपनी खुशियां किसी दूसरे उपलब्धि से बांध देते हैं. हम थोड़े समय के लिए खुश हो सकते हैं परंतु हमेशा प्रसन्न रहने के लिए हमें हमारे मूल्यों को अपना गोल बनाकर कार्य करना होगा. और यह करने में, आप यह बात एक्सेप्ट करिए कि आप जीवन में सभी को खुश नहीं रख सकतीं. सभी को खुश कर पाना असंभव है. जब हम ऐसे कार्य करते हैं जिनसे हम खुद को खुश रख पाते हैं, तो शायद यह बात सबको पसंद नहीं आती. और आप जिंदगी भर भी प्रयत्न कर लें, तब भी, हर किसी को खुश रख पाना, अवास्तविक है. परंतु महिलाएं जो अपने मूल्यों के साथ खड़ी हैं वह हमेशा नहीं, परंतु सच्चे रूप से खुश रहती हैं. और जब हम खुश रहते हैं तो हम हमारे परिवार को खुश रख सकते हैं.
स्ट्रेस का एक कारण यह भी रहता है कि हमारी जिंदगी में कई चीजें हमारे मन के मुताबिक नहीं चल रही होती हैं, जिससे कि हम निराश महसूस करते हैं, यह स्वाभाविक है. कुछ समय उस चीज के लिए बुरा फील करना तो ठीक है, परंतु यदि आप हर समय उसी चीज को लेकर परेशान है, ओवरथिंक कर रहे हैं, तो यह गलत है. यहां मैं बस इतना ही कहना चाहूंगी की जरा विचार करिए कि जिस चीज के लिए आप परेशान हो रहीं हैं, क्या वह आपके कंट्रोल में है या नहीं? उदाहरण के तौर पर हम चाहते हैं कि हमारे आसपास के लोग जिनमें हमारा परिवार भी शामिल है, वे सब हमारे नजरिया के हिसाब से सोचे और व्यवहार करें. जबकि यह बिल्कुल भी मुमकिन नहीं है. दूसरे क्या सोचते हैं और क्या करते हैं, यह हमारे कंट्रोल में नहीं है.

सोचिए अगर आप कोई पिक्चर देख रहे हैं और उस पिक्चर का हीरो केवल पूरा दिन खुद पर संशय करता है, खुद को कम आंकता है, पूरा दिन एक ही विचार में डूबा रहता है, कोई भी नया काम करने से या किसी से बात करने से डरता रहता है, दिन भर बहाने बनाता है, तो कितनी बोर लगेगी ना यह पिक्चर?

तो हमारी जिंदगी की पिक्चर के तो हम ही हीरो हैं ना? फिर हम क्या कर रहे हैं? सही एक्शन ले रहे हैं या अपनी जिंदगी बोर बना रहे हैं?
हम जिंदगी में कई लोगों से मिलते हैं कुछ हमें पसंद आते हैं कुछ नहीं भी आते हैं. क्या आप यदि खुद से कभी मिलें तो खुद को पसंद करेंगी? अपना जीवन सार्थक बनाएं. डोर तो आप ही के हाथों में है….
-निमिषा प्रवीन साबू,
साइकॉलॉजिस्ट एन्ड साइकोथेरिपिस्ट,
9423425900

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