भारतीय संस्कृति से विश्व गुरू बनेगा भारत
समस्त भूमंडल में एकमात्र भारतवर्ष ही कर्मभूमि है. जगत का शेष भाग तो भौगभूमि है, क्योंकि यहां के मनुष्य परलोक, पुनर्जन्म या मोक्ष नहीं समझते. भारत प्राचीन काल से ही विश्व का नैतिक तथा चारित्रिक और आध्यात्मिक शिक्षक रहा है. जन-जन से परिवार, परिवार-परिवार से समाज-समाज से देश बनता है.प्राचीन काल से भारतवर्ष की ख्याति जगतगुरू के रूप में चली आ रही है. यहां की प्राचीन नीतियां तथा उपदेश सर्वमान्य होते थे.ऋग्वेद विश्व साहित्य का सबसे श्रेष्ठ तथा प्राचीनतम ग्रंथ है. यह भारतीय सनातन संस्कृति तथा परंपरा का स्त्रोत है. न केवल भारतीय दर्शन, अध्यात्म, ज्ञान-विज्ञान और उपासना के सुक्ष्मतम विचार, लौकिक कल्याण और पारमार्थिक अभ्युदय की बातें समाजहित है. मानव के उदात्त नैतिक विवेकता ही परिणाम है वसुधैव कुटुम्बकम .
आज पूरा संसार में अतिभौतिकवाद तथा नये-नये वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर मानव को मानवकी जगह जडवत मशीन बनादेने की होड में नैतिक मूल्यों के तेजीसे हो रहे :हास के कारण अशांति, हिंसा तथा अनाचार का शिकार बन कर रह रहा है. इस अशांति का मूल कारण यह भी है कि हमने अपने धर्मशास्त्र,नीतिनिर्धारक शास्त्रों की उपेक्षा करके मर्यादाहिन स्वेच्छाचारी दुराचरण को अपना रखा है. धन, ऐश्वर्य, भौतिकवादी सुखसासधनों की असीमित चाह की होड ने हमारे हदय की दया,करूणा और सेवाभावना जैसे मानवीय सद्गुणों को लील लिया है.
आज संसार में अमानवीय हत्याओं, शोषण,उत्पीछन और महिलाओं से दूराचार का नग्न नृत्य हो रहा है. धन की लिपसा में मानव मानव की हत्याएं कर रहा है. वृध्द माता-पिता की घोर उपेक्षा की जाती है, प्रतिदिन लाखों गो वंश की हत्याएं की जा रही है, इन समस्त पातकों से बचाव में दया धर्म का पालन, सदाचार का पालन करें. भोग प्रदान देशों की सामाजिक विकृतियों के अंधानुकरण के कारण भारत में संयुक्त परिवार टूटने लगे हैं. नवविवाहित माता-पिता के साथ रहने को तैयार नहीं है. वे उनको भार समझते है. पति-पत्नी के बीच छोटी-छोटी बातों पर तलाक की प्रवृत्ति बढऩे लगी है. विश्व गुरू होने की प्रतिमा धूमिल हो रही है. आज देखने में आ रहा है कि मानव समाज की दशा उत्तरोत्तर विकृत होती जा रही है. मानव अनेक प्रकार के क्लेशों, दु:खों ,प्राकृतिक आपदाओ,महामारी, युध्द के मंडराते बादल जैसे विध्नों का शिकार बनता जा रहा है. देश में कही अनावृष्टि है तो कही अतिवृष्टि सर्वत्र हिंसा तथा उच्छश्रंखलाओं का बोलबाला है.शोषण,उत्पीडन, आतंकवाद, लुटपाट, मारकाट तथा भ्रष्टाचार आदि से मानव समाज आज क्षत-विक्षत हो रहा है. इस जर्जरित मानव समाज के लिए धर्म और नीति का पालन ही समूचित औषध है.
सभी मनुष्य को एक संगठित होकर मिलकर रहना चाहिए, क्योंकि एकता में ही बल है. सामाजिक व्यवस्था पर समाज का अधिकार है. शासन या सरकार का नहीं. अत:समाज के नियम बनाना शासन का काम -कर्तव्य नहीं है.जो वोटो के लिए आपस में लड़ते है, कपट करते है, लोगों को रूपये या साहित्य देकर फुसलाकर वोट लेते है. वे कैसे न्याययुक्त राज्य करेंगे? वोट प्रणाली में ये सारी बेईमानियां होती है. महात्मा गांधी का एक वोट और सज्जन, दुर्जन पुरूष का भी एक वोट? अति संपत्ति विपत्ति का करण बन रही है. राजनीति में सब कुछ चलता है जैसी धारणा सदाचार पर भारी पडने लगी है. रामराज्य की आदर्श सदाचारपूर्ण राजनीति विश्व की उत्कर्षकी और ले जा सकती है. समाज में सुधार करना अत्यंत दुष्कर कार्य हो गया है, फिर भी असंभव नहीं. स्वयं को सुधारना होगा.
आज के समय में मानव जीवन ऐसे प्रवाह में बहता जा रहा है, उसके हदय से नैतिकमूल्य समाप्त हो गया है. सत्ता, संपत्ति पद तथा प्रतिष्ठा आदि प्रलोभनों के कारण वह मानवता से कोसों दूर हो गया है.स्वाथपूर्ति के सामने मानवता से वंचित परंपराए, मर्यादाएं, सीमाएं तोडने लगी है.औषधी रसायन से तो शरीर स्वस्थ होगा किंतु सदाचार रसायन से पूरा मानव जीवन सार्थक होगा. जरूरत है सौहार्द,प्रेम,दया, सहिष्णुता, समभाव, शांति, क्षम, संतोष,तप, त्याग सत्य का अनुपालन करने की. प्रशसंक तो एक प्रकार का छली है, जो सम्मान करके, प्रशंसा करके, प्रणाम करके, जय-जयकार करते पुण्यों का क्षीण करता है, फिर भी निंदक निंदा करके, अपमान करके, विधि करके पापों का नाश करता है. आज की राजनीति में छल-कपट, मिथ्याचार, आडम्बर मात्र आश्वासन , कोरे नारों और हिंसात्मक आंदोलन की भरमार है. भारतीय संस्कृति के अनुपालन से ही भारत विश्व गुरू बन सकता है.
वर्तमान राजनीति-समाजनीति आदि को गौण मानती हैं, किंतु सत्ता समर्थक है. एक बार पद क्या मिला जिंदगी भर का ठेका ले लिया. जोंक की तरह चिपकर खून पीना जानती है. जब अति हो जाता है उसी जोंक के खून में नशे में टुकडे-टुकडे कर निकाल बाहर किया जाता है. मानव की जीवन में महानता नहीं मानवता का अवतरण हो यही कामना.सनातक धर्म ही सार्वभौम मानव धर्म है तथा भारतीयों की आत्मा है. भारत माता की जय.
श्यामसुंदर धनराजजी टावरी,
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